हम कहते हैं वसुधैव कुटुम्बकम, बहुत अच्छी बात है. लेकिन वसुधा की तो वाट लगा रखी है हमने. कल अगर यह धरा जलने लगे, पिघलने लगे और हमें कोई ग्रह मिल जाए तो क्या जो लोग भी जा पाएं, उनको वहां जाना चाहिए कि नहीं; फिर कैसे रहेगी वसुधा हमारी कुटुम्ब. और अगर बहुत से लोगों को बचाने के लिए इसे किसी की बली भी देनी पड़े तो भी जायज़ समझा जा सकता है. तो इस तरह सब कुछ वक्त / ज़रूरत / दिशा-दशा / टाइम-स्पेस के अनुसार ही तय किया जा सकता है। और क्या तय करना है, वही अक्ल का रोल है। तो धर्म शब्द बेकार है. अक्ल इससे बेहतर शब्द है. धर्म का connotation मन्दिर, मस्जिद, चर्च...पंडित, ग्रन्थी, मौलवी इत्यादि को लिए खड़ा है....ईश्वर/अल्लाह को लिए खड़ा है......क़ुरान/पुराण को लिए खड़ा है. असल में बस अक्ल ही सही शब्द है. धर्म शब्द त्याग देने योग्य है. कर्तव्य क्या है, कानून क्या है यह सब अक्ल से तय करना चाहिए. हमअक्ल से ही कानून भी बदल लेते हैं.अक्ल से ही हम नियम भी बदल लेते हैं. संविधान / विधान सब बदलते हैं. एक तरफ की सड़क बंद कर देते हैं. फिर खोल देते हैं. नियम/कायदे/कानून में बदलाव करते हैं...और अगर नियम गलत हो तो उसका विद्रोह भी करते हैं...तो धर्म नियम का पालन सर्वोपरी नहीं है बल्कि अक्ल सर्वोपरि है....और अक्ल के लिए सही शब्द अक्ल है, न कि धर्म.
क्या कहते हैं आप ?
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