पूछा है मित्र ने,"आत्मा क्या है, आधुनिक ढंग से समझायें?"
जवाब था, "शरीर हमारा हार्ड-वेयर है.....मन सॉफ्ट-वेयर है. इन दोंनो को चलाती है बायो-इलेक्ट्रिसिटी और इसके पीछे जागतिक चेतना है, वही बायो-इलेक्ट्रिसिटी से हमारे सारे सिस्टम को चलाती है.
मौत के साथ हार्ड-वेयर खत्म, हाँ, कुछ पार्ट फिर से प्रयोग हो सकते हैं, किसी और सिस्टम में.
सॉफ्ट-वेयर भी प्रयोग हो सकता है, लेकिन अभी नहीं, आने वाले समय में मन भी डाउनलोड कर लिया जा पायेगा.
जागतिक चेतना ने ही तन और मन को चलाने के लिए बायो-इलेक्ट्रिसिटी का प्रावधान बनाया, जब तन और मन खत्म तो बायो-इलेक्ट्रिसिटी का रोल भी खत्म. और जागतिक चेतना तो सदैव थी, है, और रहेगी.
अब इसमें किसे कहेंगे आत्मा? मुझे लगता है कि इन्सान को वहम है कि उसका मन यानि जो भी उस की सोच-समझ है, आपकी मेमोरी जो है, वो आत्मा है और वो दुबारा पैदा होती है मौत के बाद.
पहले तो यह समझ लें कि अगर जागतिक चेतना को आपके मन को, सोच-समझ को आगे प्रयोग करना होता तो वो बच्चों को पुनर्जन्म की याद्-दाश्त के साथ पैदा करता. उसे नहीं चाहिए यह सब कचरा, सो वो जीरो से शुरू करती है, हर बच्चे के साथ. साफ़ स्लेट.
यह काफी है समझने को कि आपकी मेमोरी, आपकी सोच-समझ का कोई रोल नहीं मौत के बाद.
शरीर तो निश्चित ही आत्मा नहीं मानते होंगे आप?
अब क्या बचा?
जल में कुम्भ (घड़ा) है, और कुम्भ में जल है. जागतिक चेतना को क्या करना जल में कुम्भ का, कुम्भ तो पहले ही जल में है और फूटेगा तो जल जल में ही मिलेगा? असल में तो मिला ही हुआ है.......कुम्भ को वहम है कि नहीं मिला हुआ, सीधे पड़े ग्लास को वहम है कि उसके अंदर की हवा, कमरे में व्याप्त हवा से अलग है, रूप को वहम है कि उसकी चेतना जागतिक चेतना से अलग है.
बस यह वहम ही आत्मा है.
अब कुछ मित्रों को वहम है कि मनुष्य के कर्म अगले जन्म तक जाते हैं. और कर्मों के हिसाब से अगला जन्म फलस्वरूप मिलता है. यह भी बकवास बात है चूँकि यह मानने के लिए आप पहले से अगला जन्म माने बैठे हैं. नहीं, जो भी ऊंच-नीच समाज में आपको दिखती है, वो सब सामाजिक कु-प्रबन्धन का नतीजा है न कि अगले-पिछले जन्मों के कर्मों के फलों का. तो जब अगला जन्म नहीं तो कर्म कहाँ से आगे जायेंगे?
इस्लाम में आखिरत की धारणा है....उसमें भी कुछ तर्क नहीं है.... जो मर गया सो मर गया...अब आगे न जन्नत है, न जहन्नुम......जब सब खत्म है तो फिर किसका फैसला होना?
ये सब स्वर्ग, नरक, मोक्ष की धारणाएं खड़ी ही इस बात पर हैं कि इन्सान में कुछ व्यक्तिगत है,पर्सनल है ... वो व्यक्तिगत/पर्सनल आत्मा है...और मौत के बाद उस आत्मा को मोक्ष मिला तो दुबारा जन्म नहीं होगा.....वरना उसे स्वर्ग-नरक-पुनर्जन्म के चक्र में घूमते रहना होगा जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है..सब गपोड़-शंख हैं."
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