करप्ट होना करप्ट है भी कि नहीं?

अमिताभ उतरता है अन्नू कपूर के साथ माल-गाड़ी के डिब्बे से. अन्नू कपूर कहता है कि ठंड बहुत लग रही है और भूख भी. अमिताभ उसे सुझाव देता है कि ठंड लगे तो भूख को याद करो, ठंड नहीं लगेगी और भूख लगे तो ठण्ड को याद करो, भूख नहीं लगेगी.

एक आदमी सोया हो ठंड में और कद हो छह फ़ुट लेकिन कम्बल हो उसके पास पांच फ़ुट का. तो कैसे पूरा पड़ेगा उस पर? सर की तरफ खींचेगा तो पैरों की तरफ से नंगा हो जाएगा. पैरों की तरफ खींचेगा तो सर की तरफ से नंगा हो जाएगा.

एक फिल्म में डायलाग था कि भूखा चोरी करे तो उसे चोरी नहीं कहते, लेकिन भरे पेट का चोरी करे उसे चोरी नहीं,  डकैती  समझना चाहिए. मेरे ख्याल में तो भरे पेट वाला भी कहीं न कहीं भूख का शिकार है. भूख के डर का शिकार.

करप्शन कभी बंद नहीं हो सकता एक अभावग्रस्त समाज में. एक आर्थिक रूप से असुरक्षित समाज में. जयललिता के कपड़ों के अम्बार और जूतों की भरमार के पीछे क्या मानसिकता है? यही कि कल हो न हो.

करप्शन सिर्फ एक लक्षण जो एक बीमार समाज की खबर दे रहा है. हम बीमारी खत्म करने की बजाए उसके लक्षणों,  सिमटोम पर टूट पड़े है.

बीमारी है समाज का असंतुलन. एक समाज जहाँ कोई कोठड़ी में है तो कोई कोठी में. कहीं किसी के पास दस कमरों का घर है तो कहीं दस आदमी एक कमरे में सोते हैं. ऐसे समाज में करप्शन खत्म होगा? होना भी चाहिए?

ऐसे समाज में करप्शन बंद कभी नहीं हो सकती. आप लाख कोशिश कर लें.



लाओत्से की ख्याति बहुत थी कि पंहुचा हुआ फ़कीर है. राजा ने उसे जबरन न्याय-मंत्री बना दिया गया. अब एक सेठ आया कि चोर ने उसका गल्ला चुरा लिया. लाओत्से ने चोर को स्कूल में पढने की सज़ा दी, स्टेट के खर्चे पर, तब तक जब तक वो अच्छा कमाने लायक न हो जाए.  और बीस कोड़े की सज़ा दी सेठ को. राजा हैरान! लाओत्से को कारण बताने को कहा. लाओत्से कहते हैं कि इस सेठ ने मजबूर किया कि चोर चोरी करे. इसने अभाव क्रिएट किया. राजा कुछ कह पाता उससे पहले ही लाओत्से ने तीस कोड़े वित्त-मंत्री को भी मारने को कहा. राजा ने कारण पूछा? लाओत्से ने कहा, “चूँकि यह मंत्री ऐसी वित्तीय प्रणाली पैदा ही नहीं कर सकता कि किसी को चोरी न करनी पड़े. इसलिए यह गुनाह-गार है.” राजा हैरान! अब लाओत्से ने चालीस कोड़े राजा को मारने का हुक्म दिया. अब राजा की हिम्मत नहीं हुई आगे पूछने की. वो समझ गया कि लाओत्से का जवाब क्या होना था.


राजा तो समझ गया आप समझे कि नहीं? ये जो राजा है, वही ज़िम्मेदार है. चोर चोरी करता है और उस पर ध्यान न जाए इसलिए वही सबसे ज़्यादा चिल्लाता है, “चोर, चोर, पकड़ो पकड़ो.” लोग समझते हैं कि कम से कम ये बेचारा तो चोर नहीं हो सकता.


हमारा नेता ही ज़िम्मेदार है, ऐसा बे-हिसाब समाज पैदा करने के लिए. और वो ही चिल्ला-चिल्ली कर रहा है कि करप्शन खत्म करेगा. कोई नोट बंद कर रहा है, तो कोई लोक-पाल कानून लाने को आमदा है. जड़ में कोई नहीं जाना चाहता कि एक करप्ट समाज में करप्ट होना करप्ट है भी कि नहीं?


लक्षणों से उलझे हैं सब, डायग्नोसिस ही नहीं करना चाहते, इलाज क्या ख़ाक करेंगे?

नमन....तुषार कॉस्मिक. कॉपी राईट लेखन
  



Comments

Popular posts from this blog

Osho on Islam

RAMAYAN ~A CRITICAL EYEVIEW