ये जो किसान के लिए टसुये बहा रहे हैं कि उसकी फसल की कीमत कम मिलती है, ज़रा तैयार हो जाएँ गोभी सौ रुपये किलो खरीदने को.
जब किसान एकड़ों के हिसाब से ज़मीन का मालिक था तब तो गाने गाता था, "पुत्त जट्टां दे बुलाओंदे बकरे......" ज़्यादा पीछे नहीं, मात्र पचीस-तीस साल पुरानी बात है.
बच्चों-पे-बच्चे पैदा किये गया, ज़मीन बंटती गई, दिहाड़ी मजदूर रह गया तो अब सड़क पर आ गया है. और करो बच्चे पैदा और फिर कहो कि सरकार की गलती है. सरकार पेट भरे. सरकार काम-धेनु गाय है न.
भैये, सरकार के पास पैसा आसमान से नहीं गिरता, टैक्स देने वालों से आता है. सिर्फ सरकार पर ही दोषारोपण मत करो.
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