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Showing posts from 2016

"अब तक का 'ट्रिपल तलाक' का विरोध और सहयोग--दोनों बकवास"

"अब तक का '#ट्रिपल_तलाक' का विरोध और सहयोग--दोनों बकवास" मैं मुसलमानों के ट्रिपल तलाक का कुछ कुछ पक्षधर हूँ, कुछ कुछ पक्षधर नहीं हूँ. कोई शादी तब तक नहीं होगी जब तक लड़का, लड़की दोनों अलग-अलग कमाने-खाने के लायक न हों. कम से कम पांच साल का रिकॉर्ड दें. एक छोटा loan लेना हो तो बैंक तीन साल के फाइनेंसियल मांगता है और दो लोग परिवार बनायेंगे, बच्चे पैदा करेंगे, उनकी फाइनेंसियल ताकत कोई ढंग से नहीं पूछता और लड़की की तो बिलकुल नहीं! तलाक तो तुरत ही होना चाहिए. कुछ रद्दो-बदल के साथ.वर्षों-दशकों तक तलाक के लिए एडियाँ रगड़ना कहाँ की अक्ल है? दो लोग नहीं रहना चाहते साथ, बात खत्म हो गई और क्या सबूत चाहिए. शादी निरा कॉन्ट्रैक्ट है, आप माने या न मानें. लेकिन कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें बदलने की ज़रुरत है. अक्सर झगड़े तब पड़ते हैं जब कॉन्ट्रैक्ट पुख्ता तरीके से न बना हो. अगर कॉन्ट्रैक्ट एयर-टाइट हो तो लोग कोर्ट जाने की हिम्मत ही नहीं करते. प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ और अच्छे से जानता हूँ कि अधिकांश कॉन्ट्रैक्ट ही निकम्मे होते हैं. अगर कॉन्ट्रैक्ट बनाने पर मेहनत कर ली जाए तो मुकद्दमों क...
मोदी जी start-up नाम से कोई योजना चलाए हैं.बिज़नस स्टार्ट करना हो तो फाइनेंशियल सपोर्ट. तो मित्रगण, मैं राजनीतिक- समाजिक अभियान स्टार्ट करना चाहता हूँ. बिन पैसे के कुछ होगा नहीं, सिवा सोशल मीडिया पर टीपने के. तो यदि सच में कोई परिवर्तन चाहते हैं कि देश-दुनिया में हो तो मुझे start-up मनी इंतेज़ाम करवाएं. भविष्य का ब्लू-प्रिंट मिलेगा. नक्शा मिलेगा. सब क्लैरिटी के साथ. वरना हम आलोचक चाहे किसी के भी हों, उसे बाहर कर भी दें, तो उसके हटने से जो जगह खाली होगी, उसे भविष्य के साथ परियोजक से तो नहीं भर पायेंगे. और बन्दा हाज़िर है, भविष्य की परियोजना के साथ.बाकी मर्ज़ी है. मैं याद दिलाता रहूँगा गाहे-बगाहे.
दिल्ली में हूँ, जिस किसी को भी भारत के भविष्य की चिंता हो, मुझ से मिल सकते हैं, पैसे की दरकार है, ताकि भारत को एक वैज्ञानिकता दी जा सके, राजनितिक और सामाजिक, हर लिहाज़ से. है कोई माई का लाल तैयार. पूरा ब्लू-प्रिंट मिलेगा, खाली बकवास नहीं. वरना हम आलोचना तो करते रह सकते हैं, चाहे मोदी की हो चाहे किसी और की, लेकिन इनके हटने से जो vaccum पैदा होगा उसकी भरपाई किसी बेहतर इंतेज़ाम से नहीं कर पायेंगे. और वो बेहतर इंतेज़ाम मौजूद है, तुषार कॉस्मिक. डंके की चोट पर.
"हमारी सरकार गरीब के लिए है" मोदी नहीं, वोट लेते टेम भी बोला करो कि हमें वोट सिर्फ गरीब का चइए. मध्यम वर्ग और अमीर वर्ग वोट और नोट विरोधियों को दे दें. लोकतंत्र की परिभाषा फिर से पढ़ लेते, समझ आ जाता कुछ. जो भी व्यक्ति/ पार्टी समाज के किसी भी एक वर्ग की नुमाइंदगी पेश करता/करती हो, उसे तो अगले दस साल तक कभी किसी भी चुनाव में खड़े होने का हक़ ही नहीं होना चाहिए और उसके सार्वजानिक भाषणों पर सख्त पाबंदी लगनी चाहिए. गुर्र्रर्र्र्रर्र्र..........इडियट चुनो और इडियट बनो.
नसबंदी पर पैसे देने चाहियें और यहाँ गर्भवती होने पर पैसे दिए जाने का एलान. इडियट आरएसएस, इडियट भाजपा, इडियट मोदी, इडियट भक्त.

IDIOTIC WORDS "HAPPY NEW YEAR"

Existence does not know any old year or old month or old day or old hour or old moment. For it every moment, every hour, every day, every month, every year is new. Fresh. Full of hope. It is only the idiotic humans, who need some particular day labelled as first day of a new year to celebrate as "Happy New Year". Most of the days of an year are Unhappy, hence the humans have to say "HAPPY NEW YEAR" to keep themselves solaced, to keep themselves living in an oblivion. In-fact humans don't understand the ways of the existence. The day they understand, you will never hear such idiotic words "HAPPY NEW YEAR" because you will see them happy every moment. 2) TIME In-fact there is no time, concept of time is just a fallacy. It is non-existent. Past is just memory, it does not exist outta memory and future is just an estimate/ imagination, it also does not exist outta imagination. So now what remains, present. Present is present always. Can y...
"How willingly we go through whatever situations we face decides the quality of our experience and the quality of our life."---- Sadguru Jaggi "It is not how willingly but how well we go through whatever situations we face decides the quality of our experience and quality of our life."---- Tushar Cosmic

