नाज़िम भाई और मैंने मिल के बहुत प्रॉपर्टी डील की हैं. सो रोज़ मिलते हैं. उनकी वाइफ की तबियत खराब थी. सुबह से पास वाले गुरूद्वारे गए हुए थे. वहां लगभग मुफ्त इलाज होता है.
पीछे उनकी खुद की तबियत खराब थी तो "जैन स्थानक" गए थे. वहां भी बहुत से इलाज लगभग न जैसे खर्च पर होते हैं.
मैंने पूछा, "क्या मस्ज़िदों में भी इस तरह के इलाज होते हैं नाजिम भाई?"
उनका जवान "न" में था.
फिर मैने पूछा, "जब इस्लाम गैर-मुस्लिम को मान्यता देता ही नहीं तो यह तो गलत हुआ न कि मुस्लिम गैर-मुस्लिम धर्म-स्थलों पर जाए, चाहे इलाज के लिए ही?"
"शायद"
"अच्छा, आपसे गुरूद्वारे या जैन मन्दिर में इलाज से पहले आपका धर्म पूछा गया था?"
"नहीं."
"क्या कभी आपने यह देखा है कि कोई मुस्लिम संस्था गैर-मुस्लिम को भी इस तरह या किसी भी और तरह की सुविधा देती हो?"
"नहीं"
"यही फर्क है नाजिम भाई. मैं किसी धर्म को नहीं मानता. लेकिन फिर भी इस्लाम बाकी धर्मों जैसा नहीं है, यह मानता हूँ."
नाजिम भाई तो सीधे आदमी हैं. ज़्यादा हेर-फेर नहीं जानते. जल्दी मान जाते हैं. लेकिन मुझे लगता नहीं कि सब मुस्लिम यह मानेंगे.
पीछे उनकी खुद की तबियत खराब थी तो "जैन स्थानक" गए थे. वहां भी बहुत से इलाज लगभग न जैसे खर्च पर होते हैं.
मैंने पूछा, "क्या मस्ज़िदों में भी इस तरह के इलाज होते हैं नाजिम भाई?"
उनका जवान "न" में था.
फिर मैने पूछा, "जब इस्लाम गैर-मुस्लिम को मान्यता देता ही नहीं तो यह तो गलत हुआ न कि मुस्लिम गैर-मुस्लिम धर्म-स्थलों पर जाए, चाहे इलाज के लिए ही?"
"शायद"
"अच्छा, आपसे गुरूद्वारे या जैन मन्दिर में इलाज से पहले आपका धर्म पूछा गया था?"
"नहीं."
"क्या कभी आपने यह देखा है कि कोई मुस्लिम संस्था गैर-मुस्लिम को भी इस तरह या किसी भी और तरह की सुविधा देती हो?"
"नहीं"
"यही फर्क है नाजिम भाई. मैं किसी धर्म को नहीं मानता. लेकिन फिर भी इस्लाम बाकी धर्मों जैसा नहीं है, यह मानता हूँ."
नाजिम भाई तो सीधे आदमी हैं. ज़्यादा हेर-फेर नहीं जानते. जल्दी मान जाते हैं. लेकिन मुझे लगता नहीं कि सब मुस्लिम यह मानेंगे.
No comments:
Post a Comment