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Showing posts from April, 2022

प्रशांत किशोर जैसे लोग प्रतीक हैं कि भारतीय राजनीति जनता और उसकी वास्तविक समस्याओं से पलायन कर एक छद्म माहौल की रचना से वोटों की फसल काटने की अभ्यस्त होती जा रही है ~ By Hemant Kumar Jha Good Article on the Modern Politics

By Hemant Kumar Jha a Very Good Article on the Modern Politics ~~~ प्रशांत किशोर जैसे लोग इस तथ्य के प्रतीक हैं कि भारतीय राजनीति किस तरह जनता और उसकी वास्तविक समस्याओं से पलायन कर एक छद्म माहौल की रचना के सहारे वोटों की फसल काटने की अभ्यस्त होती जा रही है। यह अकेले कोई भारत की ही बात नहीं है। चुनाव अब एक राजनीतिक प्रक्रिया से अधिक प्रबंधन का खेल बन गया है और यह खेल अमेरिका से लेकर यूरोप के देशों तक में खूब खेला जाने लगा है। ऐसा प्रबंधन, जिसमें मतदाताओं को अपने पाले में लाने के लिये भ्रम की कुहेलिका रची जाती है, छद्म नायकों का निर्माण किया जाता है और उनमें जीवन-जगत के उद्धारक की छवि देखने के लिये जनता को प्रेरित किया जाता है। दुनिया में कितनी सारी कंपनियां हैं जो राजनीतिक दलों को चुनाव लड़वाने का ठेका लेती हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव हो या ब्राजील, तुर्की से लेकर सुदूर फिलीपींस के राष्ट्रपति का चुनाव हो, इन कंपनियों ने नेताओं का ठेका लेकर जनता को भ्रमित करने में अपनी जिस कुशलता का परिचय दिया है उसने राजनीति को प्रवृत्तिगत स्तरों पर बदल कर रख दिया है। जैसे, ...

अजब-गजब बाबा

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Just Click. My YouTube video on this Topic "राधा स्वामी-पव्वा सवेरे और अद्धा शामी." खैर, यह तो मजाक में कहा जाता है लेकिन इस डेरे ने दिल्ली में छतरपुर में सैंकड़ों एकड़ ज़मीन हथिया रखी थी, जिसे कोर्ट आर्डर से खाली करवाया गया. क्या कोई प्रॉपर्टी डीलर मुकाबला करेगा इन का? इसी लेख का वीडियो है, देख लीजिये आसा राम जी और उन के सपूत पर  बलात्कार के आरोप लगे, साबित भी हुए, दोनों अंदर हैं. आसा राम तो अब शायद कभी बाहर आ भी न पाएं लेकिन भक्त-जन आज भी उन के हँसते हुए चेहरे के कैलेंडर घर में लगाये हैं और श्रधा से सर झुकाए हैं. गुरु चाहे गोबर हो जाये, चेला तो शक्कर बना ही रहेगा.  बाबा राम देव. यह जनाब जब मोदी सरकार नहीं बनी थी तो कह रहे थे कि एक बार मोदी जी आ जाएँ तो पेट्रोल शायद पानी जितना सस्ता हो गया. और अब धमका रहे हैं, "हाँ, कहा था ऐसा. अब नहीं हुआ सस्ता पेट्रोल तो क्या पूछ पाड़ेगा?" इन का समाज विज्ञान इतना गहन है कि बड़े नोट बंद करने से ही भ्रष्टाचार खत्म कर देगा. वाह! पंजाब में एक बाबा थे आशुतोष जी महाराज. यह सिधार गए हैं. कहाँ? नरक या स्वर्ग पता नहीं . लेकिन इन के शिष्य तो यह...

तुम पत्थर को शैतान समझ मारो, वो ठीक, और जो पत्थर को शिवलिंग, हनुमान, पिंडी देवी समझ पूजे वो गलत?

