Friday 15 April 2022

इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.

इस्लाम एक गिरोह की तरह काम करता है.गिरोह चाहता है कि वो मज़बूत हो, और ज़्यादा मज़बूत हो, सब से मज़बूत हो, यही इस्लाम चाहता है. और इस के लिए वो हर सम्भव प्रयास करता है. येन-केन-प्रकारेण. साम-दाम-दंड-भेद सब तरह से. 


मुस्लिम लड़की गैर-मुस्लिम लड़के से शादी कर ले, यह इस्लाम को स्वीकार ही नहीं, वो लड़की इस्लाम से बाहर हो जाएगी और मार भी जाये तो बड़ी बात नहीं.

नागराजू का क़त्ल कर दिया गया सुल्ताना के भाई द्वारा. दिन दिहाड़े. हैदराबाद की सड़क पर.

लड़का हिन्दू और लड़की मुस्लिम. प्रेम. शादी. यह बरदाश्त ही नहीं है, इस्लाम में. चूँकि अब बच्चे हिन्दू हो जायेंगे. मुस्लिम समाज की संख्या कमतर हो जाएगी. इस्लाम तो पलता-पनपता ही संख्या बल पर है.
हां, यदि उल्टा होता तो स्वागत है. लड़की ब्याह लायें हिन्दू की तो स्वागत है. चूँकि अब बच्चे मुस्लिम होंगें. संख्या बल बढ़ेगा. अल्लाह-हू-अकबर !

मुस्लिम लड़का यदि गैर-मुस्लिम लड़की से शादी कर ले तो इस का इस्लाम स्वागत करेगा चूँकि इस्लाम इस लड़की को मुस्लिम करेगा, अब इस से जो बच्चे पैदा होंगे वो भी मुस्लिम होंगे, इस तरह से इस्लाम बढ़ेगा और यही इस्लाम चाहता है. 

भारत में Love-Jehad की चर्चा छिड़ती रहती है. कुछ लोग तो इसे सिरे से अस्वीकार कर देते हैं कि ऐसा कुछ है ही नहीं. कुछ इसे संघी शोशा बताते हैं. लेकिन मेरी नज़र में यह एक सच्चाई है. मेरी गली में ही कम से कम चार घर मैं ऐसे देखता हूँ जिन में औरत हिन्दू घर से है और पति मुस्लिम घर से है. पति ने इस्लाम नहीं छोड़ा, लेकिन पत्नी को मुस्लिम बना दिया गया. अब इन के बच्चे भी  मुस्लिम हैं.  

गैर-मुस्लिम हलाल मीट खरीदे तो इस्लाम इस का स्वागत करेगा, कोई मनाही नहीं लेकिन मुस्लिम यदि झटका मांस खरीद ले तो यह हराम है. यही नहीं, जितना मैंने देखा है मुस्लिम का हर सम्भव प्रयास होता है कि वो बिज़नस मुस्लिम को ही दे. मेरे बिज़नस पार्टनर हैं मुस्लिम. हम हिन्दू-बहुल एरिया में रहते हैं, प्रॉपर्टी का काम करते हैं. निश्चित ही हमारा ज़्यादा बिज़नस गैर-मुस्लिम से ही आता है. लेकिन ये मेरे बिज़नस पार्टनर को जब आगे काम देना होता है तो ये ढूंढ के किसी मुस्लिम को देते हैं. इन का फॅमिली डॉक्टर मुस्लिम है लेकिन यदि इन को मुफ्त इलाज करवाना होता है तो उस के लिए ये जैन या हिन्दू मंदिर जाते हैं, गुरूद्वारे जाते हैं. तब इन का दीन इन के आड़े नहीं आता. 

कोई भी गैर-मुस्लिम यदि इस्लाम स्वीकार करे तो मुस्लिम समाज बड़ा हर्षित होता है लेकिन कोई मुस्लिम यदि इस्लाम छोड़ दे तो  इस्लाम में यह स्वीकार्य नहीं है. ऐसा व्यक्ति वाजिबुल-कत्ल है. 

लगभग हर गैर-मुस्लिम समाज आबादी कम करने में यकीन रखने लगा है. हिन्दू -सिक्ख-जैन-बौद्ध आदि के २-३ बच्चों से ज़्यादा नहीं हैं. कईयों के तो बस १-२ बच्चे ही हैं. मेरे दो बच्चे हैं. मेरे सांडू का एक ही लड़का है. मैंने पीछे दो मुस्लिम परिवारों को दो फ्लैट किराये पर दिलवाए, उन दोनों फॅमिली के मिला कर कोई 15 मेम्बर थे. 

