Sunday, 18 June 2017

क्रिकेट में हार शुभ है

एक होता है गर्व. गर्व होता है अपनी उपलब्धियों की ठीक-ठीक मह्त्ता समझना, यह जायज़ बात है.   

और एक होता है घमंड.  मतलब हो झन्ड फिर भी रखे हो  घमण्ड. हो गोबर फिर भी रखे हो गौरव. यह नाजायज़ बात है.

यह फर्क क्यूँ स्पष्ट किया, आगे देखिये. 

भारत कहीं खड़ा नहीं होता वर्ल्ड  लेवल पर खेलों में. इक्का-दुक्का उपलब्धियां. इत्ता विस्तार लिया हुआ मुल्क. इत्ती बड़ी जनसंख्या. लेकिन उपलब्धि लगभग शून्य .

ओलंपिक्स की मैडल तालिका देखो तो शर्म आ जाए. और वो शर्म आती भी है. भारतीयों को पता है कि वो फिस्सडी हैं. झन्ड हैं. गोबर हैं.लानती हैं.

कैसे सामना करें खुद का? कैसे नज़र मिलाएं खुद से? खुद से नैना मिलाऊँ कैसे? हर खेल में पिट-पिटा के घर जाऊं कैसे? तो चलो क्रिकेट पकड़ते हैं. इसके रिकॉर्ड बनाते हैं. वर्ल्ड रिकॉर्ड. इसके चैंपियन बनते हैं. वर्ल्ड चैंपियन. 

वर्ल्ड ने आज तक क्रिकेट खेला नहीं सीरियसली.  चंद मुल्क खेले जा रहे हैं बस. ओलंपिक्स में आज तक शामिल नहीं क्रिकेट.लेकिन हम वर्ल्ड चैंपियन. हमारे खिलाड़ी वर्ल्ड प्लेयर. 

यही हाल कबड्डी का है. कबड्डी का भी वर्ल्ड टूर्नामेंट होता है. खेलते कितने मुल्क हैं अभी इसे? या खेलते भी हैं तो कितनी रूचि से खेलते हैं? खेलने को तो यहाँ भारत में भी बहुत खेल खेले जाते हैं जो कहाँ खेले जाते हैं, पता ही नहीं लगता. आपने अपने इर्द-गिर्द के कितने लोग  पोलो या स्क्वाश या गोल्फ खेलते देखे सुने हैं?

तो भाई लोग, वर्ल्ड लेवल का खेल वहीं होता है जिस में ढंग से दुनिया रूचि लेती हो, खेलती हो. 

"मास्टर जी, मास्टर जी मैं दौड़ में तीसरे नम्बर पर आया?"
मास्टर हैरान, फिस्सडी छोरा, कैसे आ गया तीजे नम्बर पे!
"कित्ते थे रे तुम, जो दौड़े थे?"
"मास्टर जी, तीन."

समझ लीजिये, न तो क्रिकेट और न ही कबड्डी कोई वर्ल्ड लेवल का खेल है.  न ही  इन खेलो के खिलाड़ी कोई वर्ल्ड चैंपियन हैं, और न ही इन खेलों के रिकॉर्ड कोई वर्ल्ड  रिकॉर्ड हैं.

आप खेलों में झन्ड हैं. आप को क्रिकेट  का सिर्फ घमंड है. सो इसमें आपकी हार शुभ है. आपका घमंड तोडती है. आपको अपना असल चेहरा दिखाती है. इस हार के हार को गले में डाल लीजिये और समझ लीजिये कि आप खेलों में  ही नहीं, जीवन के बाकी पहलुओं में भी वैश्विक स्तर पर मुकाबले में कहीं खड़े नहीं होते. खेल सारी कहानी बयान कर देते हैं. आपका पर्दा-फाश कर देते हैं. आपको दिगम्बर कर देते हैं. नागा बाबा. 

अपनी नग्नता स्वीकार करें. अपनी नाकामयाबी  स्वीकार करें. अपना रोग स्वीकार करें. जब तक रोगी खुद को रोगी नहीं मानेगा, इलाज कैसे करवाएगा? जो रोगी खुद को निरोग ही मानता रहेगा, वो तो मारा जाएगा.

और यही हो रहा है. कहते रहो खुद को महान. विश्व गुरु. चैंपियन. लेकिन तुम झन्ड हो और झन्ड रहोगे, अगर ऐसे ही घमंड पाले रहोगे तो.

क्रिकेट में हार तुम्हारा घमंड तोड़ती है. क्रिकेट में हार तुम्हारे लिए अतीव शुभ है. उत्सव मनाओ.  नाचो, गाओ कि तुम हारे हो.

तुषार कॉस्मिक.....नमन

No comments:

Post a Comment