औकात

भिखारी अपनी औकात के हिसाब से भीख नहीं मांगता, सामने वाले की औकात के अनुसार मांगता है. जैसे साइकिल वाला होगा तो उससे दस-बीस रूपया नहीं, एक दो रूपया ही मांगेगा. और ऑडी या मरसडीज़ कार वाला होगा तो पचास-सौ रूपया मांगेगा.
तो साहेबान-कद्रदान, यह मसल सिर्फ भीख मांगने में ही फिट नहीं होती, हर व्यापार में फिट होती है.
डॉक्टर, चार्टर्ड अकाउंटेंट, वकील से लेकर इलेक्ट्रीशियन, प्लम्बर, नाई, हलवाई तक आपको अपनी हैसियत, अपनी लियाकत के अनुसार चार्ज नहीं करते, आपकी हैसियत के हिसाब से 'काटते' हैं.
यह 'काटना' शब्द बिलकुल सही है. इंसान इंसान को 'काटता' है. शारीरिक रूप से न सही, आर्थिक रूप से सही. और अर्थ शरीर का ही हिस्सा है, जैसे किसी ने ऑटो चला के दस लाख रुपये जोड़े दस साल में तो यह उसके शरीर, उसकी उम्र के दस साल को काटना हुआ कि नहीं अगर उसके साथ धोखा हो गया दस लाख का तो?
अब अक्सर सही लगता है कि जो पिछली पीढी के लोग रूपया जेब में होते हुए भी चवन्नी ही दिखाते थे.

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