मुस्लिम जब हज करते हैं तो शैतान को पत्थर मारते हैं.  असल में यह  शैतान भी एक पत्थर ही है. जब पत्थर भगवान नहीं हो सकता तो शैतान कैसे हो सकता है? और यदि पत्थर शैतान हो सकता है तो भगवान क्यों नहीं?  तुम पत्थर को शैतान समझ मारो, वो ठीक, और जो पत्थर को शिवलिंग, हनुमान, पिंडी देवी समझ पूजे वो गलत?  कमाल! तुषार कॉस्मिक

सबसे मुश्किल भरा होता है खुद को नादान से चौकस बनाना.

सबसे मुश्किल भरा होता है खुद को नादान से चौकस बनाना. आप होते नहीं और ना ऐसा करने की ज़रूरत ही समझते हैं लेकिन अचानक आपको लगता है कि अब तक आप जैसे बेफिक्र चले जा रहे थे वो गलत था. फिर आप रोज़ खुद को थोड़ा-थोड़ा बदलते हैं. चोटों और नाकामयाबी से बचने के लिए ऐसा करना ज़रूरी हो जाता है मगर कुछ साल बाद आप खुद को आइने के सामने पाते हैं. शक्ल पहचान पाना मुश्किल हो जाता है. आइने में दिख रहा चेहरा उस इंसान जैसा लगता है जिससे आप कुछ वक्त पहले इसलिए नफरत करते थे क्योंकि वो बहुत चालाक था - copied

क्या तुम ने कभी किसी वैज्ञानिक की तस्वीर लगाई अपनी id पे?

क्या तुम ने कभी किसी वैज्ञानिक की तस्वीर लगाई अपनी id पे? बाबा बूबी लगाए फिरते हो. विज्ञान तुम्हें रोशनी देता है और ये गुरु घण्टाल तुम्हें घण्टे की तरह बजाते हैं. लेकिन फिर भी तुम.... Idiots! ~ तुषार कॉस्मिक

पत्थर मारना इब्रह्मिक धर्मों की संस्कृति है.

पत्थर मार-मार के जान से मार देने का इब्रह्मिक धर्मों में पुरानी रवायत है. एक वेश्या को लोग पत्थर मार के मार देना चाह रहे थे तो, जीसस ने उस बचाया, यह कह कर कि पत्थर वही मारे, जिसने खुद कोई गुनाह न किया हो. मजनूँ को लोग पत्थर मार रहे थे चूँकि वो लैला को अल्लाह से ज़्यादा मोहब्बत करता था, जिस की इजाज़त इस्लाम में है ही नहीं. फिर लैला गाती है, "कोई पत्थर से न मारे मेरे दीवाने को.....". मंसूर (सूफी संत) को मुसलमानों ने पत्थर मार-मार मार दिया. आप को YouTube पर फिल्म मिल जाएगी Stoning of Soraya. इस फिल्म में एक मुस्लिम स्त्री पर परगमन का झूठा इल्जाम लगा कर उसे पत्थर मार मार के मार दिया जाता है. मुस्लिम जब हज करते हैं तो शैतान को पत्थर मारते हैं. असल में यह शैतान भी एक पत्थर ही है. पत्थर कोई कश्मीर में ही नहीं मारे जाते फ़ौज पर, अभी-अभी स्वीडन की पुलिस पर भी मुसलामानों ने पत्थर फेंके हैं. जहाँगीर-पुरी दिल्ली में भी यही हुआ है. पत्थर मारना इब्रह्मिक धर्मों की संस्कृति है. ~तुषार कॉस्मिक

मेरी बिज़नेस यात्रा

यह कोई रोड़-पति  से करोड़पति की कहानी नहीं है. यह मेरी कहानी है. यह मेरी उद्यमशीलता की कहानी है. यह मेरी सफलताओं और असफलताओं की कहानी है. यह मेरी समझदारियों और नासमझियों की कहानी है. यह मेरे नफे और मेरे नुक्सान की कहानी है.  यह एक आम इन्सान की कहानी है. यह आप की कहानी है. इस कहानी में कई सबक हैं, मेरे लिए और आप के लिए भी.  तो चलिए मेरे साथ..... मैं कोई बारहवीं कक्षा में रहा होऊंगा, जब यह लगा कि जीवन में पैसा चाहिए और जीवन फैलाना हो तो बहुत-बहुत पैसा चाहिए.  माँ-बाप शुरू से चाहते थे कि मैं डॉक्टर बनूँ या DC (Deputy Commissioner). डॉक्टर, उन्होंने देखे थे कि खूब पैसा कमाते हैं, कार, कोठी सब खड़ा कर लेते हैं. और DC, उन्होंने सुना थी कि पूरे शहर का मालिक होता है.  लेकिन चूँकि मुझे किशोर अवस्था से ही साहित्य, मनोविज्ञान, धर्म-राजनीति, ध्यान, सम्मोहन जैसे विषयों में रूचि थी तो कॉलेज की पढ़ाई को मैंने समय व्यतीत करने के एक साधन मात्र की तरह प्रयोग किया.  उन दिनों पढने-लिखने वाले बच्चे या तो मेडिकल में जाते थे या नॉन-मेडिकल में. मेडिकल वाले डॉक्टर बनते थे और नॉन-मेडिकल...