और इस के अलावा इतिहास भरा है मुस्लिम ने गैर-मुस्लिम के पूजा स्थल तोड़े हैं. यहीं क़ुतुब- मीनार के साथ जो टूटी-फूटी मस्जिद है वो कई जैन मंदिर तोड़ कर बनाए गयी, यह वहीं लिखा है. अजमेर में "अढाई दिन का झोपड़ा" नामक जगह है. यह अढाई दिन में मंदिर तोड़ के मस्जिद बनाई गयी थी. अफगानिस्तान में बामियान में बुद्ध की ये बड़ी मूर्तियाँ. पूरा पहाड़. वर्ल्ड हेरिटेज. तोड़ दिया. तुम मूर्ति पूजा मानो न मानो लेकिन उन मूर्तियों का ऐतिहासिक महत्व था. डायनामाइट लगाया. Finish.

जहाँ-जहाँ भी गैर-मुस्लिम अल्प-संख्या में हैं, वहां मुस्लिम उन का क्या हाल करते हैं, यह किसी से भी छिपा नहीं है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, कश्मीर में गैर-मुस्लिम के साथ क्या हुआ? उन्हें छोड़ भागना पड़ा सब. लाखों गैर-मुस्लिमों में एक मुस्लिम बड़े मज़े से रह लेगा, लेकिन एक मुस्लिम बहुल इलाके में आज नहीं तो कल गैर-मुस्लिम को या तो मार दिया जायेगा या भगा दिया जायेगा या मुस्लिम कर दिया जायेगा.   

यह हैं चंद तरीके जिन से साबित होता है कि इस्लाम कोई धर्म की तरह नहीं, गिरोह की तरह चलता है.

और जैसा व्यवहार इस्लाम करता है, वैसा ही जवाब यदि गैर-मुस्लिम देने लगें तो मुस्लिम चीखने लगते हैं. तब इन को गांधी याद आते हैं. तब इन को ईश्ववर-अल्लाह तेरो नाम याद आते हैं. तब इन को सेकुलरिज्म याद आता है. Multi-Culturism याद आता है. खुद चाहे 5 टाइम मस्जिद से अल्ला-हू-अकबर (अल्लाह है सब से बड़ा), ला-इलाह-लिल्लाह (नहीं कोई अल्लाह के सिवा पूजनीय) कहते रहें. जैसे इन के सवाल का जवाब देने लगो तो इन को भारत में फासीवाद नज़र आने लगता है, भारत में डर लगने लगता है. 

भारत का कोई धर्म परवाह नहीं करता कि आप उस के धर्म में आओ. यह  इब्रह्मिक धर्मों में है और सब से ज़्यादा मुस्लिम में है. आप गुरूद्वारे जाते हो, आप के जूते सम्भाले जायेंगे, साफ़ किये जायेंगे, प्रसाद दिया जायेगा, लंगर दिया जायेगा. कोई आप को सिक्ख बनाने का प्रयास नहीं करता. कोई पूछता तक नहीं कि आप किस जात-धर्म के हो. किसी को कोई मतलब है ही नहीं. न ही मंदिरों में ऐसा कोई आयोजन किया जाता है कि आप गैर-हिन्दू से हिन्दू किये जाओ. यह जो 'घर-वापिसी' की बात उठ रही है, वो सब इस्लाम की क्रिया की प्रतिक्रिया है. 

असल में धर्म की निशानी ही यही होनी चाहिए कि अपनी बात रख दी बस. किसी को समझ आये तो ठीक न समझ आये तो ठीक. बुद्ध-महावीर, नानक, कबीर- ये लोग कोई तलवार ले कर चलते थे कि हमारी बात मानो, नहीं तो काट देंगे? जहाँ तलवार उठाई, जहाँ लालच दिया, जहाँ चालबाज़ी प्रयोग की, वहां धार्मिकता कहाँ रही? यह राजनीति हो सकती है, यह व्यपार हो सकता है, यह घटिया व्यवहार हो सकता है लेकिन धार्मिकता नहीं.

धार्मिकता मैं सिखाता हूँ और मेरे जैसे कई लोग सिखा चुके हैं और आज भी सिखा रहे हैं. हम तर्क सिखाते हैं. हम खुली सोच रखना सिखाते हैं. हम सोच के बन्धनों से आज़ादी सिखाते हैं. हम सिखाते हैं 'अप्प दीपो भव' यानि अपना दीपक खुद बनिये. हम सिखाते हैं 'आपे गुर आपे चेला'. हम आप को कोई देवी, देवता, कोई भगवान, कोई शैतान का गुलाम नहीं बनाते. हम आप को गिरोह-बाज़ी नहीं सिखाते. हम आप को आप की निजता सिखाते हैं. हम आप को "अहम् ब्रह्मस्मि" समझना सिखाते हैं.  

तुषार कॉस्मिक

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