देशद्रोही-- सर जी, मेरे एक दोस्त को अधरंग था.
भक्त--- दुःख की बात है लेकिन मुझे क्यों बता रहा है?
भक्त--- दुःख की बात है लेकिन मुझे क्यों बता रहा है?
देशद्रोही-- सर जी, उसका एक दोस्त एथलेटिक का कोच था.
भक्त--- तो मुझे क्यों बता रहा है?
देशद्रोही-- सर जी, सुनो तो, वो कोच दोस्त उसे अंतर-राष्ट्रीय एथलेटिक प्रतियोगिता में जबरदस्ती ले गया.
भक्त--- बढ़िया है.
देशद्रोही-- और न सिर्फ ले गया, बल्कि वहां सौ मीटर की दौड़ में दौड़ा भी दिया.
भक्त--- हम्म...... लेकिन मुझे क्यों बता रहा है?
देशद्रोही-- वो मर गया सर जी.
भक्त--- दुःख की बात है यार यह तो.
देशद्रोही-- सर जी, क्या बेहतर नहीं था कि पहले उसे ठीक हो जाने देते. ताकि उसके अंग-प्रत्यंग ठीक से काम कर सकें? फिर उसे वर्ल्ड क्लास ट्रेनिंग दी जाती, फिर दौड़ा लेते. प्रतियोगिता ठीक से फाइट तो करता वो, और क्या पता कोई मैडल भी जीत लेता?
भक्त— बात तो ठीक है यार तेरी.
देशद्रोही-- सर जी, वो दोस्त और कोई नहीं मेरा भारत है, जिसकी आधी आबादी की इकॉनमी को अधरंग हो रखा है, पहले ही कैश-लेस थी, उसके पास ठीक से रहने, खाने तक का कैश नहीं था, उसे मोदी जी जबरन कैशलेस करने लगे हैं. वो मर जाएगा सर जी.
भक्त—अबे चोप्प!देशद्रोही!!
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