मुझे आप पसंद कर ही नहीं सकते. मैं चीज़ ही ऐसी हूँ.
अगर मैंने राम के खिलाफ लिखा तो आरक्षण-भोगी खुश हुआ, मुसलमान खुश हुआ लेकिन जब मैंने आरक्षण के खिलाफ लिखा और इस्लाम के खिलाफ लिखा, तो इनने सोचा यह क्या बीमारी है.
जब मैंने सब तथा-कथित धर्मों के खिलाफ लिखा तो नास्तिक खुश हुआ लेकिन जब मैंने कहा कि मैं नास्तिक नहीं हूँ तो उनने सोचा कि यह क्या गड़बड़झाला है.
जब मैंने आरएसएस के खिलाफ लिखा, मोदी के खिलाफ लिखा तो मुसलमान खुश हुआ लेकिन जब मैं कुरान की विध्वंसक आयतें ला सामने रखी तो त्राहि-त्राहि मच गई.
जब मैंने भिंडरावाले के खिलाफ लिखा तो उन्हें लगा कि मैं संघी हूँ, फिर साबित करना पड़ा कि मैं तो लम्बा आर्टिकल लिख चुका, "मैंने संघ क्यूँ छोड़ा".
केजरीवाल के खिलाफ लिखा तो संघी खुश हुआ, लेकिन उससे ज़्यादा तो संघ के खिलाफ लिख चुका.
बहुत कम चांस हैं कि आप मेरे लेख पसंद कर सकें. लेकिन फिर भी पढ़ें मेरा लिखा. इसलिए नहीं कि आपको पसंद आएगा. इसलिए कि आपको जीवन के अलग-अलग पहलूओं पर मेरा नज़रिया नज़र आएगा. और उससे हो सकता है आपकी नज़र तेज़ हो जाए या फिर नज़रिये पर लगा चश्मा उतर जाए.
और मेरे छुप्पे पाठक भी हैं, जो छुप-छुप पढ़ते हैं. आप बड़े लोग हो भई, ऐसे ही बने रहें, बस बने रहें.
और जो कोई मित्र यदा-कदा किसी महानता का मुझ में दर्शन करते हैं, उनको बता दूं ऐसा कुछ भी नहीं है, मैं आज भी तीस रुपये वाले मटर-कुलचा खाता हूँ रेहड़ी पर, और गुस्सा आने पर गाली-गलौच करता हूँ. इससे ज़्यादा मेरी औकात नहीं है और महान वाली कोई बात नहीं है
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