इसका अर्थ है इन्सान का इंसानी मांस खाना. मानवाहार.
क्या लगता है आपको कि इंसान सभ्य हो गया, वो कैसे ऐसा काम कर सकता है? कैसे कोई प्यारे-प्यारे बच्चों का मांस खा सकता है? कैसे कोई बेटी जैसी लड़की का मांस खा सकता है? कैसे कोई बाप जैसे वृद्ध का मांस खा सकता है? लेग-पीस. बोटी. पुट्ठा. कैसे? कैसे?
गलत हैं आप.
कहीं पढ़ा था कि ईदी अमीन नाम का शख्स, किसी अमेरिकी मुल्क का अगुआ, जब पकड़ा गया तो उसके फ्रिज में इंसानी मांस के टुकड़े मिले.
अभी कुछ साल पहले नॉएडा में पंधेर नामक आदमी और उसका नौकर मिल कर बच्चों को मार कर खाते पाए गए थे.
और आप और हम क्या करते हैं? हम इक दूजे का मांस खाते हैं, बस तरीका थोड़ा सूक्ष्म हो गया है, ऊपरी तौर पर दीखता नहीं है.
जब आप किसी गरीब का पचास हजार रूपया मार लेते हैं, जो उसने तीन साल में इकट्ठा किया था तो आपने उसके तीन साल खा लिए. आपने उसके जिस्म-जान का लगभग दस प्रतिशत खा लिया. आप उसके बच्चों का, प्यारे बच्चों के तन का, मन का कुछ हिस्सा खा गए. उसके बूढ़े बाप को खा गए, उसकी बेटी को खा गए.
बाबा नानक एक बार सैदपुर पहुंचे.शहर का मुखिया मालिक भागो ज़ुल्म और बेईमानी से धनी बना था. जब मलिक भागो को नानक देव जी के आने का पता चला, तो वो उन्हें अपने महल में ठहराना चाहता था, लेकिन गुरु जी ने एक गरीब के छोटे से घर को ठहरने के लिए चुना.
उस आदमी का नाम भाई लालो था. भाई लालो बहुत खुश हुआ और वो बड़े आदर-सत्कार से गुरुजी की सेवा करने लगा. नानक देव जी बड़े प्रेम से उसकी रूखी-सूखी रोटी खाते थे.
मलिक को बहुत गुस्सा आया और उसने गुरुजी को पूछा, "गुरुजी मैंने आपके ठहरने का बहुत बढ़िया इंतजाम किया था. कई सारे स्वादिष्ट व्यंजन भी बनवाए थे, फिर भी आप उस लालो की सूखी रोटी खा रहे हो, क्यों?" गुरुजी ने उत्तर दिया, "मैं तुम्हारा भोजन नहीं खा सकता, क्योंकि तुमने गरीबों का खून चूस कर ये रोटी कमाई है. जबकि लालो की सूखी रोटी उसकी ईमानदारी और मेहनत की कमाई है". गुरुजी की ये बात सुनकर, मलिक भागो ने गुरुजी से इसका सबूत देने को कहा.
गुरुजी ने लालो के घर से रोटी का एक टुकड़ा मंगवाया. फिर शहर के लोगों के भारी जमावड़े के सामने, गुरुजी ने एक हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी और दूसरे हाथ में मलिक भागो की चुपड़ी रोटी उठाई. दोनों रोटियों को ज़ोर से हाथों में दबाया तो लालो की रोटी से दूध और मलिक भागो की रोटी से खून टपकने लगा.
यह कहानी हुबहू सच्ची न भी हो तब भी सच्ची है. है कि नहीं? आप शाकाहारी हैं, मांसाहारी है, मुद्दा है लेकिन आप मानवाहारी हैं या नहीं, यह भी मुद्दा है. बड़ा मुद्दा.
अब कहो खुद को सभ्य. है हिम्मत? गर्व से खुद को हिन्दू, सिक्ख, मुसलमान बाद में कहना भाई, पहले गर्व से खुद को सभ्य कहने लायक तो हो जाओ.
नमन...तुषार कॉस्मिक
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