Monday, 19 June 2017

सभ सिक्खन को हुक्म है, गुरु मान्यो ग्रन्थ

ये जो किसी ग्रन्थ को गुरु मानना, कहाँ की समझ है? कोई भी किताब सिखा सकती है. क्या शेक्सपियर से, ऑस्कर वाइल्ड से, खुशवंत सिंह से, प्रेम चंद से. मैक्सिम गोर्की से, दोस्तोवस्की से कुछ नहीं सीखा जा सकता? हम सब सीखते हैं इनसे. इनकी आलोचनाएं भी लिखते हैं, पढ़ते हैं. लेकिन गुरु ग्रन्थ की कितनी आलोचनाएं पढ़ीं आपने. दंगा हो जायेगा. मार-काट हो जाएगी. इसे धर्म कहूं मैं? "सभ सिक्खन को हुक्म है, गुरु मान्यो ग्रन्थ." हुक्म सिर्फ गुलाम बनाते हैं और यहाँ रोज़ गुरुद्वारों से हुक्मनामे ज़ारी होते हैं. जब पहले से ही किसी ग्रन्थ को गुरु मानना है तो काहे की स्वतन्त्रता? काहे की सोचने की आज़ादी? स्वतंत्र होने अर्थ है अब किसी और तन्त्र से नहीं अपने ही तन्त्र से बंधेंगे. लेकिन यहाँ तो बंधना है किसी ग्रन्थ से तो फिर कैसी स्वतन्त्रता? अब हुक्म हुक्म में फर्क होता है. मैं विद्रोही हूँ लेकिन क्या ट्रैफिक के नियम भी तोड़ने को कहता हूँ. नहीं? नियम नियम में फर्क है. ट्रैफिक के नियम कोई इलाही बाणी नहीं माने जाते. वो कभी भी बदले जा सकते हैं. असल में मैं तो कहता हूँ कि पैदल चलने वालों को हमेशा दायें चलना चाहिए ताकि सामने से आता ट्रैफिक दिख सके. जब आप किसी ग्रन्थ को पहले से ही गुरु मान लेंगे तो आप उसमें लिखे हर शब्द को सिर्फ सही ही मानेंगे. आप कैसे आलोचना करेंगे? कैसे आलोचना समझेंगे? आलोचना के लिए तो हर पूर्व-स्थापित मान्यता रद्द होनी चाहिए. आलोचना का अर्थ निंदा नहीं होता. आलोचना का अर्थ है स्वतंत्र नज़रिया. आलोचना शब्द लोचन से आता है, जिसका अर्थ है आँख और नज़रिया शब्द भी नज़र से आता है जिसका अर्थ है आँख. जब आँख आज़ाद हो तो वो जो देखती है उसे कहते हैं आलोचना. आलोचना निंदा नहीं है. और जहाँ आलोचना नहीं है, वहां सिवा गुलामी के कुछ नहीं है. खुला नज़रिया ऊँगली उठाना नहीं होता...खुला नज़रिया मतलब जहाँ ऊँगली उठानी हो वहां ऊँगली उठाई जाए और जहाँ सहमति दिखानी हो वहां सहमति दिखाई जाए. सीखना ही सिक्खी है लेकिन लेकिन जब आप सिर्फ शीश नवायेंगे,कैसे सीखेंगे किसी ग्रन्थ से? या तो आप सही मानों में सिक्ख हो सकते हैं, ऐसे सिक्ख जो सही गलत पहले से ही नहीं माने बैठा, जो खुले दिमाग का है, जो किसी ग्रन्थ को गुरु या लघु नहीं माने बैठा है, या फिर आप वो सिक्ख हो सकते हैं जो हुक्म का गुलाम है और पहले से ही ग्रन्थ को गुरु माने बैठा है. कौन से सिक्ख हैं आप? नमन...तुषार कॉस्मिक

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