Sunday, 4 December 2016

देशद्रोही--- सर जी, आप तो घोर राष्ट्रवादी हैं. नहीं?
भक्त---- हैं. कोई शक? घोर ही नहीं घनघोर हैं.
देशद्रोही------ सर जी, आप तो भारतभूमि को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं, नहीं?
भक्त— बिलकुल भारत ही विश्व-गुरु था और विश्व-गुरु बनेगा.
देशद्रोही--- सर जी आप तो “वसुधैव कुटुम्बकम” की धारणा में भी विश्वास करते हैं. नहीं?.
भक्त— बिलकुल, यह महान विचार भी अपने ही राष्ट्र की देन है.
देशद्रोही--- सर जी आप तो “विश्व बंधुत्व” की धारणा में भी विश्वास करते होंगे. नहीं?
भक्त— बिलकुल, यह महान विचार भी अपने ही राष्ट्र की देन है.
देशद्रोही-- सर जी, अगर सच में ही आप “वसुधैव कुटुम्बकम” और “विश्व बंधुत्व” में यकीन करते हैं तो आप की यह जिद्द नहीं होती कि भारत ही सर्वश्रेष्ठ है. यह घमण्ड नहीं तो और क्या है?
भक्त—अबे चोप्प!
देशद्रोही--- कुटुम्ब तो कुटुम्ब है न सर जी, कोई एक ही व्यक्ति महान हो, बाकी हीन हों तो यह कैसा कुटुम्ब होगा?
एक ही व्यक्ति गुरु रहे हमेशा, यह कैसा कुटुम्ब होगा?
किसी बंधुत्व में एक ही व्यक्ति महान हो, एक ही व्यक्ति विशेष रहे, एक ही व्यक्ति गुर रहे, यह कैसा बंधुत्व होगा?
यह कैसा संतुलन होगा?
नहीं सर जी, आपका राष्ट्र-वाद सिवा आपे घमंड के विस्तार के कुछ भी नहीं.
भक्त—अबे चोप्प! देशद्रोही!!

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