आक्रान्ता मुस्लिम था तो खालसा खड़ा हुआ.
आक्रान्ता मुस्लिम है तो ट्रम्प खड़ा हुआ.
आक्रान्ता मुस्लिम है तो आरएसएस खड़ा हुआ.
आक्रान्ता मुस्लिम है तो मोदी खड़ा हुआ.और लोगों ने उसे तमाम मूर्खताओं के बाद फिर से चुना.
खैर, इस्लाम के खिलाफ पूरी दुनिया को खड़ा होना चाहिए. समझना चाहिए.
सवाल यह नहीं है कि आप क्या मानते हैं. हो सकता है आप किसी धर्म-विशेष के खिलाफ न हों. आप अहिंसक हों. शांति-वादी हों. आप कुछ भी हों. किसी भी मान्यता के हों. लेकिन इस्लाम इस्लाम है.
आपको इस्लाम को अपने नजरिये से नहीं समझना है. इस्लाम को इस्लाम के नजरिये से समझना है. आप अपनी मान्यताएं इस्लाम पर मत थोपिए. यह देखिये कि इस्लाम खुद क्या मानता है. मेरे इन शब्दों से शायद उन लोगों को कुछ समझ आये जो यह कह रहे हैं कि खालसा इस्लाम के खिलाफ नहीं है. न हो खालसा इस्लाम के खिलाफ. न हो किसी और धर्म के खिलाफ. लेकिन इस्लाम सब धर्मों के खिलाफ है. इस्लाम आक्रामक था, इसलिए खालसा का उदय हुआ. और इस्लाम ने अपनी मान्यताएं कोई बदल नहीं ली हैं. वो आज भी वही है.
और दुनिया समझ भी रही है. खड़ी भी हो रही है. उस में इन्टरनेट/ सोशल मीडिया सहयोगी है.
दो फायदे हैं. आज आप बरगला नहीं सकते. सब ऑनलाइन मौजूद है. कुरान. उसका अनुवाद. व्याख्या. लेख. विडियो. बहुत कुछ. जरा श्रम कीजिये, सब समझ आ जायेगा.
पहले इस्लाम आवाज़ ही नहीं उठाने देता था.
आज भी ईश-निंदा का कानून है इस्लामिक मुल्कों में. आपने जरा बोला इस्लाम/ मोहम्मद के खिलाफ, तो वाज़िबुल-क़त्ल हो गए.
वो पाकिस्तान में एक आसिया बीबी का केस बड़ा आग पकड़ा था. उसके घर के बाहर शायद कुरान के कोई पन्ने मिले थे. बेचारी हो गयी वाज़िबुल-कत्ल.
कितने ही लोग मात्र इसलिए काट दिए गए कि उन्होंने इस्लाम के खिलाफ बोलने की जुर्रत की.
लेकिन अब यह बिलकुल नहीं रुक पायेगा.
आप कितना ही रोको. लोग रक्तबीज की तरह पैदा होंगे.
एक मारोगे, सौ पैदा होंगे. इन्टरनेट चीज़ ही ऐसी है.
इसलिए तमाम बकवास-बाज़ी के बावज़ूद सोशल मीडिया से ही सूर्य उगेगा और इस्लाम समेत तमाम धर्मों/ मज़हब का अँधेरा दूर होगा.
इस्लाम का सबसे ज़्यादा विरोध इसलिए ज़रूरी है चूँकि यह सबसे ज़्यादा हिंसक है. कुरान में गैर-इस्लामिक के खिलाफ सीधे हिदायत हैं. हिंसक हिदायत. और दुनिया भर में इसे मानने वाले फैले हैं.
और इसके विरोध में तमाम बेवकूफियां फैल रहीं हैं. इस्लाम की मूर्खताओं की वजह से लोग अपनी मूर्खताओं को छोड़ने की बजाए और कस के पकड़े हैं.
मोदी इसका उदहारण हैं. मोदी का पिछला टर्म देखो. गलतियों से भरा है. लेकिन फिर भी लोग जिता दिए. फिर भी हिन्दू-हिन्दू हो रही है.
मोदी कोई अपनी परफॉरमेंस की वजह से नहीं जीता है. बहुत बार वकील अपनी लियाकत से केस नहीं जीतते, सामने वाले की मूर्खताओं की वजह से जीतते हैं. मोदी हिन्दू की वजह से नहीं आया है. वो मुस्लिम की वजह से आया है. वोट चाहे उसे हिन्दू ने दिया है. लेकिन दिया मुसलमान के डर से है. सो असल में मोदी को पॉवर में लाने वाले असल में मुसलमान ही हैं.
माफिया के जवाब में गुंडे खड़े हैं. एक बार माफिया खत्म हो छोटे गुंडे अपने आप खत्म हो जायेंगे, समय- बाह्य हो जायेंगे. और इसमें सोशल मीडिया का प्रमुख रोल रहेगा ही.
अभी तो जुम्मा-जुम्मा कुछ साल ही हुए है सोशल मीडिया आये और आग लग गयी है धर्मों के खेमों में. देखते जाओ, बस कुछ ही दिन की बात और है. अंत में जीत तर्क की होगी, वैज्ञानिकता की होगी.