सरकारी नौकरियाँ जितनी घटाई जा सकें, घटानी चाहियें

आम आदमी पार्टी बड़े गर्व से घोषित करती फिर रही है कि उस ने इत्ती..... नौकरियाँ पैदा कर दी हैं. इतने ....कच्चे नौकरों को पक्का कर दिया है....... गर्व की बात है यह? शर्म की बात है. सरकारी नौकर जनता का नौकर नहीं, नौकर-शाह होता है, शाह....सरकार का जमाता.....रोज़गार देना सरकार का काम नहीं है भाईजान......सरकार का काम है कायदा -कानून बनाना और बनाये रखना, निजाम चलाना. रोज़गार समाज ने खुद पैदा करना होता है. हाँ, सरकार यह ज़रूर देख सकती है कि किसी के साथ ना-इंसाफी न हो जाये, कुछ समाज के खिलाफ न हो जाये. बस. सरकारी नौकरियाँ जितनी घटाई जा सकें, घटानी चाहियें, काम ठेके पे देने चाहिए. काम करो, पैसे लो, छुट्टी. कोई पक्की नौकरी नहीं, कोई पक्की सैलरी नहीं, कोई भत्ते नहीं, कोई पेंशन नहीं. सब बोझ हैं समाज पर. ~ तुषार कॉस्मिक

कमाई से सिर्फ कमाई साबित होती है, न कि किसी फिल्म का बढ़िया-घटिया होना

वैसे तो बॉलीवुड अपने आप में एक चुतियापा है, जहाँ कभी-कभार ही कोई ढंग की फिल्म निकलती है लेकिन आज कल एक अलग ही चुटिया राग गाया जा रहा है, "यह फिल्म सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गयी, यह फिल्म दो सौ करोड़ रुपये की कमाई कर चुकी, यह अब दो सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो गयी."  क्या है ये बे? फिल्म को इस तरह से नापा जाता है क्या? बहुत सी महान फिल्में अपने समय में पिट गईं, बहुत सी महान क़िताब लोगों ने पढ़ी ही नहीं, फिर बाद में सदियों बाद समझ आया कि उस किताब में, उस फिल्म में क्या महान था. कमाई से सिर्फ कमाई साबित होती है, न कि किसी फिल्म का बढ़िया-घटिया होना. आई समझ में? ~ तुषार कॉस्मिक

मेरी व्यायाम यात्रा

बठिंडा की बात है. मैं तब शायद आठवीं कक्षा में था जब आरएसएस की शाखा में जाना शुरू हुआ. वहाँ कसरत और कई कसरती खेल खेले जाते थे. MSD Public School, जहाँ मैं पढ़ता था, उसी के पास में ही एक स्टेडियम हुआ करता था, उसी दौर में वहां जॉगिंग करने जाने लगा. 400 मीटर का ट्रैक था, मैंने एक दिन कोई 25 चक्कर लगा दिए. मैं खुद हैरान! यह 10 किलोमीटर हो गया. कोई 10 किलोमीटर भी दौड़ सकता है लगातार, मुझे पता ही न था. खैर फिर तो मैं कई बार दौड़ा. मुझे दौड़ना बहुत ही आसान लगने लगा. उसी दौर में वहीं स्टेडियम की बेक साइड में एक सरदार जी बॉक्सिंग सिखाया करते थे. कुछ लडके आया करते थे वहाँ. मैं भी जाने लगा. एक बार तो होशियार पुर उन के साथ गया भी मुकाबले में. मेरे सामने वाला बॉक्सर आया ही नहीं, मुझे वॉक-ओवर मिल गया. शायद  तीसरी जगह आने का इनाम भी मिला.  इकलौता बच्चा था घर का, शायद माँ-बाप ने करने से रोका.  फिर बॉक्सिंग की ही नहीं. लेकिन अभी भी बॉक्सिंग की बेसिक मूवमेंट अच्छे तरीके से कर लेता हूँ. खैर, उसी दौर में शाम को आरएसएस की शाखा में भी जाना रहता था. स्कूल में एक बार दौड़ में शामिल हुआ तो शायद 800 मीट...

