Thursday, 8 December 2016

"सरकार की समझ सरकारी है, सो राम-लीला ज़ारी है"

भारत की आबादी—1.25 करोड़ ग़रीबी रेखा के नीचे—22 करोड़ एडल्ट- 60 प्रतिशत ग़रीबी रेखा के नीचे तकरीबन 13 करोड़ लोग एडल्ट होंगे. अगर इनमें से आधे लोगों के कैसे भी खाते हों तो हुई 6.5 करोड़ और अगर हरेक के खाते में एक लाख भी जमा हुआ तो कुल हुआ 6.5 लाख करोड़ रुपैया. और यह सिर्फ ग़रीबी रेखा से नीचे के लोग हैं. ग़रीबी रेखा के आस-पास के लोगों को भी मिला लें तो यह संख्या सहज ही सरकार के चौदह-पन्द्रह लाख करोड़ रुपियों को पार कर जानी है. मतलब यह कि काश सरकते हुए आर्थिक रूप से निचले तबके के खातों में कई दिशाओं तक पहुंचा है, जैसे एडवांस सैलरी दी जा रही है साल भर की. मतलब यह कि निचला तबका कहीं तो काम-धंधा करता है न तो उसको काम देने वाले लोग उसके ज़रिये काश अकाउंट तक पहुंचाएंगे कि नहीं. ज़रा सी समझ नहीं आई सरकार को. काश रातों-रात बदला नहीं जा सकता था. उसके लिए समय चाहिए ही था और उसी समय में यह सब हो जाएगा, इसे सरकार समझ ही नहीं पाई. जो रास्ते देने ही पड़ने थे, उन्ही रास्तों से यह सब होगा ही सरकार समझ ही नै पाई. चूँकि सरकार की समझ सरकारी है. सरक सरक कर चलती है. अब लगे हैं, विभिन्न तरह से ज़बरन लोगों को कैश के बिना लेन-देन करवाने. सब उल्टा गिरेगा इन्ही की उलटी खोपड़ियों परम जिनमें भेजे को कुदरत ने भेजा ही नहीं. देखते जाइए, राम-लीला ज़ारी है.

No comments:

Post a Comment