लुच्चा लंडा चौधरी, गुंडी रन्न परधान

"लुच्चा लंडा चौधरी, गुंडी रन्न परधान"

पंजाबी की कहावत है, "ਲੁੱਚਾ ਲੰਡਾ ਚੌਧਰੀ, ਗੁੰਡੀ ਰਨ ਪਰਧਾਨ."

मोहल्ले के चंद महा-इडियट लोग चल पड़ते हैं हर चार-छह महीने बाद. चंदा इकट्ठा करने कि रामलीला करनी है, दशहरा है, रावण जलाना है कि साईं संध्या करनी है. 

गुट बना चलते हैं, घर-घर, दुकान-दुकान पैसे मांगते हैं. आदमी श्रधा से दे न दे लेकिन शर्म से देगा. मोहल्ले के लोग हैं. मिलने-जुलने वाले लोग हैं. कल इन्हीं से काम पड़ना है. 

शर्मा जी को नाराज़ करेंगे तो कल मेरी दुकान से सौदा नहीं लेंगे. वर्मा जी को नाराज़ किया तो मेरे बच्चे को जो टयुशन देते हैं, वो ठीक से न देंगे. सबसे दुआ सलाम है. 

लेकिन मैं ढीठ हूँ. होते रहें नाराज़. मुझे काहे की चिन्ता? इनको चिंता होनी चाहिए कि मैं नाराज़ हो सकता हूँ ऐसी बकवास डिमांड लाये जाने पर. अगर नाराज़ होंगे तो ये बदकिस्मत हैं, जो मेरे जैसे जीनियस व्यक्ति का साथ पाने से चूक जायेंगे. 

साला चंदा नहीं, धंधा है. मुझे धंधे से कोई एतराज़ नहीं. लेकिन गंदा धंधा है. 

जिन लोगों में कैसी भी बुद्धि नहीं, कैसा भी चिंतन नहीं, विचार का बीज तक प्रस्फुटित नहीं हुआ, वो प्रधान बने फिरते हैं. लोगों के घर जा-जा पैसे उगाहेंगे और फिर सार्वजनिक आयोजनों में ऐसे प्रधान बनेंगे जैसे इनके बाप के पैसे खर्च हो रहे हों. बचे पैसों से तीर्थ-यात्रा के बहाने ऐश बोनस में. 

इन्ही से होना है न भारत में ज्ञान-विज्ञान का प्रसार-प्रचार? 
ऐसे ही लोग भारत की तरक्की में बाधा हैं भई.

धर्म-कर्म करना है न तो अपने घर से खर्च करें, हर साल क्या, हर महीने विशाल भगवती जागरण करें. माँ इनका दीवाला अगली दीवाली से पहले ही निकाल देगी. साईं नाथ की कृपा छत्त फाड़ कर बरसेगी और छत्त रिपेयर कराने के पैसे तक न बचेंगे. भोले नाथ की महिमा से इत्ते भोले हो जाएँ कि मकान दुकान बेच भोले बाबा के नाम पर भंडारा चला दें. जय भोले भंडारी. न रहेगा मकान, न बचेगी दुकान. बोल बम. बम्ब-फटाक.
इडियट. महा-इडियट.  

नमन....तुषार कॉस्मिक

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