मेरे घर से मात्र चार-पांच किलोमीटर दूर है 'बसई'. त्यागी लोगों का गाँव है. दिल्ली देहात. पंखों की मशहूर मार्केट है. मुस्लिम किरायेदार हैं. अब मालिक भी होंगे. ध्रुव त्यागी को घेर कर मुस्लिम लोगों ने मार दिया.
बेटी को छेड़ने का विरोध किया, बस यही कसूर था. मारने वाले 11 लोग. औरतें भी शामिल. सब मुसलमान.
कुछ शिक्षा लो. एक तो हथियार को अपना यार बनाओ. गुरु गोबिंद सिंह ने ऐसे ही नहीं कृपाण दी थी शिष्यों को. वजह थी. हथियार किसी भी चीज़ को बना सकते हो. चाहे बांस ही क्यों न हो. चलाना आना चाहिए और हिम्मत होनी चाहिए. सीखो. सिक्खों से सीखो.
और समझ लो कि मुसलमान का दीन अलग है, ईमान अलग है, जीवन शैली अलग है, अंतर-निहित कायदे-कानून अलग है.
उसके साथ भाई-चारा एक सीमा तक निभेगा. वो तुम्हारा भाई तभी तक है जब तक चारा तुम होवोगे.
वो गंगा-जमुनी तहज़ीब तभी तक निभाएगा जब तक गंगा भी तुम्हारी होगी और यमुना भी तुम्हारी.
वो डेमोक्रेसी, सेकुलरिज्म और मल्टी-कल्चरिज्म का प्रशंसक तभी तक है जब तक संख्या से कमज़ोर है.
वरना उसके लिए कल्चर सिर्फ एक ही है, वो है इस्लाम.
उसके लिए ग्रन्थ सिर्फ एक है, वो है कुरान.
उसके लिए दीन/धर्म. सिर्फ एक है वो है इस्लाम.
उसके लिए इन्सान सिर्फ दो तरह के हैं. एक मुसलमान और दूसरे बे-ईमान.
और बे-ईमान अल्लाह की बनाई कायनात पर बोझ है. उसे जीने का कोई हक़ नहीं. सो उसका क़त्ल वाज़िब है. वाज़िबुल-क़त्ल.
समझ लो नासमझो.
लड़ के मरो, मरना ही है तो. सीखो, सीखो सिक्खों के इतिहास से.
नमन.....तुषार कॉस्मिक
बेटी को छेड़ने का विरोध किया, बस यही कसूर था. मारने वाले 11 लोग. औरतें भी शामिल. सब मुसलमान.
कुछ शिक्षा लो. एक तो हथियार को अपना यार बनाओ. गुरु गोबिंद सिंह ने ऐसे ही नहीं कृपाण दी थी शिष्यों को. वजह थी. हथियार किसी भी चीज़ को बना सकते हो. चाहे बांस ही क्यों न हो. चलाना आना चाहिए और हिम्मत होनी चाहिए. सीखो. सिक्खों से सीखो.
और समझ लो कि मुसलमान का दीन अलग है, ईमान अलग है, जीवन शैली अलग है, अंतर-निहित कायदे-कानून अलग है.
उसके साथ भाई-चारा एक सीमा तक निभेगा. वो तुम्हारा भाई तभी तक है जब तक चारा तुम होवोगे.
वो गंगा-जमुनी तहज़ीब तभी तक निभाएगा जब तक गंगा भी तुम्हारी होगी और यमुना भी तुम्हारी.
वो डेमोक्रेसी, सेकुलरिज्म और मल्टी-कल्चरिज्म का प्रशंसक तभी तक है जब तक संख्या से कमज़ोर है.
वरना उसके लिए कल्चर सिर्फ एक ही है, वो है इस्लाम.
उसके लिए ग्रन्थ सिर्फ एक है, वो है कुरान.
उसके लिए दीन/धर्म. सिर्फ एक है वो है इस्लाम.
उसके लिए इन्सान सिर्फ दो तरह के हैं. एक मुसलमान और दूसरे बे-ईमान.
और बे-ईमान अल्लाह की बनाई कायनात पर बोझ है. उसे जीने का कोई हक़ नहीं. सो उसका क़त्ल वाज़िब है. वाज़िबुल-क़त्ल.
समझ लो नासमझो.
लड़ के मरो, मरना ही है तो. सीखो, सीखो सिक्खों के इतिहास से.
नमन.....तुषार कॉस्मिक
No comments:
Post a Comment