Monday, 8 May 2017

एक वार्तालाप मेरी फेसबुक मित्र चेष्टा देवी के साथ

चेष्टा देवी---मुझे तो वो स्त्रियां सबसे फालतू लगती है, जो तलाक दे चुके पति के लिए "हाय दइया, हाय दइया" करते और करेजा में मुक्का मारते हुए मंत्रियों के कोठी तक पहुंच जाती है!

Tushar ---- पति के लिए नहीं 'अलिमोनी' के लिए जाती हैं बहुतेरी.

चेष्टा देवी----अलिमोनी मतलब

Tushar ----- निर्वाह निधि

An allowance paid to a person by that person's spouse or former spouse for maintenance, granted by a court upon a legal separation or a divorce or while action is pending. 2. supply of the means of living; maintenance. Get out your tissues: Quotes about true heartbreak

चेष्टा देवी ---हां, परजीवी बनाने का भुगतान तो करना ही पड़ेगा! इस साजिश में न्यायव्यवस्था भी शामिल है।

Tushar ----- सामाजिक व्यवस्था ज़िम्मेदार है.........चूँकि न्याय-व्यवस्था भी सामाजिक व्यवस्था से आती है.

चेष्टा देवी -----ये बात कान घुमाकर पकड़ने जैसा ही है :-)

Tushar ------ नहीं है.........जड़ में सामाजिक मान्यताएं हैं, जहाँ से सब सामाजिक सिस्टम आते हैं.......विवाह, तलाक़, लड़का-लड़की की शिक्षा, उनके रोज़गार के अवसर, सब कहाँ से आते हैं? सामाजिक व्यवस्था से.

फिर आगे न्याय व्यवस्था, पुलिस, स्वास्थ्य व्यवस्था, यह व्यवस्था, वह व्यवस्था, ये सब  तो सामाजिक व्यवस्था के अंग मात्र हैं.

अकेली न्याय-व्यवस्था कोई आसमान से नहीं टपकती.

समाज से टपकती है.

चेष्टा देवी-----सब एक दूसरे को प्रमाणिक कर रही है! सहमत।

Tushar --------- नहीं.....

चेष्टा देवी-----सामाजिक मान्यताएं!

Tushar --------- पहले क्या आता है.....या पहले क्या बना होगा? जंगल से.....खेतों से...चलते हुए....इन्सान एक समाज बना......मतलब कुछ सिस्टम....कुछ कायदे......जो सामाजिक बेसिक मान्यताओं पर आधारित होंगे.

आज हमारी सामाजिक मान्यातएं बदलती हैं तो जजमेंट बदल जाती हैं.

मिसाल के लिए आज से बीस-तीस साल पहले भारत में live-in , सेम सेक्स शादी को जज सिरे से खारिज कर देता...है कि नहीं?

Tushar --------- और मिसाल लीजिये...सीधी..आपके केस से जुडी.

परजीवी कौन बनाता है औरत को? न्याय-व्यवस्था?

नहीं....बिलकुल नहीं.

मेरी दो बेटियां हैं...हम क्या चाहते हैं कि वो शादी करें और बोझ की तरह कल किसी की छाती पर सवार हो जाएँ?

नहीं.

हम उन्हें हर हाल में इस काबिल बनायेंगे कि वो अपने पैरों पर खड़ी हों. भाड़ में गई शादी.

चेष्टा देवी----- हम्म_ समझ रहे हैं :-)

Tushar --------- और गर हम उल्टा करें कि कल बस शादी कर दें जैसे-तैसे.....और आगे क्या होगा? अगर नहीं बनी वहां तो फिर तलाक और चूँकि लड़की पैरों पर खडी नहीं तो फिर उम्मीद करें कि लड़के वाले लाखों देकर जान छुडाएं जो कि बहुत केसेस में होता है.

तो ज़िम्मेदार कौन है?

ज़िम्मेदार माँ-बाप हैं/ Guardian हैं.

इसलिए कहा कि ज़िम्मेदार समाज है.

न्याय-व्यवस्था ने थोड़ा हमें कोई बाँधा है कि हम अपनी बेटियों को पढाएं न.....या उनको बिज़नस न करने दें.....या उनको नौकरी न करने दें.

नही न.....तो फिर मैं कैसे कहूं कि न्याय-व्यवस्था ज़िम्मेदार है? मैं ज़िम्मेदार हूँ, बच्चों की मां ज़िम्मेदार है, हमारा परिवार ज़िम्मेदार है अगर हम लडकियों के पैरों में बेड़ियाँ डालते हैं, उन्हें पंगु कर देते हैं तो, परजीवी कर देते हैं तो.

और गर कल वो कामयाब बिज़नस करें या नौकरी करें या वकालत करें तो भी उसके पीछे हमारे परिवार/समाज का ही बड़ा हाथ होता है.

मेरी बड़ी बिटिया को जापानी भाषा में बहुत रूचि है तो हम तमाम कोशिश कर रहे हैं कि वो इसका सर्टिफिकेट कोर्स करे...... अन्य कोर्स भी करे लेकिन यह भी कर ले.

और आगे भी जो करना चाहे करे और यकीन जानिये हमने, माँ-बाप दोनों ने, पूरी तरह से उसे यह गाइड किया है कि शादी "नहीं" करनी है, यह दुनिया की बकवास व्यवस्थाओं में से है.

हमें नहीं बनाना अपनी बेटियों को परजीवी.

हमारी बेटियों को किसी की alimony की कभी दरकार नहीं होनी चाहिए

हमारी बेटियां कभी किसी के घर-परिवार पर बोझ की तरह नहीं गिरेंगीं.

हम हर हाल में उनको उनके पैरों पर खड़ा करेंगे.

आशा है मेरी बात समझा सका होवूँगा.

चेष्टा देवी ----हाँ

नोट:--- वार्ता खत्म. कमेंट बॉक्स में लिंक दिया है इस वार्तालाप का. सन्दर्भ के लिए देख सकते हैं. नमस्कार.

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