Monday 18 April 2022

मेरी व्यायाम यात्रा

बठिंडा की बात है. मैं तब शायद आठवीं कक्षा में था जब आरएसएस की शाखा में जाना शुरू हुआ. वहाँ कसरत और कई कसरती खेल खेले जाते थे.

MSD Public School, जहाँ मैं पढ़ता था, उसी के पास में ही एक स्टेडियम हुआ करता था, उसी दौर में वहां जॉगिंग करने जाने लगा. 400 मीटर का ट्रैक था, मैंने एक दिन कोई 25 चक्कर लगा दिए. मैं खुद हैरान! यह 10 किलोमीटर हो गया. कोई 10 किलोमीटर भी दौड़ सकता है लगातार, मुझे पता ही न था. खैर फिर तो मैं कई बार दौड़ा. मुझे दौड़ना बहुत ही आसान लगने लगा.

उसी दौर में वहीं स्टेडियम की बेक साइड में एक सरदार जी बॉक्सिंग सिखाया करते थे. कुछ लडके आया करते थे वहाँ. मैं भी जाने लगा. एक बार तो होशियार पुर उन के साथ गया भी मुकाबले में. मेरे सामने वाला बॉक्सर आया ही नहीं, मुझे वॉक-ओवर मिल गया. शायद  तीसरी जगह आने का इनाम भी मिला.  इकलौता बच्चा था घर का, शायद माँ-बाप ने करने से रोका.  फिर बॉक्सिंग की ही नहीं. लेकिन अभी भी बॉक्सिंग की बेसिक मूवमेंट अच्छे तरीके से कर लेता हूँ.

खैर, उसी दौर में शाम को आरएसएस की शाखा में भी जाना रहता था. स्कूल में एक बार दौड़ में शामिल हुआ तो शायद 800 मीटर दौड़ में तीसरा या दूसरा स्थान आया था. मेरे लिए यह अन-अपेक्षित ही था चूँकि मैं खेलों में कोई बहुत सीरियस था नहीं. किताब पढ़ने  का ज़्यादा शौक था मुझे. लाइब्रेरी में समय बिताना ज़्यादा अच्छा लगता था.

वहीं बठिंडा में राजिंदरा कॉलेज में पढ़ता था मैं, तो वहां भी एक 400 मीटर का ट्रैक था और स्टेडियम बना हुआ था. वहां भी खूब दौड़ता रहा था मैं.  एक दो बार क्रॉस कंट्री दौड़ भी लगाई थी बठिंडा में. यह गाँव देहातों की बीच से दौड़ना होता है. कंट्री मतलब गाँव. 

खैर, फिर जब दिल्ली आ गया तो मैं शुरू में पैदल बहुत चला करता था, ख्वाहमखाह गलियों में. दिल्ली की जिन्दगी देखता रहता था. 

फिर कुछ समय काम-धंधे की तलाश में लगा रहा. 92-93 की बात है, हम लोग पश्चिम विहार शिफ्ट हो चुके थे. यहाँ बहुत ही बड़ा डिस्ट्रिक्ट पार्क था जो आज भी है. इस में अंदर एक ट्रैक बना था, जिस पर लाल पत्थर बिछे थे. यह कोई 1.5 किलोमीटर का ट्रैक है. इस पर मैं रनिंग करता था. कोई 5-6 चक्कर. कभी 7 भी. दस किलोमीटर दौड़ने का टारगेट रहता था डेली, जो मैं बड़ी अच्छी गति से दौड़ भी लेता था. कुछ फ्री-हैण्ड एक्सरसाइज भी करता था. काफी अच्छा फिटनेस लेवल था. खूब लम्बे बाल थे. कुछ लोग पूछते थे कि क्या मैं कोई मॉडल था या फिल्म इंडस्ट्री से कोई तालुक्क रखता था?

शादी हो गयी तो उस के बाद हम लोग मादी पुर, मधुबन एन्क्लेव के फ्लैट में शिफ्ट हो गए.