"गरीब का भला करना गुनाह है"

ये जो लोग गरीब घरों के बच्चों को पढ़ा रहे हैं मुफ्त, या फिर उनको मुफ्त कपड़े-लत्ते दे रहे हैं, खाना दे रहे हैं और समझ रहे हैं, समझा रहे हैं कि बहुत भला कर रहे हैं दुनिया का, इडियट हैं. यह सब दुनिया का भला नहीं, बुरा है गहरे में. ऊपरी तौर पर यह सब बहुत अच्छा लग सकता है बस. असल भला आप तभी करेंगे, जब आप साथ- साथ नसबंदी कार्यक्रम चलायें. मतलब जबरन नसबंदी से नहीं है.मतलब ऐसा अभियान चलाने से है जो इनको समझाए कि आप आ गए इस दुनिया में तो यह ज़रूरी नहीं कि आगे अपनी कापियां छोड़ के जाओ. "उल्लू मर गए, औलाद छोड़ गए", यह न ही हो तो अच्छा. खुद का वज़न नहीं झेल पा रहे तो आपके बच्चों का वज़न कैसे झेलोगे? आपका और आपके बच्चों का वज़न इस समाज को ही झेलना पड़ेगा. और उसके लिए सरकार को और ज़्यादा टैक्स वसूलने पडेंगे. जिन लोगों का आपके और आपके बच्चों के जन्म में कोई हाथ-पैर या कोई भी अंग प्रत्यंग (?) नहीं है, उनको पालने के लिए सरकार दूसरों की जेबें काटेगी. यह सब इन लोगों समझाए बिना, बड़े पैमाने पर समझाए बिना, किसी भी गरीब का कैसा भी भला करना गुनाह है. इस धरती के प्रति अपराध है. आने वाली नस्लों की बर्बादी...

Sadguru Jaggi is an Idiot

"I refuse to recognise people as Muslims, Christians, or Hindus. I see human beings as human beings." - Sadguru Jaggi, Founder Isha Foundation Beings are not beings, he refuses to recognise them as beings, that is his misunderstanding. Right now they are not beings, they are Hindus, Muslims, Sikhs. Machines. Robots. Zombies. Idiots. They were Beings but then the accident happened and they had been turned into Non-beings. Now without the de-hypnotization they can not be bright back. And before that, it is fatal to recognise them as beings. The POINT, it is better to recognise them as Machines, Robots, Zombies, namely Hindu, Muslim, Sikhs etc., who were BEINGS and who can be BEINGS again. भारत ने एक से एक लम्बी दाढ़ी वाले इडियट पैदा किये हैं. श्रीमान भी एक हैं. आप मत मानो कि लोग हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई हैं. मत मानो. असल में वो हैं भी नहीं.लेकिन असल में वो असल में हैं ही नहीं. वो ह्यूमन बीइंग हैं ही नहीं. वो मात्र मशीन हैं, रोबोट हैं. अलग अलग नाम के रोबोट. हिन्दू, मुस्लिम, ...
सोशल मीडिया की मेहरबानी है कि यहाँ हर मुद्दे पर बहस होती है. सोशल मीडिया नई चौपाल है. जनता की संसद है. कॉलेज की कैंटीन है. गली की नुक्कड़ है. विश्व-विद्यालय है. आप क्या सीखते सिखाते हैं, आप पर निर्भर है....इश्कियाना है, गप्पना-गप्पाना है या ढंग का कुछ सीखना-सिखाना है....मर्ज़ी आपकी है, मर्ज़ आपका है.और हाँ, सोशल मीडिया की कुछ सीमाएं भी हैं....अगर नहीं सहमत किसी से, तो अपनी बात कहें शोर्ट में....कुश्ती मत करें, दंगल नहीं. विचार-युद्ध है मल्ल-युद्ध नहीं......अगले ने अपना पॉइंट रखा...आपने अपना...... बस. वैसे भी टाइप करना बोलने से तो मुश्किल ही है...और विचार-युद्ध में शालीनता ही ग्राउंड रूल है....Agree to disagree.
इडियट, तुम्हारा सब नकली क्यूँ है रे? मूर्खता को छोड़ कर.
उम्रे छुट्टियाँ माँग के लाये थे चार दिन, दो जाने में कट गये, दो आने में.आधे दायें, आधे बायें, बाकी मेरे पीछे. आधा जाने में, आधा आने में, बाकी समय घूमने में. थकावट उतारने गए थे घूमने और दोगुने थक कर लौटे. लौट के बुद्धू घर को आए, अपना सा मुंह लेकर, वो भी उतरा हुआ. बाकी बोम मारने को अच्छा है कि घूम कर आए, और हाँ, बाद में सेल्फियां देख-दिखा कर नकली खुश होने को भी अच्छा है. इडियट, तुम्हारा सब नकली क्यूँ है रे? मूर्खता को छोड़ कर.
जिस मुल्क की आधी आबादी अध्-नंगी हो, भूखी हो, उस मुल्क में बुत्तों पर करोड़ों-अरबों रूपया फूंकना? की फरक पैंदा ऐ? बुत्त बुत्त है. जितना पैसा खर्च किया जा रहा है, अगर वो किसी ढंग के काम में खर्च किया जाए तो फर्क पड़ता है. नहीं?
दिल-विल कुछ नहीं होता, बस दिमाग का वहम है.
मज़हब से ही मूर्खता पैदा होती है या  मूर्खता से मज़हब पैदा होता है? बताएं.
काटजू साहेब से वैसे तो मेरे बहुत से मतभेद है लेकिन यह जो उन्होंने कहा था कि अधिकांश भारतीय मूर्ख हैं, उसका कुछ-कुछ सबूत है मेरे पास. अगर नहीं होते तो BIG BOSS, सास बहू, छाछ दही जैसे टीवी प्रोग्राम बरसों से नहीं चल रहे होते.
कोई ईसा परमात्मा का इकलौता पुत्र था. जैसे हम सब किसी छोटे खुदा के बच्चे हों? कोई मूसा समन्दर दो-फाड़ कर देता है. कोई पैगम्बर चाँद को दो-फाड़ कर देता है. कोई बन्दर उड़ता है मीलों. पहाड़ उठा लाता है. सूरज निगल लेता है. किसी के गुरु पंजे से पहाडी से लुड़कती चट्टान रोक देते हैं. अब यह सब मानो तो आप धार्मिक हैं. पर आप धार्मिक नहीं, इन्सान के पट्ठे हैं. उल्लू की बे-इज़्ज़ती नहीं करनी चाहिए क्यूंकि वो ऐसी गपोड़ कहानियाँ मानते नहीं देखा गया. यूँ अंदर से तो इंसान भी जानता है कि यह सब बकवास है. इसीलिए ऐसी कहानियों के लिए शब्द है Gospels. जो Gossip शब्द से बना है. जिसका अर्थ है गप्पबाजी. और हिंदी में भी एक शब्द है 'मिथिहास', यानि कि मिथ्या इतिहास, झूठा इतिहास. पता सब को सब है लेकिन मानना किसी ने नहीं कि यह सब नहीं मानना चाहिए.
अक्सरियत (बहुमत) में जो हो, अक्सर वो होती मूढ़ता ही है. चाहे धर्म कहो या डेमोक्रेसी.