धर्म और राजनीति -- २ सब से बड़े फ्रॉड

धर्मों ने इन्सान का जेहन जकड़ रखा है. इन्सान की Core Values धर्म से आती हैं. लेकिन ये जो धर्म हैं न आज जितने भी, इन सब को मैं अधर्म मानता हूँ. ये धर्म हैं ही नहीं. ये गिरोह हैं. धर्मों का गिरोह्बाज़ी से, रस्मों, रिवाजों से, रिवायतों से क्या लेना-देना? मैं एक पेड़ के सहारे हेड-स्टैंड करता हूँ, मैंने उसे चूम लिया, एक लड़की बेंच प्रेस करती हुई आयरन प्लेट्स को चूम रही थी, मोची आता है गली में, उसे नमन करता हूँ मैं, क्या है यह? धर्म है. एक लड़की से चार लडके rape करने की कोशिश कर रहे थे, कपड़े फाड़ चुके थे, लड़की चीख रही थी. एक अधेड़ सरदार जी कूद गए, छोटी कृपान थी उन के पास, चला दी. तीन लडके भाग गए, एक मारा गया, क्या है यह? धर्म है. एक समाज-वैज्ञानिक लाइब्रेरी में रात-रात भर सर खपाता है, फिर कोई फार्मूला निकाल लाता है समाज कल्याण का. क्या है यह? धर्म है.  जिन्हें आप धर्म समझते हैं, मैं उन के सख्त खिलाफ हूँ. वो सिर्फ अँधा-अनुकरण है. अंध-विश्वास हैं. माँ-बाप ने, समाज ने जो बता दिया आप ने मान लिया. बुद्धि तो खर्च की ही नहीं. करने ही नहीं दी गयी.  डेमोक्रेसी जिसे आप समझते हैं, जिस पर आप की सारी र...

पूरी दुनिया में जनता अपने नेताओं को जो अन्धी पॉवर दे देती है. ऐसा नहीं होना चाहिए

मैं इस बात में नहीं जाता हूँ कि किसान कानून  सही थे या गलत या फिर कितने सही थे और कितने गलत. लेकिन एक बात तय है कि सरकारों को कानून बिना जनता को विश्वास में लिए पास नहीं करने चाहियें. क्या रूस और यूक्रेन युद्ध से पहले वहाँ की जनता से युद्ध के लिए सहमति ली गयी थी? क्या कोई वोटिंग कराई गयी थी? या फिर इन दोनों मुल्कों के नेताओं ने अपनी सनक जनता पर थोप दी? मैंने तो सुना है रूस की जनता युद्ध का विरोध कर रही थी और यूक्रेन की जनता युद्ध के दौरान धूप सेक रही थी.  अभी पूरी दुनिया कोरोना से दहला दी गयी, अभी भी दहलाई जा रही है. क्या जनता की राय ली गयी, पूरे आंकड़े दे कर? क्या उन को उन आंकड़ों का विश्लेषण करने का अवसर दिया गया? क्या जो लोग कोरोना को फर्जी बता रहे थे, उन की आवाज़ जनता तक पहुँचने दी गयी? नहीं दी गयी. सब लीडरान ने मिल कर घोषित कर दिया कि कोरोना महामारी है और इस के लिए lockdown, मास्क, वैक्सीन ज़रूरी है और जनता ने मान लिया, मान इस लिए लिया चूँकि जनता तक इस Narrative के विरोध में इनफार्मेशन, तर्क पहुँचने ही नहीं दिए गए.  तो साहेबान, मेरा कहना यह है कि पूरी दुनिया में जनता अपन...