वहाँ फिर से एक्सरसाइज करने की धुन सवार हुई. यहाँ पंजाबी बाग में एक पार्क थी, इस पार्क में रोजाना जाने लगा. भयंकर धुंआ-धार एक्सरसाइज. फिर से फिटनेस लेवल ठाठें मारने लगा. फिर वहीं बगल में पंजाबी क्लब में 'नत्था सिंह वाटिका' में एक GYM था, उसे ज्वाइन कर लिया. कई महीने वहां जाना होता रहा. 

उन्हीं दिनों एक वीडियो भी बनाया मैंने. विभिन्न एक्सरसाइज करते हुए. यह पश्चिम विहार डिस्ट्रिक्ट पार्क, पंजाबी बाग पार्क और मेरे घर में शूट किया गया था. इसे मैंने फेसबुक पे डाल रखा है. 

फिर GYM छूट गया. काम-धंधे में उलझ गया.

यह GYM ज्वाइन करने और छोड़ने का सिलसिला चलता रहा. बीच-बीच में वाल्किंग करता रहता था. लम्बी वाल्क. कोई 5 से 10 किलोमीटर. एक बार पंजाबी बाग़ में कुत्ता काट गया, रात को वाक कर रहा था तो. 

इसे दौर में मैंने रात को रोड रनिंग भी शुरू की थी. उन दिनों मेट्रो का काम शुरू हुआ ही था. मैं अपने घर से निकल रोहतक रोड पर दौड़ते हुए रिंग रोड़ पहुँचता था. जेनरल स्टोर की क्रासिंग से लेफ्ट हो जाता था, फिर आगे NSP चौक से मुड़ कर पीतम पुरा के 'कोहाट एन्क्लेव' के आगे निकलता हुआ मधुबन चौक आउटर रिंग रोड पहुँचता, फिर पीरा गढ़ी चौक से वापिस रोहतक रोड पर आता और घर पहुँचता. यह कोई 15-20 किलोमीटर के बीच की रनिंग थी.  

उन दिनों मेरे पास मारुती 800 कार हुआ करती थी. इस कार से सपरिवार मैंने उत्तराखण्ड और हिमाचल के 15-15 दिन के टूर लगाये. केदारनाथ, यमुनोत्री, गोमुख की पहाड़ी यात्रा की. ट्रैकिंग.  कोई तकरीबन 100 किलोमीटर. इसे व्यायाम यात्रा में इसलिए शामिल कर रहा हूँ चूँकि पहाड़ों पर  चढ़ना-उतरना किसी व्यायाम से कम नहीं है. 

एक बात चार मित्रों के साथ इंडिया गेट से दौड़ना शुरू कर के धौला कुआँ होते हुए घर पहुंचे. साथ-साथ मेरी मारुती 800 कार भी एक लड़का चला रहा था ताकि जो मित्र न दौड़ पाए, वो कार में बैठ जाए. जहाँ तक मुझे याद है, मैंने दौड़ पूरी लगाई थी, बिना कार में बैठे. 

खैर,फिर हम वापिस पश्चिम विहार शिफ्ट हो गए. यहाँ घर के पास ही एक पार्क है. इस पार्क में खूब वाकिंग करता रहा.

एक बार बीवी से नाराज़ हुआ तो बंगला साहेब गुरुद्वारा पैदल निकल गया. यह कोई 40 किलोमीटर आना-जाना हो गया. रात के वक्त. 

फिर एक्सरसाइज बिलकुल छोड़ दी, काफी चिर.

अब कोई पिछले साल कोरोना पीरियड में ही एक्सरसाइज शुरू की. न सिर्फ एक्सरसाइज शुरू की बल्कि YouTube videos से खुद को re-train भी किया. सीखना हर उम्र में चाहिए.

लगभग एक साल होने को है. इस एक साल में मैंने अपनी सारी उम्र का तजुर्बा और जो भी मैंने नया सीखा सब लगाया है. वजन कोई 10 किलो घटा है, जो कि अच्छी बात है.  

आज फिर से फिटनेस काफी अच्छा है.

