मैं

मैं नहीं कहता कि मेरा लिखा अंतिम है किसी भी विषय पर. मैं कोई 'मैसेंजर ऑफ़ गॉड' नहीं हूँ, जिसका कहा अंतिम हो. दिल्ली मेट्रो में सफर करने वाला आम बन्दा हूँ जो छुटपन में घर के बाहर गली में भरने वाले नालियों के पानी में मिक्स बारिश के पानी में नहाता था, जो नालियों में गिरे अपने कंचे निकाल लेता था, जो आज भी सोफ़ा पर ही सोता है या ज़मीन पर, जो रेहड़ियों पर बिकने वाला खाना खाता है. बचपने में मेरा एक नाम रखा हुआ था "नली चोचो", चूँकि मेरी नली मतलब नाक हर दम चूती मतलब बहती रहती थी. तो मेरे जीवन में कुछ भी खास जैसा ख़ास है नहीं. तो मैं तो शायद 'डॉग ओफ मैसेंजर' होऊँ. सो मुझे छोड़िये लेकिन मेरी कही बात पकड़िये, वो भी अगर सही लगे तो. विभिन्न विषयों पर विभिन्न राय रखता हूँ मैं, वो सही-गलत कुछ भी हो सकती हैं. मेरी राय से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप अपनी राय बनाने लगें, राय जो तर्क पर, वैज्ञानिकता पर, फैक्ट पर, प्रयोगों पर आधारित हों. बस, मेरी चिंता इतनी ही है.
नमन..तुषार कॉस्मिक

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