कानून का मसला ऐसा है कि हम भारतीय जो अनपढ़ हैं, वो तो अनपढ़ हैं हीं, जो पढ़े-लिखे हैं, वो भी अनपढ़ हैं. सो वकील पर विश्वास, अंध-विश्वास किया जाता है. और इसी का नाजायज़ फायदा उठाते हैं वकील.
यह सिर्फ किताबी आदर्श है कि वकील केस जीतने में ही दिलचस्पी लेगा, इसलिए ताकि उसे प्रतिष्ठा मिले और वो और ज़्यादा काम पा सके.
असलियत ऐसी बिलकुल नहीं है. लोग केस देते हैं, वकील का ऑफिस देख कर. लम्बी कतारों में रखी किताबें देख कर. और नौसीखिए असिस्टेंट वकीलों की भीड़ देख कर, जो मुफ्त या लगभग मुफ्त मिलते हैं. और घिसे वकील इस बात को भली-भांति समझते हैं.
क्या लगता है आपको कि आपके वकील को आपको केस जितवाने में रूचि है? आप केस जीत गए, तो बड़ा फायदा आपका होगा, उसके लिए तो किस्सा खतम.
एक वकील का लड़का विदेश से वकालत पढ़ के भारत लौटा था. बाप कहीं बाहर गया था. पीछे से बेटे ने केस हैंडल किये. बाप जैसे ही आया, बेटा ख़ुशी से चहकता हुआ बोला, "पिता जी जिन माता जी का केस आप पिछले दस बरस से हल नहीं कर पाए, वो मैंने मात्र दो डेट में खत्म करवा दिया." पिता ने मत्था पीट लिया. बोला, “जो तूने किया, वो मैं भी कर सकता था. उसी से फीस ले ले कर ही तुझे विदेश भेजा था. इडियट.”
वकील कभी गारंटी लेता है, किसी केस को जितवाने की? कभी नहीं. और अगर आप हार भी गए, तो आपको पता कैसे लगेगा कि गलती आपके वकील थी कि नहीं? कोई लापरवाही आपके वकील की थी कि नहीं? कोई बेईमानी आपके वकील की थी कि नहीं? कैसे पता लगेगा आपको? आपकी खुद की तो कोई स्टडी है नहीं, अपने केस की. आप अपनी हार को बुरी किस्मत मान बैठोगे बस.
असल में मामला बुरी किस्मत का नहीं, बुरी शिक्षा का है. आपको कानूनी शिक्षा का क.ख. ग. भी नहीं पढ़ाया गया और न आपने खुद पढने की कोशिश की. आपको लगा कि केस लड़ने का मतलब वकील को फीस देना भर है. आपको लगा कि आपको क्या ज़रूरत है, रातें काली करने की. वकील को पैसे दे दिए काफी है. वो करेगा, आपकी जगह रतजगा. वो फोड़ेगा किताबों में आँखें.
वो करेगा यह सब, लेकिन अपना स्वार्थ भी देखेगा.
वो खुद आपको कोम्प्रोमाईजिंग स्थिति में ला खड़ा करेगा. क्यूँ? ताकि आप कोम्प्रोमाईज़ करो और उसे कमीशन मिल सके.
सोच के देखिये, उसे आपको केस जितवाने में, आपका केस निपटाने में फायदा है या केस लटकवाने में फायदा है. उसे आपको इन्साफ दिलवाने में फायदा है या आपका समझौता कराने में फायदा है. केस जीतेंगे आप तो बस फीस देंगे और शुक्रिया करेंगे. केस लटकेगा अगर और समझौता करेंगे आप तो वकील को फीस भी देंगे, समझौते की कमीशन भी देंगे और शुक्रिया भी करेंगे.
बठिंडा में था मैं पीछे, जानकार वकील के पास बैठा था. अपने क्लाइंट का केस पिछले आठ बरस से जीत नहीं पाए थे वकील साहेब. बहुत उत्तेजित थे उस दिन लेकिन. क्यूँ? चूँकि आज समझौते तक ले जा चुके थे मामला. आज मोटा मुनाफा मिलना था.
वो अनपढ़ क्लाइंट. मिला अकेले में तो रो रहा था वकील की जान को. आठ साल से केस लड़ रहे हैं. वकील का घर भर रहे हैं. अब समझौता हो रहा है, जितना हक़ था उससे आधा मिल रहा है, उसमें भी एक बड़ा हिस्सा वकील को जा रहा है. समझ सब रहा था, लेकिन कर कुछ भी नहीं पाया.
फिर वही वकील कह रहा था कि वो कभी अपने प्रोफेशन से समझौता नहीं करता. वैरी गुड. जो तुम अपने केस में लापरवाही करते हो, जो जल्द-बाज़ी करते हो, जो आगा दौड़-पीछा चौड़ करते हो, जो अपनी चद्दर से बाहर पैर पसारने की कोशिश करे हो, वो क्या है? तुम्हें चिंता सिर्फ इस बात की है कि कैसे तुम्हारे पास ज़्यादा से ज़्यादा केस आयें और तुम अपनी काम-चलताऊ आधी-अधूरी नॉलेज से उन्हें जैसे-तैसे अटकाए रखो. किसी भी केस के लिए जो गहन स्टडी की ज़रूरत होती है, वो कब करते हो? बेईमानी नहीं यह सब तो और क्या है?
तो मित्रगण जैसे विज्ञापन में दिखाई लडकी नहीं मिल जायेगी अगर पान मसाला खरीदोगे तो वैसे ही वकील के चेले-चांटे, उसका दफ्तर, उसकी रखी किताबें काम नहीं आयेंगी, काम आयेगी आपकी खुद की स्टडी. विश्वास करें लेकिन अंध-विश्वास नहीं. हर कदम खुद अपने केस को देखें.
और ध्यान रहे ये जो वकील व्यस्त नज़र आयें आपको बहुत ज़्यादा, तो उनसे दूर ही रहना.
यह मत सोचना कि ये लोग व्यस्त हैं तो निश्चित ही अपने काम के माहिर होंगे और इनकी महारत आपके भी काम आयेगी. नहीं आयेगी. ये असली व्यस्त हो सकते हैं, नकली व्यस्त हो सकते हैं, ये माहिर हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते हैं. बाज़ार में नकली सिक्के भी चल निकलते हैं कई बार. जब Dhinchak पूजा चल सकती है तो कोई भी चल सकता है.
तो बन्दा/ बंदी वो पकड़ो भाई लोग, जिस के पास आपके लिए समय हो. महारत देख लो जितनी देख सकते हो लेकिन पहले समय देखो कि समय उसके पास है कि नहीं आपके लिए. अगर नहीं है तो ऐसे व्यक्ति की महारत भी आपके तो काम आने वाली है नहीं.
जिसके पास आपकी बात सुनने का समय नहीं, वो आपका काम क्या खाक करेगा. जो एक ही समय में दस काम करता है, वो कोई भी काम सही से नहीं करता है. याद रखें वकील आपका एम्प्लोयी है, जब मर्ज़ी उसे विदा कर सकते हैं आप.
समझौते के लिए नहीं, जीतने के लिए लड़ें, अगर आपका हक़ है तो.
जब आप केस लड़ते हैं तो अपने विरोधी के खिलाफ ही नहीं, अपने खुद के वकील और जज के खिलाफ भी लड़ते हैं. छिद्र छोडेंगे तो कोई भी फायदा उठाएगा.
कमज़ोर जानवर पर गिद्ध सबसे पहले झपटते हैं. याद रखियेगा.
नमन...तुषार कॉस्मिक.
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