Exposed Modi's Swachh Bharat Abhiyan-- पर्दा-फाश मोदी के स्वच्छ भारत अभि...

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मार्किट में नया है. टेढ़ा है पर मेरा है. देखिये और टीका टिपण्णी भी टीपीए, हम न नहीं कहेंगे करीना के बापू की तरह. .
But the POINT is, if we support an idiocy just to confront another idiocy, we are adding something to it, not subtracting.

"नाम में क्या रखा है"

ग़लत कहा था शेक्सपियर ने कि नाम में क्या रखा है. अगर नहीं रखा, तो क्यूँ नहीं लोग अपना नाम 'कुत्ता' रख लेते? हाँ, कुत्ते का नाम 'टाइगर' ज़रूर रखते हैं. हम पूछते हैं, "क्या शुभ नाम है आपका?" उसकी वजह है, नाम हमेशा शुभ ही रखे जाते हैं. लेकिन शुभ नाम वाले जब अशुभ सिद्ध हुए तो फिर वो नाम कम ही रखे जाते हैं. जैसे सीता शब्द का अर्थ है, वह रेखा जो जमीन जोतते समय हल की फाल के धँसने से पड़ती जाती है या फिर हल से जुती भूमि. लेकिन फिर भी हिन्दू समाज अपनी बेटियों का नाम जल्दी से सीता नहीं रखता. चूँकि सीता के साथ जैसा हुआ, वो शुभ नहीं था. वो सारी उम्र जंगलों में ही भटकती रही. अब मेघ-नाद शब्द का अर्थ है जिसका आवाज़ बादलों के गर्जन जैसी हो. अब इसमें क्या बुरा है? अगर आवाज़ में दम हो तो बढ़िया है. जैसे अमिताभ बच्चन और राज कुमार अपनी आवाज़ की वजह से आज भी जाने-माने जाते हैं. लेकिन आपने शायद ही यह नाम दुबारा सुना हो. कंस शब्द का अर्थ है कांसा या फिर कांसे का बना कोई बर्तन. इसमें क्या खराबी है? लेकिन चूँकि कंस एक विलन माना जाता है, सो कोई नहीं रखता अपने बच्चे का नाम वैसा. दुर्योधन क...

"क्या सिर्फ मोदी-भक्त ही भक्त है?"

संघ ने नब्बे साल पहले एक बीज डाला था. जो पेड़ बना चुका. यह पेड़ नब्बे साल बाद स-फल हो ही गया. इस पर मोदी नाम का फल लगा जिसे कॉर्पोरेट मनी की हवा से फुला कर कुप्पा कर दिया गया. अब क्या संघी और क्या कुसंगी, मोदी-मोदी भज रहे हैं. नारा ही दे दिया,"हर-हर मोदी, घर-घर मोदी". भक्त क्या मोदी-मोदी भजने वाला ही है? वो तो है ही. लेकिन आप- हम झांके अपने अंदर कि क्या हम भी किसी के भक्त तो नहीं. अंध-भक्त. क्या हम हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मात्र इसलिए तो नहीं कि माँ ने दूध के साथ धर्म का ज़हर भी पिला दिया था, बाप ने चेचक के टीके के साथ मज़हब का टीका भी लगवा दिया था? दादा ने प्यार-प्यार में ज़ेहन में मज़हब की ख़ाज-दाद डाल दी थी? नाना ने अक्ल के प्रयोग को ना-ना करना सिखा दिया था? बड़ों ने लकड़ी की काठी के घोड़े दौड़ाना तो सिखाया लेकिन अक्ल के घोड़े दौड़ाने पर रोक लगा दी? क्या सिर्फ मोदी-भक्त ही भक्त है? असल में आप-हम सब भक्त हैं. भक्त क्या, रोबोट हैं. मशीन हैं. भक्त सिर्फ मोदी के ही नहीं है. भक्ति असल में खून में है लोगों के. सुना था लोग भगवान के भक्त हुआ करते थे पहले, लेकिन आज तो सचिन तेंदुल...

