सर ही कूड़ा है

"कबीर खड़ा बाजार में, लिये लुकाठी हाथ।
जो घर फूंके आपना, चले हमारे साथ।।"

"जो तो प्रेम खेलन का चाव, सिर धर तली गली मोरी आओ.
एस मार्ग पैर धरीजै, सर दीजे कान न कीजै"

कबीर और गुरु गोबिंद, लग-भग एक ही बात कह रहे हैं

एक लाठी लेकर खड़े हैं, "आ जाओ, सर फोड़ दूंगा".
दूजे तो सीधे ही सर मांग रहे हैं.

असल में सर ही कूड़ा है, इसलिए
सर ही कचरा है इसलिए
सर ही सब फसाद से भरा है

सर सबसे कीमती लगता है इन्सान को, सर जो गीता, कुरान, पुराण से भरा है.

इसलिए सर माँगा है.

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