जिन को मेरा लेख लम्बा लगता है, वो दफ़ा हो जायें

क्या आप को कोई बढ़िया सा घर गिफ्ट दे तो आप यह कहेंगे कि छोटा सा होता, सस्ता सा होता तो ठीक था? क्या प्यारा सा बच्चा आप के साथ खेले तो आप यह सोचेंगे कि बस एक मिनट खेले तो ठीक है? क्या आप यह सोचते हैं कि सेक्स शुरू होते ही खतम हो जाये? क्या आप अपनी favourite dish बस एक चमच्च भर ही खाना चाहते हैं? मेरा लेखन गिफ्ट है, बढ़िया सेक्स है, प्यारे बच्चे का प्यार है, ये बढ़िया Dish है. जिन को मेरा लेख  लम्बा लगता है, वो दफ़ा हो जायें.   ~तुषार कॉस्मिक

बाबा रामदेव को अर्थ-शास्त्री, समाज-शास्त्री, राजनीति-वैज्ञानिक न समझें

बाबा रामदेव..... इन्होंने  योगासनों और प्राणायाम भारतीय घरों में पहुँचाया टीवी के ज़रिये. हालाँकि  योगासनों और प्राणायाम   कोई नई बात नहीं थी. जब हम लोग पांचवी छठी क्लास में थे तभी हमें यह सब पढ़ाया गया था और तभी हम ने कुछ आसन करने सीख भी लिए थे.  आसनों पर बाकायदा चैप्टर था फिजिकल एजुकेशन में. एक-एक  आसन की विधि, सावधानियां और लाभ आदि.  फिर अनेक किताब राम देव से पहले मौजूद थीं ही योग पर. मेरे पास आज भी हैं. टीवी पर आ कर भी कई लोग योग सिखाते  ही थे. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का नाम सुना हो आप ने. यह सब ये भी सिखाते थे. पश्चिम में तो बिक्रम योग भी प्रसिद्ध था.  खैर, योग मात्र योगासन और प्राणायाम नहीं है. यह 'अष्टांग योग' है. यानि आठ अंग हैं जिस के.  १)  यम , २)  नियम , ३) आसन, ४)  प्राणायाम , ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७)  ध्यान  ८)  समाधि  . मतलब   आसन एक अंग है और प्राणायाम एक और. लेकिन बड़ा अजीब लगता है जब लोग इन दो को ही योग नहीं, "योगा" समझते हैं.  कहते हैं कि योग पतंजलि की देन है. मुझे लगता है, योग उ...

इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.

इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.गिरोह चाहता है कि वो मज़बूत हो, और ज़्यादा मज़बूत हो, सब से मज़बूत हो, यही इस्लाम चाहता है.  और इस के लिए वो हर सम्भव प्रयास करता है. येन-केन-प्रकारेण. साम-दाम-दंड-भेद सब तरह से.  मुस्लिम लड़की गैर-मुस्लिम लड़के से शादी कर ले, यह इस्लाम को स्वीकार ही नहीं, वो लड़की इस्लाम से बाहर हो जाएगी और मार भी जाये तो बड़ी बात नहीं. नागराजू का क़त्ल कर दिया गया सुल्ताना के भाई द्वारा. दिन दिहाड़े. हैदराबाद की सड़क पर. लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम. प्रेम. शादी. यह बरदाश्त ही नहीं है, इस्लाम में. चूँकि अब बच्चे हिन्दू हो जायेंगे. मुस्लिम समाज की संख्या कमतर हो जाएगी. इस्लाम तो पलता-पनपता ही संख्या बल पर है. हां, यदि उल्टा होता तो स्वागत है. लड़की ब्याह लायें हिन्दू की तो स्वागत है. चूँकि अब बच्चे मुस्लिम होंगें. संख्या बल बढ़ेगा. अल्लाह-हू-अकबर ! मुस्लिम लड़का यदि गैर-मुस्लिम लड़की से शादी कर ले तो इस का इस्लाम स्वागत करेगा चूँकि इस्लाम इस लड़की को मुस्लिम करेगा, अब इस से जो बच्चे पैदा होंगे वो भी मुस्लिम होंगे, इस तरह से इस्लाम बढ़ेगा और यही इस्लाम चाहता है.  भारत में...

