Saturday, 27 July 2019

खालसा खड़ा ही मुसलमान आक्रान्ता के खिलाफ था

आक्रान्ता मुस्लिम था? था कि नहीं? था. जी मुख्य रूप से आक्रान्ता मुस्लिम ही था, बाकी हर समय हर किस्म के लोग होते हैं. एवरेज समझते हैं आप. कितने हिन्दू थे जो सिख गुरुओं के खिलाफ थे? कोई इक्का-दुक्का. और सिक्ख आये कहाँ से थे? कितने मुस्लिम घरों से सिक्ख आये थे? इक्का दुक्का. शायद कोई भी नहीं. और कितने गुरु और उनके परिवार मुस्लिम ने शहीद किये थे. जितने भी शहीद हुए शायद सभी. सहमत हूँ. अगर उस वक्त हिन्दू आक्रान्ता होता, ज़ालिम होता तो उसके खिलाफ खड़े हो जाते. लेकिन ऐसा था नहीं. आक्रान्ता मुस्लिम थे और गैर-मुस्लिम/ हिन्दू में से ही लोग खड़े हुए जो खालसा हुए. हिन्दू नहीं हैं, लेकिन आये हिन्दू से. मुस्लिम से नहीं आये थे. इसलिए आज सिक्ख को मात्र इत्ता समझने की ज़रूरत है कि चाहे खालसा किसी मज़हब के खिलाफ नहीं लेकिन इतिहास क्या है. ऐतिहासिक एक्शन क्या है और रिएक्शन क्या है? और सही है कि सिक्ख किसी धर्म के खिलाफ नहीं है लेकिन आज यह समझने की ज़रूरत है कि मूलतः मुस्लिम सबके खिलाफ है. सिक्ख इतिहास भी यही बता रहा है. खालसा अन्याय के खिलाफ है. सही है. लेकिन अन्याय इस्लाम में है. कुरान में है. और आज भी है. न कुरान बदली, न इस्लाम. बस इत्ता समझें. और यह जो आप समझते हैं न कि अगर खालसा किसी धर्म के खिलाफ होता तो साईं मिंया मीर से अमृतसर गुरुदवारे की नींव पत्थर ना रखवाया जाता. उसे भी समझिये. सूफी मुस्लिम नहीं होते. चूँकि मुस्लिम कभी किसी और धर्म को नहीं मानता सो अगर साईं मिंया मीर असल मुस्लिम होते तो कभी नींव पत्थर रखने ही न नहीं जाते. और आपको गुरुद्ववारों में अनगिनत लोग मिलेंगे जो सिक्ख नहीं होते लेकिन इनमें मुस्लिम शायद ही कोई मिले. इससे समझें कि इस्लाम क्या है. और मुस्लिम का सिक्ख से नहीं, हिन्दू का सिक्ख से रोटी-बेटी का रिश्ता है. असल में सिक्ख चाहे खुद को अलग माने, लेकिन हिन्दू सिक्ख को अलग नहीं मानता. दोनों में खूब शादी-ब्याह होते हैं. समझें. और यह मेरी ही अवधारणा है कि यदि मुस्लिम आक्रान्ता न होते तो खालसा करने की कोई ज़रूरत नहीं थी. खालसा खुद चाहे कुछ भी माने. इस लेख से मेरा बिलकुल भी यह स्थापित करना नहीं है कि सिक्ख कोई हिन्दू हैं. नहीं हैं. हिन्दू से निकलने का मतलब यह कदापि नहीं कि वो हिन्दू हैं. वो वही हैं, जो वो खुद को मानते हैं. वो सिर्फ सिक्ख हैं. उन पर हिन्दू का ठप्पा न ही लगाया जाए तो ही बेहतर है. और यह पोस्ट इसलिए भी नहीं कि मैं कोई यह स्थापित करना चाहता हूँ कि सिक्ख कोई हिन्दू की रक्षा के लिए थे. न. उनको क्या मतलब हिन्दू से? उस समय दलित हिन्दू था सो उसकी मदद के लिए खालसा उठ खड़ा हुआ. लेकिन यह सब खालसा के गुण हैं. मैं इस कंट्रास्ट में इस्लाम समझाना चाह रहा हूँ. यह पोस्ट इस्लाम और इस्लाम को मानने वाले क्या हैं, मुख्यतः यह समझाने को है. सिक्ख इतिहास के परिप्रेक्ष्य से. नमन....तुषार कॉस्मिक

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