खबर की कबर

एक ज़माना था सलमा सुलतान, शम्मी नारंग का. क्या शालीनता थी! तब खबर सिर्फ खबर हुआ करती थी. आज तो टीवी खबरनवीस बिना साँस लिए ऐसे बोलते हैं, जैसे खाज खाए हुए कुत्ते इनके पीछे पड़े हों. खबर में मिर्च-मसाले डालते हैं, इतने ज़्यादा कि उसे बदमज़ा कर देते हैं. उसकी चटनी बना देंते हैं. उसे घोटे जायेंगे, पीसे जायेंगे, इतना कि जान ही निकाल देते हैं. आज के खबरनवीस कबरनवीस हैं. खबर को कबर तक पहुंचा कर दम लेते हैं और वक्त-बेवक्त ख़बर को कबर में से फिर-फिर उखाड़ लाते हैं.

whats-app ज्ञान- 4

न्यायालय मे पूरी ईमानदारी से काम होता है। सचिवालय मे पूरी ईमानदारी से काम होता है  नगरपालिका मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । आटीओ मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । हास्पिटल में पूरी ईमानदारी से काम होता है । इनकम टैक्स डिपार्टमेन्ट मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । सेल्स टैक्स डिपार्टमेन्ट मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । रेलवे डिपार्टमेन्ट मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । पासपोर्ट डिपार्टमेन्ट मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । सरकारी विद्यालयों मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । भारत के संसद मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । मिडिया मे पूरी ईमानदारी से काम होता है । यहाँ तक की मुरदाघरो मे भी पूरी ईमानदारी से काम होता है। बस भारत के व्यापारी ईमानदारी से काम नहीं करते । जय हो भारत की जनता ।

व्हाट्स- एप - ज्ञान-- 3

पार्टी को:-- 100% छूट। चोर को:-- 50% छूट । जनता को:-- 5000 का भी हिसाब देना पड़ेगा, समझ नहीं आ रहा है कि ऐसे कौन सा काला धन निकलेगा ?? एक तनख्वाह से कितनी बार टैक्स दूँ और क्यों.......... मैनें तीस दिन काम किया,  तनख्वाह ली - टैक्स दिया मोबाइल खरीदा - टैक्स दिया रिचार्ज किया - टैक्स दिया डेटा लिया - टैक्स दिया बिजली ली - टैक्स दिया घर लिया - टैक्स दिया TV फ्रीज़ आदि लिये - टैक्स दिया कार ली - टैक्स दिया पेट्रोल लिया - टैक्स दिया सर्विस करवाई - टैक्स दिया रोड पर चला - टैक्स दिया टोल पर फिर - टैक्स दिया लाइसेंस बनाया - टैक्स दिया गलती की तो - टैक्स दिया रेस्तरां मे खाया - टैक्स दिया पार्किंग का - टैक्स दिया पानी लिया - टैक्स दिया राशन खरीदा - टैक्स दिया कपड़े खरीदे - टैक्स दिया जूते खरीदे - टैक्स दिया किताबें ली - टैक्स दिया टॉयलेट गया - टैक्स दिया दवाई ली तो - टैक्स दिया गैस ली - टैक्स दिया सैकड़ों और चीजें ली फिर टैक्स दिया, कहीं फ़ीस दी, कही बिल, कही ब्याज दिया, कही जुर्माने के नाम पे तो कहीं रिश्वत देनी पड़ी, ये सब ड्रामे के बाद गलती से सेविंग मे बचा तो फ...

Whats-app ज्ञान--2

हमारे पैसे हमारे अपने हैं। उन्हें हम नगद खर्च करें या ऑनलाइन - यह हमारी मर्ज़ी है। देश की सरकार को अगर कैशलेस ऑनलाइन व्यवस्था लागू करने की जल्दबाजी है तो बेहतर होगा कि वह  इसकी शुरूआत ख़ुद से करके हमारे आगे उदाहरण उपस्थित करे। काले धन की गोद में पली-बढ़ी पार्टियां जब देश को सदाचार का पाठ पढ़ाती है तो गुस्सा तो आएगा ही। हम भारत सरकार के कैशलेस लेन-देन के प्रस्ताव को तबतक के लिए खारिज करते हैं जबतक सरकार हमारी तीन मांगे नहीं मान लेती।  पहली मांग यह कि सरकार क़ानून बनाकर यह सुनिश्चित करे कि भाजपा सहित तमाम राजनीतिक दल भविष्य में कैश में कोई चंदा स्वीकार नहीं करेंगे। उन्हें दिया जाने वाला कोई भी चंदा या दान सिर्फ चेक, डेबिट कार्ड या इलेक्ट्रॉनिक वॉलेट के माध्यम से ही दिया जाए। जैसे हम आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं, हर पार्टी वित्तीय वर्ष के अंत में अपने आमद- खर्च का हिसाब अपने वेबसाइट पर ज़ारी करे। इनमें से किसी भी शर्त का उल्लंघन करने वाले दल की मान्यता ख़त्म करने का प्रावधान हो। दूसरी मांग यह कि देश के सभी दलों के राजनेता उड़नखटोले से घूम-घूमकर महंगी-महंगी रैलियों और जन सभाओं में अपनी ...