अब मैं Walking, Sprinting, योगासन, प्राणायाम, शैडो बॉक्सिंग,  Body-Weight Exercises, वेट ट्रेनिंग बहुत कुछ मिक्स कर के करता हूँ. 

मुझे व्यायाम करते हुए जो लोग देखते हैं, कुछ दांतों तले उंगली दबा लेते हैं, कुछ जल-भुन रहे होते हैं, कुछ प्रेरित हो रहे होते हैं. खैर, मैं डिस्ट्रिक्ट पार्क में घुसते हुए और बाहर आते हुए झुक कर नमन करता हूँ. यह मैंने अपनी किशोर अवस्था में सीखा था. पार्क, स्टेडियम, Gym हमें इतना कुछ देता है, नमन तो बनता है. 

इन्हीं सर्दियों में मैं दक्षिण दिल्ली में "जहाँपनाह फोरस्ट" गया. यह जंगल है. इस के किनारे किनारे पैदल-पथ बना है. छोटी से, पतली सी सड़क. जो इस जंगल के सब तरफ घूमती चली जाती है. कोई 6.5 किलोमीटर. यह अपने आप में नायाब जगह है, जहाँ हर दिल्ली वाले को एक बार ज़रूर जाना चाहिए. 

फिर मैं लोधी गार्डन भी गया. यह साफ़-सुथरा गार्डन हैं, जिस के बीचो-बीच पुरातन monument हैं. यहाँ बहुत लोग घूमने आते हैं. व्यायाम करने आते हैं. 

फिर रोहिणी के स्वर्ण-जयंती पार्क भी जाना हुआ. यह बहुत बड़ा पार्क है. बीचो-बीच तो आफ सुथरा है लेकिन किनारे-किनारे चलते जाओ तो कई जगह गन्दगी है. 

फिर वेस्ट पटेल नगर के रॉक गार्डन भी जाना हुआ. यह कोई बहुत बड़ी जगह नहीं है. और चूँकि पहाड़ी सी पर है सो ऊंची नीची जगह है. बहुत पसंद नहीं आई.

जनक पुरी के दो डिस्ट्रिक्ट पार्क भी जाना हुआ. लेकिन वो मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आये.पश्चिम विहार के डिस्ट्रिक्ट पार्क के मुकाबले बड़े ही दीन-हीन.   

इस सारी यात्रा से जो कुछ भी मैंने सीखा, वो संक्षेप में बता रहा हूँ....

पहली तो बात यह कि व्यायाम करना ही चाहिए. आज से 40-50  साल पहले तक का जो जीवन इन्सान जीता था, उस में शारीरिक मेहनत थी सो यदि वो अलग से व्यायाम नहीं भी करता था तो चलता था

लेकिन
आज हम सब का अधिकांश जीवन कुर्सी-सोफे-बेड पर कटता है और विज्ञान यह कहता है कि बैठे रहना तो सिगरेट पीने से भी ज्यादा खतरनाक है. 

So understand clearly that  movement is medicine, movement is life. 

और मूवमेंट भी अलग-अलग किस्म की हो तो ही बेहतर. बहुत लोग तो मैं देखता हूँ बस वाक करेंगे और हो गया उन का दिन का कोटा पूरा. चलिए कुछ न करने से तो कुछ करना हमेशा बेहतर ही है, बशर्ते कि वो कुछ अच्छा ही हो. तो वाक करना अच्छा तो है ही. लेकिन एक मात्र व्यायाम वाक ही करते रहना, यह मैं recommend नहीं करता.

और लाल पत्थरों के ट्रैक पर या किसी भी और तरह की सख्त ज़मीन पर लगातार लम्बा वाक करना या दौड़ना कतई recommendable नहीं है. घुटनों और बाकी जोड़ों पर बुरा असर डाल सकता है. जहाँ तक हो सके घास पर, समुद्री तट पर या फिर हल्की गीली मिट्टी पर दौडें. यह घुटनों जो दर्द करने लगते हैं, उस की एक वजह यह भी है कि शरीर के कमर से निचले हिस्से को जो एक्सरसाइज मिलनी चाहिए, वो अक्सर हम देते ही नहीं. कहते हैं शरीर के  50 प्रतिशत muscle कमर से नीचे होते हैं. और हम समझते हैं ही वाक कर लिया तो हो गया काम. न. Squats, Hanuman Squats, Lunges, Toes raises आदि को अपनी routine में शामिल करें. 

