खबर की कबर

एक ज़माना था सलमा सुलतान, शम्मी नारंग का. क्या शालीनता थी! तब खबर सिर्फ खबर हुआ करती थी. आज तो टीवी खबरनवीस बिना साँस लिए ऐसे बोलते हैं, जैसे खाज खाए हुए कुत्ते इनके पीछे पड़े हों. खबर में मिर्च-मसाले डालते हैं, इतने ज़्यादा कि उसे बदमज़ा कर देते हैं. उसकी चटनी बना देंते हैं. उसे घोटे जायेंगे, पीसे जायेंगे, इतना कि जान ही निकाल देते हैं. आज के खबरनवीस कबरनवीस हैं. खबर को कबर तक पहुंचा कर दम लेते हैं और वक्त-बेवक्त ख़बर को कबर में से फिर-फिर उखाड़ लाते हैं.

Comments

Popular posts from this blog

Osho on Islam

RAMAYAN ~A CRITICAL EYEVIEW