"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पीयेगा वो दहाड़ेगा"... बाबा अम्बेडकर. लेकिन कौन सी शिक्षा?

"शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पीयेगा वो दहाड़ेगा"... बाबा अम्बेडकर.  लेकिन कौन सी शिक्षा? यह जो शिक्षा के नाम पर गुड़-गोबर किया जा रहा है उस से तो गोबर-गणेश ही पैदा होंगे. जो शिक्षा तुम्हारे विचारों को दहका न दे, तुन्हें तपा न दे, तुम्हारे सदियों पुराने विचारों को जला न दे, तुम्हें तार्किक ढँग से विचार करना सिखा न दे, वो शिक्षा नहीं है, वो फ्रॉड है औऱ हाँ, तुम्हारे साथ शिक्षा के नाम पर फ्रॉड ही किया जा रहा है. तुम्हारे स्कूल कॉलेज बंद कर दो अगले सौ सालों के लिए, इंसानियत सुधर जाएगी...ओशो और ओशो ने सही कहा था तुषारापात

रिटायर्ड लोग, ख़ास सरकारी नौकरे से रिटायर्ड लोग, मैं देखता हूँ रिटायरमेंट के बाद का जीवन सम्भाल ही नहीं पाते.

रिटायर्ड लोग, ख़ास सरकारी नौकरे से रिटायर्ड लोग, मैं देखता हूँ रिटायरमेंट के बाद का जीवन सम्भाल ही नहीं पाते. एक सज्जन की अच्छी खासी जॉब थी, रिटायर हुए, कुछ पैसा बिज़नस में गंवा दिया चूँकि दुनियादारी की ट्रेनिंग ही न थी. हसंते-खेलते थे, अब ऐसे हो गए जैसे गुब्बारे में से हवा निकल गयी हो. एक सज्जन अच्छे-खासे हट्टे-कट्टे हैं, लेकिन मजाल रिटायरमेंट के बाद चवन्नी कमा के देखी हो. दुनिया जहां की फ़िज़ूल इनफार्मेशन इन के पास होती है. किस आदमी का चक्कर किस जनानी के साथ है, किस की बीवी किस के साथ सेट है, सब पता है. नाम अब्दुल है मेरा, सब की खबर रखता हूँ. रिटायर लोगों को गाने, बजाने, नाचने, अभिनय या फिर कोई भी और कला की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि ये लोग आलतू-फ़ालतू बकवास-बाज़ी में न पड़ के समय का सदुपयोग कर सकें. या फिर इन को नाई, हलवाई, कारपेंटर, इलेक्ट्रीशियन, पेंटर जैसे कामों की ट्रेनिंग देनी चाहिए ताकि ये लोग यदि कुछ कमाना चाहें तो हाथ-पैर चला कमा भी सकें. ~ तुषार कॉस्मिक

शंघाई में इतना कड़ा Lockdown लगा है कि लोग मौत मांग रहे हैं.

  शंघाई में इतना कड़ा Lockdown लगा है कि लोग मौत मांग रहे हैं. याद रखना मेरी बात, अपने राजनेताओं से पूछो, गर्दन पकड़ पूछो, सबूत क्या है इन के पास कि एक भी मौत कोरोना से हुई है. मौत हो रही हैं Lockdown से. ये Lockdown नहीं हैं, ये तुम्हें जेलों में डाला जा रहा है. ये तुम्हारी साँस लेने की आजादी तक को छीना जा रहा है. ये तुम्हारी दोस्त-रिस्श्तेदारों से मिलने की आज़ादी को छीना जा रहा है. रिसर्च करो. इस वैश्चिक फ्रॉड का पर्दा फाश करो. ~तुषार कॉस्मिक