मेरी नज़र में वाक, बॉडी warm-up करने के लिए करना चाहिए और फिर  उस के बाद फ्री-हैण्ड एक्सरसाइज और उस के बाद वेट ट्रेनिंग या फिर रस्सी कूदना या फिर दंड बैठक या फिर रनिंग.

रोज़ एक तरह का खाना इंसान खाए तो बोर हो जाता है. सो हम रंग-बिरंग खाते हैं. ऐसे ही रोजाना एक ही तरह की एक्सरसाइज भी न करें तो बेहतर है. कभी सिर्फ वाल्किंग कर ली, कभी स्प्रिंट मार ली, कभी योगासन ही कर लिए, कभी पूरा सेशन प्राणयाम का कर लिया, कभी दंड बैठक. या फिर आप अपने हिसाब से अपनी रूटीन बना सकते हैं. रंग बिरंगी.

अक्सर जो योगासन करते हैं, वो योगासन ही करते रहते हैं. जो वाक करते हैं, वाक ही करते रहते हैं. मुझे यह कम समझ आता है. 

हालाँकि मुझे तैरना आता है, बठिंडा की नहरों में कैसे सीख लिया पता ही नहीं चला. लेकिन दिल्ली में तैरने का मौका मुझे न के बराबर ही मिल पाया है लेकिन यदि आप के पास तैरने की सुविधा हो तो, ज़रूर तैरा करें. 

और आप की उम्र कोई भी हो, व्यायाम शुरू कर लें और जो नहीं करना आता उसे सीखते रहिये. बहुत से वर्ल्ड क्लास athletes ने तब व्यायाम शुरू किया जब लोग मौत का इंतज़ार कर रहे होते हैं. यह भज रहे होते हैं, "अब तो बस थोड़ा ही समय बचा है."  जब कि किस का समय कितना बचा है, यह आज तक किसी को पता नहीं लगा. 

किशोर अवस्था को छोड़ के, हांलाँकि मैंने खुद कभी किसी कम्पटीशन में हिस्सा नही लिया लेकिन यदि हो सके तो आप ज़रूर हिस्सा लिया करें. हार जाएँ, कोई बात नहीं. हार-जीत की परवाह न करें. हिस्सा लेना ही बड़ी बात है. 

हो सके तो नंगे हो कर एक्सरसाइज किया करें, धूप में. खुली हवा  खुली धूप. स्वर्ग. सुना है विटामिन डी, सिवा सूरज की रौशनी के कैसे भी नहीं मिलती.  इस की दवा बकवास हैं. कैप्सूल में भर के सूरज के रौशनी में जो है, वो कैसे मिलेगा? गोरे हजारों मील उड़ के आते हैं, गोवा के बीच पर नंगे लेटने. यहाँ भारतीय धूप की तरफ पीठ कर के बैठते हैं, वो भी पूरे कपड़ों में. कहीं रंग काला न पड़ जाए. गोरे रंग के प्रति दीवाने हैं भारतीय. शायद गोरों के गुलाम रहे हैं इसलिए. इन के सब गानों में लडकियाँ गोरी होती हैं. "गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा...." "गोरी हैं कलाइयां...". काली के गीत कोई नहीं गाते. हालाँकि हिन्दुओं के राम और कृष्ण काले कहे जाते हैं. कृष्ण का तो एक नाम श्याम है, जिसका अर्थ ही है काला. कृष्ण का भी वही अर्थ होता है. लेकिन फोटो में नीले बनाते हैं.  खैर, आप धूप में रहा कीजिये, गर्मियों में सुबह की धूप और सर्दियों में कभी भी. 

