तुम्हें लगता है कि नास्तिक तो कोई अधार्मिक प्राणी होता है.
और
आस्तिक बहुत बड़ा धार्मिक.
लेकिन
मेरी नजर में नास्तिक ही धार्मिक है.
और
आस्तिक अधार्मिक.
आस्तिक कौन है? उसे बस कुछ धारणाएं पकड़ा दी गयी और वो अँधा हो के उन धारणाओं का पालन कर रहा है. उसे बता दिया गया कि अल्लाह, भगवान, वाहेगुरु है कोई जो इस कायनात को बनाने वाला है, चलाने वाला है और उस की प्रार्थना करने से, अरदास करने से, नमाज़ पढ़ने से वो मदद करता है.
कभी आस्तिक ने बुद्धि चलाई? सवाल उठाये इन धारणाओं पर?
कही गयी बात को मानना ही हो तो उस के लिए क्या बुद्धि चलाने की ज़रूरत है?
लेकिन सवाल उठाने के लिए तो बुद्धि चलाने की ज़रूरत है. सवाल उठाने के लिए सोचने की ज़रूरत है.
नास्तिक सवाल उठाता है. सोचता है. और सवाल उठाने से, सोचने से ही ज्ञान-विज्ञान पैदा होता है. कुदरत ने बुद्धि दी ही सोचने के लिए है.
और नास्तिक कुदरत के अनुरूप चलता है.
आस्तिक कुदरत के विरुद्ध चलता है.
बुद्धि प्रयोग न करना कुदरत के विरुद्ध है. बुद्धि प्रयोग न करना बुधुपना है. बुधुपना कुदरत के विरुद्ध है.
इस लिए नास्तिक धार्मिक है और आस्तिक अधार्मिक.
तुषार कॉस्मिक
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