Sunday, 28 July 2019

मेरी छोटी बेटी

जन्नत मेरी छोटी बेटी की आँखों में है. उसके लिए ज़िन्दगी चहकती है. महकती है.  खिलखिलाती है. 

हंसती है तो हंसती रहती है. हमें डर लगने लगता है. उसकी माँ कहती है, "इसपे जिन्न सवार हो गया है, देखो तो कैसे हंसी जा रही है? अरे, मत हंस इत्ता. डाकिनी, पिशाचिनी." वो और जोर से हंसती जाती है. 

"ममा, आप बाज़ार गए थे, मेरे लिए क्या लाये?" माँ, उसके लिए लाये कपड़े दिखाती हैं. फिर वो एक-एक पहनेगी और नाचती रहेगी. खुद को देख-देख खुश होती रहेगी. 

मुझे अपनी माँ से बात तक नहीं करने देती. "आप अपनी बिज़नस की बातें करते रहते हो, मैं बोर होती हूँ." 

बड़ी बहन को खूब सताती है. उससे प्रिंट आउट मांगती रहती है, ताकि कलर कर सके. कुछ भी लेगी तो फिर वैसा ही उसे सूफी दीदी के लिए भी चाहिए. घर आएगी तो उसे कहेगी, "ये आपके लिए है सूफी दीदी और ये मेरे लिए." 

पैसा कहाँ से आता है, ये पता तो है, लेकिन मुश्किल आता है ये नहीं पता है. उसे लगता है कि बस शौपिंग ही काम होता है. 

खैर, मेरी बेटी, आपकी बेटी, सब खुश रहें, यही तमन्ना है.

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