"अब तक का '#ट्रिपल_तलाक' का विरोध और सहयोग--दोनों बकवास"
मैं मुसलमानों के ट्रिपल तलाक का कुछ कुछ पक्षधर हूँ, कुछ कुछ पक्षधर नहीं हूँ.
कोई शादी तब तक नहीं होगी जब तक लड़का, लड़की दोनों अलग-अलग कमाने-खाने के लायक न हों. कम से कम पांच साल का रिकॉर्ड दें. एक छोटा loan लेना हो तो बैंक तीन साल के फाइनेंसियल मांगता है और दो लोग परिवार बनायेंगे, बच्चे पैदा करेंगे, उनकी फाइनेंसियल ताकत कोई ढंग से नहीं पूछता और लड़की की तो बिलकुल नहीं!
तलाक तो तुरत ही होना चाहिए. कुछ रद्दो-बदल के साथ.वर्षों-दशकों तक तलाक के लिए एडियाँ रगड़ना कहाँ की अक्ल है? दो लोग नहीं रहना चाहते साथ, बात खत्म हो गई और क्या सबूत चाहिए. शादी निरा कॉन्ट्रैक्ट है, आप माने या न मानें. लेकिन कॉन्ट्रैक्ट की शर्तें बदलने की ज़रुरत है. अक्सर झगड़े तब पड़ते हैं जब कॉन्ट्रैक्ट पुख्ता तरीके से न बना हो. अगर कॉन्ट्रैक्ट एयर-टाइट हो तो लोग कोर्ट जाने की हिम्मत ही नहीं करते. प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ और अच्छे से जानता हूँ कि अधिकांश कॉन्ट्रैक्ट ही निकम्मे होते हैं. अगर कॉन्ट्रैक्ट बनाने पर मेहनत कर ली जाए तो मुकद्दमों की नौबत ही न आए.
सो शादी के कॉन्ट्रैक्ट को गोल-मोल न रख के, सब पहले से निश्चित किया जाना ज़रूरी है. पश्चिम में prenuptial कॉन्ट्रैक्ट बनाए जाते हैं. वो सब जगह होने चाहियें. यह सात-आठ जन्म के साथ वाली बात बकवास है. सीधा सीधा हिसाबी-किताबी रिश्ता होता है. कानूनी बंधन. कहते भी हैं. सिस्टर-इन-लॉ. कानूनी बहन. असल में तो आधी घर वाली ही मानते हैं.Brother-in-law देवर को कहते हैं. कानूनी भाई. लेकिन असल में दूसरा वर भी माना जाता है. और कई समाजों में तो पति के मर जाने के बाद देवर के साथ ही भाभी की शादी कर दी जाती है. एक चादर मैली सी. एक फिल्म है देख लीजिए अगर मौका मिले तो.
तो बातें साफ़ करें. तलाक ट्रिपल ही क्यूँ? सिंगल होना चाहिए और वो दोनों तरफ से हो सकता हो, ऐसा होना चाहिए. और उसके बाद बच्चे का खर्चा आधा-आधा दें माँ-बाप, छुट्टी. वैसे तो बच्चे समाज के होने चाहियें. सार्वजनिक. लेकिन जब तक वहां नहीं पहुँचता समाज, तब तक के लिए यह इंतेज़ाम किया जा सकता है. या बच्चा सामाजिक हो या सार्वजनिक, इसको ऑप्शनल भी रखा गया हो यदि किसी समाज में, वहां भी मेरे वाल सुझाव काम आ सकते हैं.
और जिन भी लोगों ने ट्रिपल तलाक के पक्ष या विपक्ष में आज तक कहा है, लिखा है सब बकवास है. सब लगे बंधे दायरों के सवाल जवाब हैं. स्त्रियाँ तो इसलिए पक्षधर हैं कि उन्हें तलाक के बाद अलिमनी मिलती रहे और पुरुष इसलिए विरोध कर रहे हैं कि देना न पड़े कुछ और तर्क यह है कि कुरान में ऐसा नहीं लिखा. अब लिखा, नहीं लिखा, वो तो यही जाने. पहले तो यही साबित नहीं हो पता कि इन पवित्र ग्रन्थों में लिखा क्या है. खैर, मेरी नज़र और नज़रिया किसी भी धर्म या धर्म ग्रन्थ से नहीं बधा है. न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर.
शादी का हक़ जन्म-सिद्ध अधिकार नहीं होना चाहिए. यह Birth Right नहीं होना चाहिए, यह Earned Right होना चाहिए, कमाया हुआ हक़. स्त्री पुरुष दोनों के लिए. और तलाक ट्रिपल नहीं होना चाहिए, सिंगल होना चाहिए. तुरत.
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