NWO-New World Order

मैं और मेरे जैसे बहुत लोग को.Ro.ना को अंतर्राष्ट्रीय फ्रॉड मानते हैं. लिखते आ रहे हैं, बोलते आ रहे हैं. हमारी आवाज़ बहुत कमजोर है. मेन स्ट्रीम मीडिया में तो मेरे जैसे लोगों की आवाज़ है ही नहीं. सोशल मीडिया पर भी गला घोंटा जाता है. फेसबुक अकाउंट बंद किये जा रहे हैं. YouTube विडियो उड़ा दिए जा रहे हैं.   खैर, पिछले अढाई साल से यह ड्रामा चलता आ रहा है. अढाई साल से हमारे जैसे लोगों ने भी बहुत लिखा है, बोला है.  लोग हम से पूछते हैं, "भाई, अगर यह फ्रॉड है तो फिर इस के पीछे कोई तो एजेंडा होगा? कौन कर रहे हैं यह फ्रॉड?" कोई बताते हैं कि पैसा कमाना मन्तव्य है. वैक्सीन बेचना.  चलिए, जितना मुझे समझ आ रहा है, बताता हूँ. इस के पीछे मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है ही नहीं. इस के पीछे मुख्य उद्देश्य है NWO. मतलब New World Order. और इस के पीछे हैं चंद अति-धनाडय लोग. जिन में से बिल गेट्स एक है. अमेरिका का हेल्थ मिनिस्टर डॉक्टर Fauci है और भी लोग हैं जो पर्दे के पीछे हैं. इन सब ने WHO की मदद से, सब राष्ट्राध्यक्षों की मदद से यह खेल खेला जा रहा है.  उद्देश्य है, आम-जन के हकूक छीनना और N...

तो यह है, मैं जो समझता हूँ प्रेम से.

प्रेम. यह शब्द ध्यान में आते ही, ज़्यादातर लोगों के ज़ेहन में बॉलीवुडिया लड़का-लड़की का प्रेम आएगा. यह असल प्रेम है ही नहीं. यह बाज़ारी-करण है सेक्स का. "ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडत होए." क्या यह इस प्रेम की बात है. न. न. आप प्रेममय होते हैं तो पूरी कायनात के लिए होते हैं, वो है असल प्रेम. और वो होते हैं आप जीवन की, जगत की अपनी समझ से. अगर समझ उथली है तो आपका प्रेम उथला ही होगा. समझ गहरी है तो किसी की गर्दन भी काटोगे, तो भी आप को दर्द होगा. गुरु गोबिंद के शिष्य दुश्मन को काट भी रहे थे और उन्ही के शिष्य भाई कन्हैया उन को पानी भी पिला रहे थे. यह है प्रेम जो जीवन और जगत की समझ से उपजा है. "एक नूर ते सब जग उपजा, कौन भले कौन मन्दे."   गर्दन काटना मज़बूरी हो तो काटेंगे ही, फिर भी प्रेम अपनी जगह है. प्रेम किसी व्यक्ति विशेष के लिए होने का अर्थ यह नहीं कि बाकी कायनात से कोई दुश्मनी है या दुराव है. नहीं ऐसा कुछ नहीं.  "एक नूर ते सब जग उपजा, कौन भले कौन मन्दे." लेकिन  हाँ, सब तो करीब आने से रहे. तो जो करीब हैं, वो करीब हैं ही.  तो यह है, मैं जो समझता हूँ प्रेम से.  ~तुष...

रिश्ते - लम्बे, छोटे, उथले, गहरे

मैंने देखा है, इंसान अक्सर अपनी नाक से आगे नहीं देख पाता.  उस की सोच बहुत लंबी नहीं होती.  वो पास के तुरत फायदे के लिए भविष्य के बड़े और लगातार होने वाले फायदे को नज़र-अंदाज़ कर देता है.  वो सोने का अंडा रोज़ लेने के बजाए तुरत-फुरत लालच में मुर्गी की हत्या कर देता है.   दुनिया की आबादी करोड़ों में है, लेकिन आप/हम बस 100 या 1000 लोगों के सम्पर्क में ही आ पाते हैं.  और उस में भी गहन सम्पर्क में चंद लोग ही रह जाते हैं. रिश्ते बना कर रखिये, जहाँ तक हो सके, अच्छे रिश्ते ता-उम्र काम आते हैं. ~तुषार कॉस्मिक