क्या तुम ने ध्यान दिया लैला-मजनू, मिर्ज़ा-साहेबा, शीरी -फरहाद, हीर-राँझा ये सब मुस्लिम समाज से थे? इन की मोहब्बत स्वीकार न हो सकी समाज को. सब दुत्कारे गए, मारे गए. भारत का जो मूल कल्चर है, इस में तो शायद ऐसा विरोध न था, यहाँ तो वसंत-उत्सव होता था, जिस में स्त्री-पुरुष एक दुसरे के प्रेम-निमन्त्रण देते थे. 'वैलेंटाइन डे' जैसा कुछ. यूँ ही थोड़ा हम लिंग-पूजन करने लगे. यूँ ही थोड़ा हम ने मन्दिरों की दीवारों पे सम्भोग दर्शा दिया. इस्लामिक समाज में स्त्री-पुरुष सम्बन्ध में शादियाँ हैं, सेक्स है और बच्चे पैदा करना है. लेकिन मोहब्बत कहाँ है? लैला-मजनू जैसी. इन को तो पत्थर मारे गए. आज भी मारे जायेंगे. मोहब्बत सिर्फ नबी से और इबादत सिर्फ अल्लाह की. बात खत्म.~ तुषार कॉस्मिक
No comments:
Post a Comment