Whats-app ज्ञान--1

प्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साहब, नमस्ते, मेरा नाम प्रसाद है। मेरा Balanagar हैदराबाद में एक छोटा उद्योग है। मेरे  उद्योग की प्रति माह आमदनी लगभग 2 लाख रुपये है। इसका मतलब यह प्रति वर्ष 24 लाख रुपये है। ईमानदारी और सच्चाई से सभी छूटों के साथ मेरे द्वारा सरकार को लगभग 3 लाख आयकर का भुगतान किया जाना चाहिए। लेकिन मैं सिर्फ 30,000 भुगतान करता हूँ । क्यूं कर? मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ और कड़ी मेहनत और अध्ययन के साथ स्वयं को स्थापित किया । शुरू में मैंने नौकरी की, लेकिन एक एक पैसा बचा कर मैंने अपना उद्योग प्रारम्भ किया। मेरे परिवार की जरूरतों और जीवन यापन के लिए 1 लाख पर्याप्त है और अन्य 1 लाख मैंने अपने भविष्य के लिए  निवेश किया (सोने या शेयर या भूमि खरीदने में) जो एक लाख मैं परिवार के लिए खर्च करता हूँ ,उसमें 30000 परोक्ष रूप से किसी न किसी टैक्स के रूप में सरकार को जा रहा है। किराने का सामान से टीवी और मोबाइल तक के लिए मैं केवल टैक्स में 20 से 30% का भुगतान कर रहा हूँ। अगर मैं ड्रिंक की एक छोटी सी पार्टी का आनंद लेना चाहूँ जिस पर 3000 का खर्च आना है तो 60% सर...
दरवाज़ा खोला. सामने कोई जानने वाले थे. बोले,"ही...ही...ही.....बस इधर से गुज़र रहे थे, सोचा आपसे मिलते चलें." मैं, "ही...ही...ही.....सर, जब आप सिर्फ मुझ से मिलने आएं, तभी आपका स्वागत है. मैं बस यूँ ही मिलने वालों से नहीं मिलता, नमस्कार."
चन्दू ने गलती से एक अच्छा सा कच्छा क्या ऑनलाइन आर्डर कर दिया, वो तो कल से लगे हैं उसे बताने कि आपकी शिपमेंट यहाँ पहुँच गयी, यहाँ तक पहुँच गयी, बस पहुँचने ही वाली है...बस पहुँची कि पहुँची. मैसेज बॉक्स भरता जा रहा है और चन्दू की घबड़ाहट बढ़ती जा रही है....कच्छा ही आर्डर किया था या कुछ और? यह शिप से क्या भेजा जा रहा है? शायद VIP का कच्छा आर्डर करो तो VIP हो जाता है इन्सान, सो कच्छा भी समुद्री जहाज़ से भेजा जाता हो? चन्दू बेहद दुविधा में है.

Exposed Modi Ji's 'Jan-dhan-Yojna' ----मोदी जी की जन धन योजना बकवास है- ...

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Idiot Modi Government मोदी सरकार की बेवकूफ़ी

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सरकार नोट-बंदी में कहाँ गलत है- देखें Exposed- Our Government...

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MODI JI EXPOSED ON CASHLESS SOCIETY

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टिके रहना साहेब कैशलेस वाली बात पर... देना मत लोगों को कैश .....आपका फैसला बिलकुल सही है......और यूपी-पंजाब चुनाव तक तो बिलकुल मत देना.

Damn The Gyms See 100's Exciting, Slow-fast, Common-uncommon

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कहानी कैशलेस की

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“कासे कहूं?”

इधर कूआं, उधर खाई # नोट  न दें, तो पब्लिक  # वोट  न देगी और दें, तो वोही होगा, जैसा आज तक होता आया है छछूंदर गले अटकी है, न निगली जाए, न उगली जाए ऊँट पहाड़ के नीचे आ चुका, देखें कैसे निकलता है.

“HOLYSHIT”

यह बहुत ही कीमती शब्द है. कई बार कोई एक शब्द ही ढोल की पोल खोल देता है. यह एक शब्द काफ़ी है, विभिन्न तथा-कथित संस्कृतियों को छिन्न-भिन्न करने को. इस शब्द का अर्थ है 'पवित्र टट्टी'. मतलब जो कुछ भी पवित्र समझा जाता है, धार्मिक माना जाता है, टट्टी है. वाह! इससे आसान और कैसे समझाया जा सकता है? वाह! HOLYSHIT!!  # पवित्र # टट्टी !!!

"जो बीवी से करे प्यार, प्रेस्टीज से कैसे करे इनकार?"

# नास्तिक  कोई हो ही नहीं सकता....नास्तिक में भी  # आस्तिक  है...... # अस्तित्व  से कैसे कोई इनकार कर सकता है? जो अस्तित्व से इनकार करे उसे खुद के होने से इनकार करना होगा. करता रहे. कोर्ट भी आपकी न को ऐसे ही नहीं मानती, उसका भी सबूत देना होता है. और यहाँ सबूत मांगने वाला खुद ही सबूत है.पहले इस्तेमाल करे फिर विश्वास करें. कर ही रहे खुद को बरसों से इस्तेमाल, फिर भी  # विश्वास  नहीं है तो कोई क्या करे?
जब तक आप हिन्दू-मुसलमान बनते रहेंगे  तब तक आपको मोदी-ओवेसी मिलते रहेंगे.

#बेईमान कौन है, तुम या हम?#

नौकर पिछली तनख्वाह का हक़ तो अदा कर नहीं रहा और जिद्द कर रहा है, जबरदस्ती कर रहा है तनख्वाह बढ़वाने की. जिस चीज़ के आगे सरकारी शब्द लग चुका है वो सब सड़ चुकी है. सरकारी अस्तपाल बदबू मारता है, सरकारी स्कूल में बच्चों से लेबर कराई जाती है. सरकारी न्याय लेने के लिए पीढियां घिस जाती हैं, दाढ़ी से मूंछे बड़ी हो जाती हैं. #सरकारी सड़क खड़क चुकी हैं. सरकारी बस की बस हो चुकी है. सरकारी पुलिस दोनों तरफ से रिश्वत लेती है. कौन सही, कौन गलत, उसे कोई मतलब नहीं. थाने गुंडागर्दी के अड्डे हैं और पुलिस मुल्क का सबसे बड़ा माफ़िया. हर सरकारी चीज़ बस सरक रही है किसी तरह से. और सरकार को और टैक्स चाहिए. आप चाहे #कैशलेस हो जाओ, चाहे #लेसकैश लेकिन सरकार को और टैक्स चाहिए. कौन समझाए कि सरकार इसलिए बकवास नहीं थी कि उसे जनता टैक्स कम दे रही थी? वो इसलिए बकवास थी चूँकि वो बकवास थी, वो बे-ईमान थी. अगर सरकारी कर्मचारी को कम पैसे मिलते होते तो काहे हर कोई सरकारी नौकरी के लिए मरा जा रहा है? अगर सरकार को पैसे कम पड़ रहे होते तो काहे हर कोई नेता बनने को जान देने को है? काहे रोज़ नेता अरबों रुपये के स्कैम में फंस रहे होते...

