अमीरी आज जिस तरह से समझी जा रही है, मुझे लगता है वो अपने आप में एक फ्रॉड कांसेप्ट है.
पीछे एक मित्र बता रहे थे कि उन्होंने 300 गज का फ्लोर बेच के ५०० गज का फ्लोर खरीद किया है. बड़ी अच्छी बात है. लेकिन इस कथन के पीछे एक घमण्ड है, वो किस लिए? दिल्ली में रहने वाले एकल फॅमिली के लिए 300 गज का फ्लोर कम है क्या? फिर लेने को आप ५००० गज का फ्लोर लो, कोठी लो, कुछ भी लो, लेकिन इसका औचित्य क्या है? दुनिया से हजार बे-इमानियाँ करोगे, खुद को तनाव दोगे, दूसरों को तनाव दोगे, बीमारी मोल लोगे, बीमारी बांटोगे, किस लिए?
ताकि तुम अमीर दिख सको, और अमीर, अमीर से भी अमीर.
राईट?
इसे मैं पागलपन कहता हूँ. और देखता हूँ इर्द-गिर्द, तो सब इसी पागलपन के घोड़े पे सवार भागे जा रहे हैं. किधर भाग रहे हैं? क्यों भाग रहे हैं? इन को खुद नहीं पता.
बस बड़ा घर लेना है, बड़ी कार लेनी है, दुनिया घूमनी है. चाहे घूमना होता क्या है, उस की ABCD न पता हो, चाहे Switzerland जा के भी कमरे में बंद हो के दारू ही पीनी है. चाहे सामने कितना ही सुंदर पहाड़ हो लेकिन मन पैसे का और बड़ा पहाड़ खड़ा करने में उलझा रहे, लेकिन घूमना है.
भाई जी, बहन जी, एक सीमा के बाद तो पैसे का प्रयोग आप कर ही नहीं सकते. क्या सोने की रोटी खाओगे? क्या करोगे? मैंने तो देखा है, जो लोग गाँव या कस्बों से बड़े शहरों में बसे हैं, वो तरसते हैं अपने पुराने दिनों को. दिल्ली एक इर्द-गिर्द ऐसे पिकनिक स्पॉट हैं, जो बिलकुल वही गाँव का खाना, वही 50 साल पुराना जीवन परोसते हैं, और लोग चाव से वहां जाते हैं.
बच्चों के लिए छोड़ना है अथाह धन? अमीरों के बच्चे देखे हैं. पिलपिले. ज़रूरत से ज़्यादा गोलू-मोलू. धरती के बोझ. उन्हें सब दे दोगे थाली में सजा के तो ये जीवन को एन्जॉय करने जितना स्ट्रगल भी झेल नहीं पायेंगे. मैंने पत्नी सहित पन्द्रह दिन के ट्रिप में कोई 300 किलोमीटर पहाड़ की ट्रैकिंग की. अब अमीरजादे तो एक दिन में ३० चालीस किलोमीटर पहाड़ पर चलने से रहे. अब ये तो इस आनंद से वंचित रह जायेंगे. मैं रोज़ एक से दो घंटे पग्गलों वाला व्यायाम करता हूँ. इस का अपना आनंद है. अमीरज़ादे इस आनंद को ले पायेंगे?
एक अमीर आदमी से कोई पूछता है, " बच्चे को स्कूल कौन छोड़ता है?"
जवाब, "नौकर रखा है."
"दूकान का हिसाब कौन लिखता है?"
जवाब, "नौकर रखा है."
"कुत्ते को कौन घुमाता है?"
जवाब,"नौकर रखा है."
"कार कौन चलाता है?"
जवाब ,"नौकर रखा है."
" बीवी से सेक्स कौन करता है?"
जवाब, "नौकर....."
दिल्ली में देखता हूँ, हर तीसरा-चौथा आदमी मोटा है, कोई तो बेहद मोटा है. ये ज़्यादा खाने की वजह से, ज़्यादा स्वादिष्ट खाने की वजह से, रंग-बिरंग-बदरंग खाने की वजह से मोटे हैं, बीमारू हैं. धरती के बोझ. और फिर इन्होने हर काम के लिए नौकर रखा है.........
देखिये, जब आप साइकिल पर हों और पहाड़ से नीचे को चल रहे हों. तो साइकिल अपने आप भागती रहेगी. जितना ढलान ज़्यादा होगी, उतना तेज गति से साइकिल चलती जाएगी. आप को पेडल मारने की ज़रूरत ही नहीं है.
आप अभाव से समृद्धि की और यात्रा करते हैं. बड़े ही जतन से. सब तरफ हेरा-फेरियां हैं. सब लूटने को बैठे हैं. धोखा देने को बैठे हैं. जरा चूके और आप का धन, आप का धन्धा, आप की बेहतरीन नौकरी छिन जाएगी. जैसे-तैसे रातें काली कर केआप धन जमा करते हैं. लेकिन यह धन जमा करते-करते आप जीवन का एक बड़ा हिस्सा कुर्बान भी कर चुकते हैं. अब आप को कमाने की लत लग चुकी है. आब आप बस एक insecurity की वजह से कमाए ही चले जा रहे हैं. बस यही गड़बड़ है.
पैसा कमायें, लेकिन एक सीमा के बाद कमाए जाने के औचित्य को परखें, खुद परखें और फैसला करें कि अब और कितनी देर साइकिल पर पेडल मारे जाना है. इर्द-गिर्द मत देखें, लोग तो हजार तरह के पागलपन में उलझे रहते हैं. आप अपना फैसला खुद करें.
~तुषार कॉस्मिक
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