नमन...तुषार कॉस्मिक
आक्रान्ता मुस्लिम है तो ट्रम्प खड़ा हुआ.
आक्रान्ता मुस्लिम है तो आरएसएस खड़ा हुआ.
आक्रान्ता मुस्लिम है तो मोदी खड़ा हुआ.और लोगों ने उसे तमाम मूर्खताओं के बाद फिर से चुना.
खैर, इस्लाम के खिलाफ पूरी दुनिया को खड़ा होना चाहिए. समझना चाहिए.
सवाल यह नहीं है कि आप क्या मानते हैं. हो सकता है आप किसी धर्म-विशेष के खिलाफ न हों. आप अहिंसक हों. शांति-वादी हों. आप कुछ भी हों. किसी भी मान्यता के हों. लेकिन इस्लाम इस्लाम है.
आपको इस्लाम को अपने नजरिये से नहीं समझना है. इस्लाम को इस्लाम के नजरिये से समझना है. आप अपनी मान्यताएं इस्लाम पर मत थोपिए. यह देखिये कि इस्लाम खुद क्या मानता है. मेरे इन शब्दों से शायद उन लोगों को कुछ समझ आये जो यह कह रहे हैं कि खालसा इस्लाम के खिलाफ नहीं है. न हो खालसा इस्लाम के खिलाफ. न हो किसी और धर्म के खिलाफ. लेकिन इस्लाम सब धर्मों के खिलाफ है. इस्लाम आक्रामक था, इसलिए खालसा का उदय हुआ. और इस्लाम ने अपनी मान्यताएं कोई बदल नहीं ली हैं. वो आज भी वही है.
और दुनिया समझ भी रही है. खड़ी भी हो रही है. उस में इन्टरनेट/ सोशल मीडिया सहयोगी है.
दो फायदे हैं. आज आप बरगला नहीं सकते. सब ऑनलाइन मौजूद है. कुरान. उसका अनुवाद. व्याख्या. लेख. विडियो. बहुत कुछ. जरा श्रम कीजिये, सब समझ आ जायेगा.
पहले इस्लाम आवाज़ ही नहीं उठाने देता था.
आज भी ईश-निंदा का कानून है इस्लामिक मुल्कों में. आपने जरा बोला इस्लाम/ मोहम्मद के खिलाफ, तो वाज़िबुल-क़त्ल हो गए.
वो पाकिस्तान में एक आसिया बीबी का केस बड़ा आग पकड़ा था. उसके घर के बाहर शायद कुरान के कोई पन्ने मिले थे. बेचारी हो गयी वाज़िबुल-कत्ल.
कितने ही लोग मात्र इसलिए काट दिए गए कि उन्होंने इस्लाम के खिलाफ बोलने की जुर्रत की.
लेकिन अब यह बिलकुल नहीं रुक पायेगा.
आप कितना ही रोको. लोग रक्तबीज की तरह पैदा होंगे.
एक मारोगे, सौ पैदा होंगे. इन्टरनेट चीज़ ही ऐसी है.
इसलिए तमाम बकवास-बाज़ी के बावज़ूद सोशल मीडिया से ही सूर्य उगेगा और इस्लाम समेत तमाम धर्मों/ मज़हब का अँधेरा दूर होगा.
इस्लाम का सबसे ज़्यादा विरोध इसलिए ज़रूरी है चूँकि यह सबसे ज़्यादा हिंसक है. कुरान में गैर-इस्लामिक के खिलाफ सीधे हिदायत हैं. हिंसक हिदायत. और दुनिया भर में इसे मानने वाले फैले हैं.
और इसके विरोध में तमाम बेवकूफियां फैल रहीं हैं. इस्लाम की मूर्खताओं की वजह से लोग अपनी मूर्खताओं को छोड़ने की बजाए और कस के पकड़े हैं.
मोदी इसका उदहारण हैं. मोदी का पिछला टर्म देखो. गलतियों से भरा है. लेकिन फिर भी लोग जिता दिए. फिर भी हिन्दू-हिन्दू हो रही है.
मोदी कोई अपनी परफॉरमेंस की वजह से नहीं जीता है. बहुत बार वकील अपनी लियाकत से केस नहीं जीतते, सामने वाले की मूर्खताओं की वजह से जीतते हैं. मोदी हिन्दू की वजह से नहीं आया है. वो मुस्लिम की वजह से आया है. वोट चाहे उसे हिन्दू ने दिया है. लेकिन दिया मुसलमान के डर से है. सो असल में मोदी को पॉवर में लाने वाले असल में मुसलमान ही हैं.
माफिया के जवाब में गुंडे खड़े हैं. एक बार माफिया खत्म हो छोटे गुंडे अपने आप खत्म हो जायेंगे, समय- बाह्य हो जायेंगे. और इसमें सोशल मीडिया का प्रमुख रोल रहेगा ही.
अभी तो जुम्मा-जुम्मा कुछ साल ही हुए है सोशल मीडिया आये और आग लग गयी है धर्मों के खेमों में. देखते जाओ, बस कुछ ही दिन की बात और है. अंत में जीत तर्क की होगी, वैज्ञानिकता की होगी.
नमन...तुषार कॉस्मिक
No comments:
Post a Comment