मैंने लिखा कि मैं सभी तथा-कथित धर्मों को ज़हर मानता हूँ तो एक मित्र का सवाल था कि क्या बौद्ध धर्म को भी?
मैंने कहा, "हाँ".
एक ने पूछा, "क्या सिक्ख धर्म को भी?"
मैंने कहा, "हाँ".
वजह पहली तो यह है कि व्यक्ति को अपनी ही रोशनी से जीना चाहिए. कहा भी है बुद्ध ने, "अप्प दीपो भव." लेकिन बौद्ध फिर भी बुद्ध को पकड़ लेता है. जब अपना दीपक खुद ही बनना है तो फिर बुद्ध को भी छोड़ दीजिये, फिर बौद्ध भी मत बनिये. और भिक्षु बनना और बनाना कोई जीवन का ढंग नहीं है. फिर स्त्रियों को दीक्षा न देना भी समझ से परे है. फिर अहिंसा भी कोई जीवन दर्शन नहीं है. हिंसा अवश्यम्भावी है. उससे बच ही नहीं सकते. जहाँ हिंसा की ज़रूरत हो, वहां हिंसक होना ही चाहिए. अहिंसा आत्म-घाती है.
क्यूँ बनना मुसलमान? हो गए मोहम्मद. अगर कुछ सीखने का है तो सीख लीजिये.
काहे कृष्ण-कृष्ण भजे जा रहे हैं, वो हो चुके, आ चुके, जा चुके. अब कुदरत ने, कायनात ने आपको घड़ा है. अब आपका अवसर है.
अब राम-राम कहना बंद कीजिये. राम ने जो धनुष तोड़ना था तोड़ चुके, जो तीर छोड़ने थे छोड़ चुके. जिसे-जिसे मारना था मार चुके. वो अपना रोल अदा कर चुके. अब आपको अपना रोल अदा करना है. अगर कुछ सीखने का है राम से तो सीख लो. लेकिन अब आपको अपनी लीला खेलनी है. छोड़ो यह सब राम-लीला. अगर कुदरत को राम की लीला से ही सब्र हो जाता तो आपको नहीं भेजती इस धरती पर.
ये जो किसी ग्रन्थ को गुरु मानना, कहाँ की समझ है? कोई भी किताब सिखा सकती है. क्या शेक्सपियर से, ऑस्कर वाइल्ड से, खुशवंत सिंह से, प्रेम चंद से. मैक्सिम गोर्की से, दोस्तोवस्की से कुछ नहीं सीखा जा सकता? हम सब सीखते हैं इनसे. इनकी आलोचनाएं भी लिखते हैं, पढ़ते हैं. लेकिन गुरु ग्रन्थ की कितनी आलोचनाएं पढ़ीं आपने. दंगा हो जायेगा. मार-काट हो जाएगी. इसे धर्म कहूं मैं?
"सभ सिक्खन को हुक्म है, गुरु मान्यो ग्रन्थ." हुक्म सिर्फ गुलाम बनाते हैं और यहाँ रोज़ गुरुद्वारों से हुक्मनामे ज़ारी होते हैं.
जीसस हमें बचायेंगे. हमारे पापों से. इडियट. पहली बात तो पाप-पुण्य कुछ होता नहीं. और क्या बचायेंगे जीसस जो खुद को सूली लगने से नहीं बचा सके?
भैया जी, बहिनी, सुनो सबकी करो मन की. सीखो सबसे, जीयो अपनी अक्ल से. मत बनो किसी भी लकीर के फकीर. मत बनो हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई.
अप्प दीपो भव.
नमन...तुषार कॉस्मिक
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