Sunday, 28 July 2019

प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ

प्रॉपर्टी के धंधे में हूँ. बड़ा ही नाशुक्रा किस्म का धंधा है. कोई सिस्टम ही  नहीं है. 

लोग किसी भी प्रॉपर्टी डीलर के साथ महीनों घूमते रहेंगे. वो सिखाता रहेगा. समझता रहेगा. फिर बिन उसकी किसी गलती के ही उसे छोड़ देंगे. 

डीलर भी जानते हैं यह सब, सो वो भी जल्द-बाज़ी में रहते हैं. बस किसी तरह से फंसा दे डील. सही गलत की ज्यादा चिंता नहीं करते. देख जायेगा जो होगा. बस अपना टांका फिट होना चाहिए.

होना तो यह चाहिए की डीलर सब देख-भाल के, ठोक-बजा के ही डील दे खरीद-दार को. 

लेकिन खरीद-दार कौन सा उसका सगा है? वो कभी भी बेहतरीन डीलर को छोड़ देता है और दूजे किसी के पल्ले पड़ जाता है. 

सब चाहते हैं कि डीलर खरा हो. लेकिन खुद डीलर के साथ कभी खरे नहीं है. उसकी तय-शुदा कमीशन देने में भी सौ नखरे करते हैं. डीलर को कोई रेस्पेक्ट दे के राजी नहीं है. बयाने के अग्रीमेंट की कोपी तक उसे नहीं दी जाती कि कहीं वो कोई Mis-use  न कर ले. इत्ता ही डर है तो डीलर को क्यों लेते हो डील में भाई? खुद ही कर लो सारी डील.

खैर, न प्रॉपर्टी लेने-देने वाले खरे हैं और न ही डीलर खरे. अब बीच में मेरे जैसे बंदे को दिक्कत ही दिक्कत. 

धंधा है. लेकिन गंदा है.  

Why property dealers are not committed with the parties?
Because parties are not committed with the property dealers.

Why parties are not committed with the property dealers?
Because the property dealers are not committed with parties.

'मेरा-मेरा' तो कर नहीं सकता लेकिन नानक साहेब की तरह 'तेरा-तेरा' भी नहीं कर सकता. सो चला रहे हूँ अपने ही नियम-कायदों पर.

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