Sunday, 4 December 2016

देशद्रोही--- सर जी, मोदीजी के कार्यकाल की कोई उपलब्धि और बताएं.
भक्त----- मोदी जी ने “मेक इन इंडिया” चलाया.
देशद्रोही--- लेकिन सर जी, सुना है वो ‘मेक इन इंडिया’ का शेर भी इंडिया से बाहर की कम्पनी ने बनाया है.
भक्त- उससे क्या होता है? तुम उनकी योजना का मतलब समझो.
देशद्रोही-----सर जी, लेकिन “मेड इन इंडिया” क्यूँ नहीं? या “मेड इन इंडिया बाय इंडियन” क्यूँ नहीं? मतलब हम भारतीयों के हाथ पैर, दिमाग कुछ कम है कि हमारे मुल्क में हम आमंत्रित करें दुनिया भर को कि आओ और यहाँ आकर उद्योग लगाओ. मतलब मोदी जी ने यह पहले से ही कैसे मान लिया कि हम खुद कुछ नहीं बना सकते?
भक्त---- अरे वो बाहर से टेक्नोलॉजी आयेगी, बाहर के तकनीशियन आयेंगे, बाहर की पूंजी आयेगी तो यहाँ रोज़गार पैदा होगा.
देशद्रोही--- मतलब न हम तकनीक पैदा कर सकते हैं, न सीख सकते हैं, न पूंजी पैदा कर सकते हैं. और न ढंग का रोज़गार. हम सिर्फ लेबर टाइप काम ही कर सकते हैं. यही न?
भक्त- अरे भाई, हमारे पास अपार युवा शक्ति है, इसे रोज़गार भी तो देना है कि नहीं.
देशद्रोही--- सर जी, उसके लिए “मेक-इन-इंडिया” क्यों? मेड-इन-इंडिया क्यों नहीं? मैक-डोनाल्ड बेकार सा बर्गर हमारे मुल्क में बेच सकता है, डोमिनो पिज़्ज़ा बेच-बेच अमीर बन सकता है तो हम अपना डोसा, अपने छोले भटूरे, अपने परांठे वर्ल्ड लेवल पर क्यूँ नहीं ले जा सकते? रामदेव सौ-सौ साल पुराने कम्पनी को जड़ से उखाड़ सकते हैं तो मेड-इन-इंडिया क्यों नहीं? श्री श्री रविशंकर भी बढ़िया प्रोडक्ट बना रहे हैं तो मेड-इन-इंडिया क्यों नहीं?
भक्त—अबे कैसे कहूँ चोप, देशद्रोही? अबकी बार तो समझ ही नहीं आ रहा यार.

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