मैं सभी तथा-कथित धर्मों को ज़हर मानता हूँ, और इस्लाम को पोटैशियम साइनाइड. लेकिन अगर मेरे सामने किसी बेगुनाह को मारा जा रहा हो तो वो मुसलमान ही क्यों न हो, अगर बचा सकता होवूँगा तो जी-जान से कोशिश करूंगा बचाने की. और यह लिखते हुए खुद को कोई महान साबित नहीं करना चाह रहा. वो तो मैं पहले ही लिख चुका कई बार कि अपुन हैं घटिया ही. जैसा अपना समाज है, वैसे ही अपुन हैं. और अगर यह कोई थोड़ी सी अच्छाई है भी तो वो भी इसलिए कि अपने समाज में कुछ अच्छाई भी है. बस. मेरा मुझ में किछ नाहीं, जो किछ है, सभ तेरा.

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