योगासनों और प्राणायाम को ही योग भी नहीं, "योगा" समझा जाता है. यह सही नहीं है. योग के आठ अंग हैं. १) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि . इसीलिए इसे "अष्टांग योग" कहा जाता है. फिर भी योगासनों और प्राणायाम को  मैं अति महत्वपूर्ण मानता हूँ. चूँकि धरती माता के गुरुत्वाकर्षण के विपरीत  शरीर को विभिन्न आयाम देते हैं हम इन आसनों में. ऐसा हम और बहुत कम व्यायामों में कर रहे होते हैं.  और प्राणयाम में हम श्वास को, श्वास जो मात्र श्वास नहीं है, प्राण हैं, विभिन्न आयाम दे रहे होते हैं. सो योगासन और प्राणायाम भी ज़रूर किया करें. तेज़ गति वाली या Hard Exercise करने के बाद में अंत में योगासन और प्राणायाम करना बेहतर है. 

शीर्षासन यदि नहीं भी कर सकते तो किसी पेड़ या दीवार के सहारे Head Stand किया करें. कुछ देर बॉडी को उल्टा करना ज़रूरी है.

जिस स्थिति में खेल-खलिहान में बैठ के मल त्याग किया जाता है, Squatting बोलते हैं इसे. Primal Squat. इस स्थिति में जितनी देर बैठ सकें, बैठा कीजिये.

किसी डंडे, दरवाजे या फिर दीवार को पकड़ कुछ देर लटकना भी ज़रूर चाहिए.

चौपाये जानवर की तरह चलना भी बहुत अच्छा है. मेंढक की तरह कूद-कूद चलना, बन्दर की तरह कूदते हुए आगे बढ़ना, ऐसे बहुत तरह से जानवरों की नकल की जा सकती है. फौजियों की तरह crawl भी किया जा सकता है. या फिर किसी साथी को आप की टांगें पकड़ने को कहिये और खुद हाथों पर चलिए. 

उल्टा चलना या दौड़ना भी अच्छा समझा जाता है. मुझे तो अच्छा लगता है. 

मैंने तो सिंपल वाल्किंग को भी कलर-फुल बनाया हुआ है. एक टांग पे दौड़ना. किसी साथी को पीठ या कंधे पर उठा कर दौड़ना या चलना. एक कैनवास बैग है मेरे पास, जिसमें Dumbbell आदि मिला कर कोई बीस किलो वजन होता है, इसे पीठ पर ले कर चलता हूँ मैं. और कई बार तो हाथों में कोई तीस या बीस किलो के Dumbbell और उठा लेता हूँ. 

एडियों पर चलना.
पंजों पर चलना.
साइड वाल्किंग.
Ankle weight-Wrist weight बांध कर चलना. 

खैर, मेरा मानना यह है कि सिंपल वाल्किंग/रनिंग से कलर-फुल वाल्किंग कहीं बेहतर है. कई-कई तरीके से की जा सकती है.  

और
मेरा मानना यह भी है कि GYM से बेहतर है खुली हवा और खुली धूप में व्यायाम करना

और
मेरा मानना यह है कि व्यायाम की कोई उम्र नहीं होती

और 
किस उम्र में कौन सा व्यायाम करना चाहिए इस की भी कोई उम्र नहीं होती. शुरूआती बचपने को छोड़ ....इन्सान हर उम्र में चल-फिर सकता है, दौड़-भाग सकता है, कूद-फाँद सकता है और उसे यह सब करना भी चाहिए.

हम जंगलों-पहाड़ों से आये हैं. जानवरों के साथ लड़ते-भिड़ते हुए. हमें उन का मुकाबला करना पड़ता था, वरना तो हमें अगले दिन का खाना तक नसीब न होता था. हम कूदते-फाँदते- दौड़ते-भागते,लक्कड़-पत्थर फ़ेंकते हुए जंगल से शहर तक पहुंचे हैं. 

