Sunday, 28 July 2019

विज्ञान_धर्म_और_हम

वैसे तो प्लास्टिक भी विज्ञान से आता है लेकिन प्लास्टिक या विज्ञान ये थोड़ी न कह रहा है कि प्लास्टिक प्रयोग होना ही चाहिए.

कार भी विज्ञान से आती है, लेकिन अगर ड्राईवर गधा चलाने जितनी भी अक्ल न रखता हो और एक्सीडेंट कर दे तो गलती विज्ञान की है या ड्राईवर की ?

एक मित्र कह रहे थे कि धर्म के विदा होने से कोई लाभ नहीं होगा....आदमी हिंसक इसलिए है चूँकि वो काम/क्रोध/लोभ आदि से बंधा है सो मानव-समस्याओं की असल वजह धर्म नहीं हैं.

अरे, इन्सान तो है ही जानवर.
बात यह है कि जंगल से यहाँ तक उसने सही सफर भी किया है और गलत भी.

ज्ञान/ समाज विज्ञान / मनोविज्ञान / चिकित्सा विज्ञान..... यह विज्ञान... वह विज्ञान.... इन्सान अगर सब तरफ से वैज्ञानिक हो जाये तो उसके लोभ / मोह आदि को भी सही दिशा दी जा सकती है.

फिर क्या दिक्कत है? दिक्कत हैं ये धर्म!

उदाहरण है कोई भी रेड लाइट.
रेड लाइट अगर सही है तो सब सही चलेंगे/अगर खराब है तो सब इडियट हो जायेंगे.

पॉइंट यह है कि इन्सान तो है जानवर, जंगली, कंक्रीट के जंगल का वासी.....लेकिन हमने जो भी विज्ञान विकसित किया है वो बहुत, बहुत हमारे जीवन को आज की अपेक्षा स्वर्गीय बना सकता है बशर्ते कि काल्पनिक स्वर्ग/नर्क/ अल्लाह/ भगवान/ (धर्म) विदा हो जाएँ .

बताइये, सही कह रही हूँ कि नहीं?

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