#फ़कीरी मेरी नज़र में#

पीछे मोदी जी ने खुद को फ़कीर क्या कह दिया सारा समाज फकीरी पर चर्चा करने लगा. एक रहिन ईर, एक रहिन बीर, एक रहिन फत्ते, एक रहिन हम. ईर कहिन फकीरी, बीर कहिन फकीरी, फत्ते कहिन फकीरी. तो फिर हमहू कहिन फकीरी. जिस फ़कीर को अपने  # फक्कड़पन  में ऐश्वर्य नज़र न आता हो, वो फ़कीर है ही नहीं. ऐश्वर्य का मतलब ऐश करना ही नहीं है, इसका मतलब ईश्वरीय होना भी है. हमारे यहाँ ‘महाराज’ शब्द राजा के लिए तो प्रयोग हुआ ही है, फकीर के लिए भी प्रयोग हुआ है. फ़कीर राजाओं का भी राजा है. वो महाराजा है. बुल्ले 'शाह' याद हैं.शाह शब्द पर गौर कीजिये. वो कोई बादशाह नहीं हैं, लेकिन फिर भी शाहों के शाह हैं. फकीरी का मतलब कोई झोला-वोला उठा कर, कटे-फटे कपड़े पहन कर जीना नहीं है. फकीरी का मतलब है, अलमस्त रहना. फकीरी का मतलब ‘अजीबो-गरीब’ होना नहीं है, फकीरी ‘अजीबो-अमीर’ होना है. दुनिया का सबसे अमीर आदमी भी फ़कीर हो सकता है. बिल गेट्स ने अपनी जायदाद का अधिकांश हिस्सा दान कर दिया, क्या यह फकीरी का लक्षण नहीं है? एक ऐश्वर्यशाली व्यक्ति ही फ़कीर हो सकता है.

करप्ट होना करप्ट है भी कि नहीं?

अमिताभ उतरता है अन्नू कपूर के साथ माल-गाड़ी के डिब्बे से. अन्नू कपूर कहता है कि ठंड बहुत लग रही है और भूख भी. अमिताभ उसे सुझाव देता है कि ठंड लगे तो भूख को याद करो, ठंड नहीं लगेगी और भूख लगे तो ठण्ड को याद करो, भूख नहीं लगेगी. एक आदमी सोया हो ठंड में और कद हो छह फ़ुट लेकिन कम्बल हो उसके पास पांच फ़ुट का. तो कैसे पूरा पड़ेगा उस पर? सर की तरफ खींचेगा तो पैरों की तरफ से नंगा हो जाएगा. पैरों की तरफ खींचेगा तो सर की तरफ से नंगा हो जाएगा. एक फिल्म में डायलाग था कि भूखा चोरी करे तो उसे चोरी नहीं कहते, लेकिन भरे पेट का चोरी करे उसे चोरी नहीं,  डकैती  समझना चाहिए. मेरे ख्याल में तो भरे पेट वाला भी कहीं न कहीं भूख का शिकार है. भूख के डर का शिकार. करप्शन कभी बंद नहीं हो सकता एक अभावग्रस्त समाज में. एक आर्थिक रूप से असुरक्षित समाज में. जयललिता के कपड़ों के अम्बार और जूतों की भरमार के पीछे क्या मानसिकता है? यही कि कल हो न हो. करप्शन सिर्फ एक लक्षण जो एक बीमार समाज की खबर दे रहा है. हम बीमारी खत्म करने की बजाए उसके लक्षणों,  सिमटोम पर टूट पड़े है. बीमारी है समाज का असंतुलन. एक सम...
मैं आठवीं जमात तक अंग्रेज़ी सीख चुका था...लेकिन शेक्सपियर का लेखन मुझे समझ नहीं आता था........ भाषा समझ लेने का अर्थ यह बिलकुल नहीं कि हमने जो पढ़ा, वो हमें समझ आ ही गया.....हम कुछ का कुछ समझ सकते हैं....अर्थ का अनर्थ कर सकते हैं...व्यर्थ कर सकते हैं......मतलब आदमी अपने हिसाब से निकालता है जनाब. ऐसे मतलब जिनका लेखक के मतलब से कोई मतलब ही नहीं होता.
सही वक्त है कि संसद-सड़क, मंत्री-संत्री, चौपाल-हाल-बेहाल, सब बहस करें कि सरकार कितना लगान वसूल कर सकती है ज़्यादा से ज़्यादा. क्या इस पर भी कोई सीमा होनी चाहिए कि नहीं?
अरुण जेटली हैं वित्त-मंत्री. वैसे सुना था कि अमृतसर में जो इलेक्शन  फाइट किया था इनने, तो रिकॉर्ड बनाया था. हारने का जी. अजीब है हमारे यहाँ के कानून. जिसकी काबलियत पर जनता को यकीन पहले ही नहीं था उसे सरकार ने मंत्री बना दिया. अब मंत्री ने मंत्र मार दिया है. देखते जाईये, भारत की इकॉनमी बीस दिन बाद ही आसमान छूने लगेगी. ठीक वैसे ही जैसे जादूगर का ज़मूरा बिना सहारे की रस्सी पर चढ़ आसमान छूने लगता है. 