हालाँकि कब कौन सा व्यायाम करना है, कितना करना है, यह अपनी क्षमता के अनुसार चुनना चाहिए. जोश में आ कर होश न खो दें. और ज़्यादा होश में आकर जोश न खो दें. खुद को रोज़ थोड़ा-थोड़ा चैलेंज  करते रहें.

और व्यायाम ऐसे न करें कि "करना पड़ रहा है". व्यायाम ऐसे करें जैसे बच्चे खेलते-कूदते हैं. मज़ा मारते हुए. जो आप को ज़्यादा अच्छा लगे, उसे प्राथमिकता दें. व्यायाम को जीवन का अंग नहीं, जीवन  मानें. गुरबाणी में कहीं लिखा है, "हसना-खेलना मन का चाव.....". तो हंसों, खेलो, कूदो, फांदों......Sportsmanship से मैं यही समझता हूँ कि खेलते-कूदते रहिये तमाम उम्र. 

शुरू में शरीर warm up और अंत में cool down ज़रूर करें. Injury  free रहने के लिए यह सब बहुत ज़रूरी है. शुरू में Dynamic Stretching और अंत में Static stretching करें. Dynamic Stretching मतलब हाथ पैर हिलाते-डुलाते हुए अंग-पैर खोलना और Static stretching  मतलब जैसे योगासन.

अपनी Date of Birth भूल जायें, Birth Certificate कहीं छुपा दें. Birthday हो सके तो मनाये ही न. जो कोई भी आप की उम्र पूछे, उसे कहें कि भूल गए या कहें कि पता नहीं चूँकि Birth Certificate है ही नहीं या कुछ भी और.  मान के चलिए कि आप ने डेढ़ सौ साल तो जीना ही है और वो भी स्वस्थ. उससे ज़्यादा डेढ़ सौ साल बाद फिर से सोचेंगे.

खाने में फल और सलाद जितना ज़्यादा हो उतना अच्छा. इन्सान न शाकाहारी है और न ही माँसाहारी. इन्सान सिर्फ फलाहारी है. आप कुत्ते को फल दीजिये, नहीं खायेगा. गाय को मांस दीजिये नहीं खाएगी.  क्या आप बिना पकाए, बिना तेल, मिर्च, मसाले डाले, साग-सब्ज़ी, अनाज खा सकते हैं? नहीं. तो कुदरती आहार हमारा बस एक ही है. फल. और या फिर दूसरे नम्बर पर टमाटर, खीरे, ककड़ी इत्यादि. सीधी बात, नो बकवास. बाकी फिर भी अगर कुछ खाना ही हो तो घर में बनाये, जितना हो सके कम तला, भुना. चीनी, दूध, मैदा, सफेद नमक से बचें. गुड़, शहद, मोटे मिक्स अनाज, सैंधा नमक प्रयोग कर लें इन की जगह अगर करना ही हो तो. 

भारतीय दूध और दूध के बने प्रोडक्ट के दीवाने हैं. डॉक्टर NK Sharma, पीतमपुरा, दिल्ली वालों ने एक किताब लिखी है, "Milk, a Silent Killer". इन से पहले ओशो ने भी कहा है कि इन्सान के लिए जानवर का दूध नहीं है. प्रकृति में कोई भी Species दूसरी Species का दूध नहीं पीती. कोई भी Species सारी उम्र दूध नहीं पीती. इन्सान के लिए उस की माँ का दूध होता है बस. जैसे-जैसे बच्चे के दांत आने लगते हैं, माँ के स्तनों में दूध घटने लगता है और जब बच्चे के पूरे दांत आते हैं, लगभग उसी वक्त तक माँ के स्तनों में दूध बिलकुल बंद हो जाता है चूँकि अब बच्चा खुद खाना खा सकता है, चबा सकता है. 

पानी भी घड़े का पीयें तो बेहतर.  

आप सब को लम्बा, स्वस्थ और "अर्थपूर्ण" जीवन जीने की शुभ-कामनाओं के साथ नमन.

तुषार कॉस्मिक

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