"शेख-चिल्ली और कैश-लेस भारत"

शेख-चिल्ली की मशहूर कहानी है. सर में टोकरी रखी है उसके और कुछ अंडे हैं उसमें वो लगा है कल्पना के घोड़े दौडाने. इन अण्डों में से मुर्गे-मुर्गियां निकलेगीं. फिर उनके बच्चे होंगे. फिर उनके बच्चों के बच्चे होंगे और इस तरह से एक बड़ा पोल्ट्री फार्म होगा. और कुछ ही समय में वो अमीर हो जाएगा. लेस-कैश वाला भारत कुछ ही दिन में कैश-लेस ले-दे करेगा और सरकार को कई गुणा टैक्स देगा और बदले में सरकार इस पैसे से हर भारतीय को कई गुणा अमीर कर देगी. मालामाल. शेख-चिल्ली को ठोकर लगी थी और सर पे रखी अंडे की टोकरी ज़मीन पर और अण्डों का क्या हुआ होगा ...आप खुददे बहुत समझदार हैं, सोच सकते हैं.
“कैश-लेस बनेगा इंडिया, तब्बी तो बढ़ेगा इंडिया” वो तो ठीक है सर जी, लेकिन अपने ‘भारत’ का क्या होगा?
वो कौन कह रहा था कि फ़ौज का कहा ब्रह्म-वाक्य होता है, अगर वो कह रही है सर्जिकल स्ट्राइक हुई है तो हुई है? वैसे आज ही नवभारत टाइम्स के मुख-पत्र पर फ़ौज के किसी बड़े अफ़सर के गिरफ्तार होने की खबर है. नहीं, कोई ख़ास बात नहीं जी. सिर्फ रिश्वत के चक्कर में जी.

"मोदी की खतरनाक राजनीति"

मोदी अपना वोट बैंक बदल रहा है, वो भिखमंगे और जिनके पल्ले कुछ नहीं था, उनको टारगेट कर रहा है. उसे पता है, कि ये लोग jealous थे अमीरों से, और ये निहायत खुश हैं. उसे वोट अच्छा नौकरी पेशा देगा. या फिर जो कुछ भी पैसा नहीं जोड़ नहीं पाया, वो देगा. व्यापरी जी जान लगा देगा, मोदी को गिराने में. यह पक्का है. शत प्रतिशत. और मोदी को अब इस व्यापारी के पैसे की ज़रूरत नहीं है, चूँकि उसके पास टॉप-मोस्ट व्यापारी हैं, अम्बानी, अदानी. सो उसे अब छुट-पुट लोगों की कोई ज़रूरत नहीं है. और वोट वो इन्ही का पैसा फेंक कर, फिर से खींच लेगा, ऐसी उसे समझ है. ये जो लोग मोदी-मोदी के नारे उछाल रहे हैं, वो बहुत पेड होंगे. अपनी पार्टी rti में लायेंगे नहीं. अपना पैसा पहले ही सफेद कर चुके दूसरी दलों को कंगला कर दिए, अब आगे फिर से अँधा पैसा प्रयोग होगा, और वो बीजेपी की तरफ से होगा और शुरू हो भी चुका असल में. यह है राजनीति.
SOMETHING IS BETTER THAN NOTHING. REALLY? NOTHING IS BETTER THAN SOMETHING BAD.
जिस तरह का प्रजातंत्र है अभी, वो हमें कम से कम जो घटिया हो, उसे चुनने का मौका देता है, चूँकि ये प्रजातंत्र है ही नहीं.
ਸਰਕਾਰ ਸਮਝਾਊਂਦੀ ਰਹੀ ਜਨਤਾ ਨੂੰ,"ਸਾਰਾ ਜਾਂਦਾ ਵੇਖੀਏ, ਤੇ ਅਧਾ ਦੇਯੀਏ ਵੰਡ" ਪਰ ਹੁਣ ਤਾਂ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ, "ਟਕੇ ਦੀ ਬੁੜੀ, ਤੇ ਆਨਾ ਸਿਰ ਮੁਨਾਈ"
मुल्क को "लेस कैश" देकर "कैश लेस" करने का गुप्त प्रयास भी इन्हें की खोपड़ियों पर गिरेगा, जिसमें भेजा कुदरत ने भेजा ही नहीं.
साम्भा--- आखिर कितने दिन और जनता का पैसा बैंकों में ही रोके रखना है सरदार, मतलब सरकार? सरदार मतलब सरकार--- ऐसे तो हम जनता को जीने लायक कैश दे ही रहे हैं....और थोड़े दिन में अधिकांश लोग कैश-लेस ले-दे करने लगेंगे. साम्भा-- सरदार मतलब सरकार, और थोड़े दिन में तो बहुत लोग वैसे ही कैश-लेस हो जायेंगे. न रहेगा बांस, न बजेगी बंसरी. दंगा ही न हो जाए? सरदार मतलब सरकार---- ऐसा कुछ नहीं होगा, जब पचास-पचास कोस तक कोई हमें कोस रहा होता है तो समझदार लोग कहते हैं ,"चुप हो जा पगले नहीं तो सरदार, मतलब सरकार आ जाएगी."

"सरकार की समझ सरकारी है, सो राम-लीला ज़ारी है"

भारत की आबादी—1.25 करोड़ ग़रीबी रेखा के नीचे—22 करोड़ एडल्ट- 60 प्रतिशत ग़रीबी रेखा के नीचे तकरीबन 13 करोड़ लोग एडल्ट होंगे. अगर इनमें से आधे लोगों के कैसे भी खाते हों तो हुई 6.5 करोड़ और अगर हरेक के खाते में एक लाख भी जमा हुआ तो कुल हुआ 6.5 लाख करोड़ रुपैया. और यह सिर्फ ग़रीबी रेखा से नीचे के लोग हैं. ग़रीबी रेखा के आस-पास के लोगों को भी मिला लें तो यह संख्या सहज ही सरकार के चौदह-पन्द्रह लाख करोड़ रुपियों को पार कर जानी है. मतलब यह कि काश सरकते हुए आर्थिक रूप से निचले तबके के खातों में कई दिशाओं तक पहुंचा है, जैसे एडवांस सैलरी दी जा रही है साल भर की. मतलब यह कि निचला तबका कहीं तो काम-धंधा करता है न तो उसको काम देने वाले लोग उसके ज़रिये काश अकाउंट तक पहुंचाएंगे कि नहीं. ज़रा सी समझ नहीं आई सरकार को. काश रातों-रात बदला नहीं जा सकता था. उसके लिए समय चाहिए ही था और उसी समय में यह सब हो जाएगा, इसे सरकार समझ ही नहीं पाई. जो रास्ते देने ही पड़ने थे, उन्ही रास्तों से यह सब होगा ही सरकार समझ ही नै पाई. चूँकि सरकार की समझ सरकारी है. सरक सरक कर चलती है. अब लगे हैं, विभिन्न तरह से ज़बरन लोगों को कै...

"टाइटैनिक और नोट-बंदी"

टाइटैनिक फिल्म देखी सुनी होगी आपने. वो जो जहाज़ जिसका नाम टाइटैनिक था, वो कहते हैं कि किसी आइस-बर्ग से ही टकराया था. आइस-बर्ग समझते ही होंगे आप कि क्या होता है. बर्फ की ये बड़े बड़ी चट्टान. आइस-बर्ग सिर्फ दस प्रतिशत ही नज़र आता है. नब्बे प्रतिशत नीचे समुद्र में होता है. आपको ये जो कतार दिख रही हैं न नोट-बंदी की वजह से बैंक और एटीएम के आगे, और ये जो समस्याओं का आपको हमें सामना करना पड़ रहा है रोज़-मर्रा के जीवन में, डे-टू-डे लाइफ की प्रॉब्लम, ये आइस-बर्ग का वो हिस्सा है जो ऊपर से नज़र आता है, दस प्रतिशत. ये नज़र आ रहा है , इसलिए सब ऊपर से नीचे तक के लोग, पक्ष विपक्ष के लोग इसी पर जद्दो-जहद करने में जुटे हैं. इससे उपजी और उपजने वाली समस्याओं नब्बे प्रतिशत हिस्सा है वो है जो अभी लोगों को ठीक से नज़र नहीं आ रहा. वो है कि आप से सरकार टैक्स लेना चाहती है. वो भी डैकैतों जैसा. हर मोड़ पर, हर चौराहे पर, तिराहे पर. हर transaction पर. वो दो तो आप काम कर पाओगे, धंधा कर पाओगे, वरना आप अपराधी. जब तक आप इस आइस-बर्ग नब्बे प्रतिशत हिस्सा जो ओझल है, उसे नहीं देख पाएंगे, उसे मुद्दा नहीं बनायेंगे, आपका ट...

“चोर कौन – हम या सरकार?”

मास्टर जी- फर्स्ट अप्रैल को मुर्ख दिवस क्यों कहते है? पप्पू- हिंदुस्तान की सबसे समझदार जनता,पूरे साल गधो की तरह कमा कर थर्टी फर्स्ट मार्च को अपना सारा पैसा टैक्स मे सरकार को दे देती है। और फर्स्ट अप्रैल से फिर से गधो की तरह सरकार के लिए पैसा कमाना शुरू कर देती है। इस लिए फर्स्ट अप्रैल को मुर्ख दिवस कहते है। बहुत पहले कभी यह 20 पॉइंट का आर्टिकल पढ़ा था. लेखक का नाम नहीं पता, उनको धन्यवाद देते हुए पेश कर रहा हूँ. 1) सवाल-- आप क्या करते हैं? जवाब – व्यापार टैक्स- प्रोफेशनल टैक्स भरो 2) सवाल-- आप क्या व्यापार करते हैं? जवाब – सामान बेचता हूँ टैक्स- सेल टैक्स भरो 3) सवाल-- सामान खरीदते कहाँ से हो? जवाब –देश के दूसरे प्रदेशों से और विदेश से टैक्स- केन्द्रीय सेल टैक्स भरो, कस्टम ड्यूटी भरो, चुंगी भरो 4) सवाल-- आपको क्या मिल रहा है ? जवाब – लाभ टैक्स- इनकम टैक्स भरो 5) सवाल-- लाभ बांटते कैसे हैं? जवाब –डिविडेंड द्वारा टैक्स- डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स भरो 6) सवाल-- सामान बनाते कहाँ हो? जवाब – फैक्ट्री में टैक्स- एक्साइज ड्यूटी भरो 7) सवाल-- स्टाफ भी है क्या? जवाब –हाँ टैक्...
देशद्रोही-- सर जी, मेरे एक दोस्त को अधरंग था. भक्त--- दुःख की बात है लेकिन मुझे क्यों बता रहा है? देशद्रोही-- सर जी, उसका एक दोस्त एथलेटिक का कोच था. भक्त--- तो मुझे क्यों बता रहा है? देशद्रोही-- सर जी, सुनो तो, वो कोच दोस्त उसे अंतर-राष्ट्रीय एथलेटिक प्रतियोगिता में जबरदस्ती ले गया. भक्त--- बढ़िया है. देशद्रोही-- और न सिर्फ ले गया, बल्कि वहां सौ मीटर की दौड़ में दौड़ा भी दिया. भक्त--- हम्म...... लेकिन मुझे क्यों बता रहा है? देशद्रोही-- वो मर गया सर जी. भक्त--- दुःख की बात है यार यह तो. देशद्रोही-- सर जी, क्या बेहतर नहीं था कि पहले उसे ठीक हो जाने देते. ताकि उसके अंग-प्रत्यंग ठीक से काम कर सकें? फिर उसे वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग दी जाती, फिर दौड़ा लेते. प्रतियोगिता ठीक से फाइट तो करता वो, और क्या पता कोई मैडल भी जीत लेता? भक्त— बात तो ठीक है यार तेरी. देशद्रोही-- सर जी, वो दोस्त और कोई नहीं मेरा भारत है, जिसकी आधी आबादी की इकॉनमी को अधरंग हो रखा है, पहले ही कैश-लेस थी, उसके पास ठीक से रहने, खाने तक का कैश नहीं था, उसे मोदी जी जबरन...