Saturday 16 April 2022

बाबा रामदेव को अर्थ-शास्त्री, समाज-शास्त्री, राजनीति-वैज्ञानिक न समझें

बाबा रामदेव.....

इन्होंने  योगासनों और प्राणायाम भारतीय घरों में पहुँचाया टीवी के ज़रिये. हालाँकि 
योगासनों और प्राणायाम  कोई नई बात नहीं थी. जब हम लोग पांचवी छठी क्लास में थे तभी हमें यह सब पढ़ाया गया था और तभी हम ने कुछ आसन करने सीख भी लिए थे. 

आसनों पर बाकायदा चैप्टर था फिजिकल एजुकेशन में. एक-एक  आसन की विधि, सावधानियां और लाभ आदि. 

फिर अनेक किताब राम देव से पहले मौजूद थीं ही योग पर. मेरे पास आज भी हैं.

टीवी पर आ कर भी कई लोग योग सिखाते  ही थे. धीरेन्द्र ब्रह्मचारी का नाम सुना हो आप ने. यह सब ये भी सिखाते थे. पश्चिम में तो बिक्रम योग भी प्रसिद्ध था. 

खैर, योग मात्र योगासन और प्राणायाम नहीं है. यह 'अष्टांग योग' है. यानि आठ अंग हैं जिस के. 
१) यम, २) नियम, ३) आसन, ४) प्राणायाम, ५) प्रत्याहार, ६) धारणा ७) ध्यान ८) समाधि . मतलब आसन एक अंग है और प्राणायाम एक और. लेकिन बड़ा अजीब लगता है जब लोग इन दो को ही योग नहीं, "योगा" समझते हैं. 

कहते हैं कि योग पतंजलि की देन है. मुझे लगता है, योग उन का अकेले का अविष्यकार नहीं होगा, यह  सब कई व्यक्तियों का मिला-जुला प्रयास रहा होगा. उन का भी. 
पतंजलि ने यह सब compile किया होगा. 

खैर, प्राइवेट टीवी चैनल आये-आये थे और उन पर बाबा राम देव रोज़ प्रकट होने लगे. वो प्राणायम से बड़ी-बड़ी बीमारियों के ठीक करने का दावा भी करते थे. अब है क्या कि सामूहिक सम्मोहन का बहुत असर होता है. मन अपना काम करता है. एक दूसरे को देख  प्रभावित होता है. भीड़ को देख प्रभावित होता है. तो साहेब, इन बाबा का समाज में एक स्थान बनता चला गया.अच्छी बात थी. 

फिर इन्होने आयुर्वेदिक दवा लांच कर दीं. वो भी अच्छी बात थी. हालाँकि कुछ भी नया नहीं था. इन से पहले सैंकड़ों कंपनी वो ही सब दवा बनाती थी और बेचती थीं. 

फिर बाबा दाल, चावल, चीनी सब बेचने लगे. लेकिन बाबा अपने आप में एक ब्रांड बन चुके थे. सो सब बिकता चला गया. 

यहाँ तक कुछ खराब नहीं है. लेकिन खराबी कहाँ है? मेरा नजरिया यह है कि बाबा को सिवा आसन और प्राणयाम के कुछ और पता नहीं. लेकिन यह महाशय सब जगह अपनी नाक घुसेड़ने का प्रयास करते रहे हैं. जब पहली बार मोदी सरकार बननी थी तो यह जनाब कहते थे कि मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता हो जायेगा. अभी जब पेट्रोल के रेट लगातार बढ़ाये जा रहे हैं तो इन से किसी पत्रकार ने पूछ लिया, "बाबा, अब आप की क्या राय है पेट्रोल के रेट बढ़ते जा रहे हैं? आप तो कहते थे कि मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता  हो जायेगा ?"

अब बाबा तो उस पत्रकार पर बुरी तरह भड़क गए, उस से बदतमीज़ी करने लगे. बाबा के जवाब से यह भी पता लगता है कि ये कितने बड़े बाबा हैं, योगी हैं. इन को ध्यान, धारणा और समाधि से कोई लेना-देना नहीं है. ज़रा सा किसी ने आईना  दिखाया और ये बोले, "हाँ, बोला था मोदी सरकार आयेगी तो पेट्रोल सस्ता हो जायेगा, अब नहीं हुआ तो क्या पूँछ पाड़ लेगा मेरी?" इस से यह भी साबित होता है कि ये कोई पूंछ वाले जानवर हैं. जब वो खुद मान रहे हैं कि उन की पूँछ है तो हम काहे मना करें? 

पीछे ये बोलते थे कि बड़े करेंसी नोट बंद कर दो, बड़े नोटों में रिश्वत लेना-देना आसान होता है. अब यह एक दम बकवास बात थी. सरकार ने मानी भी नहीं. सरकार ने हजार रुपये का नोट बंद कर के दो हजार रुपये का नोट निकाल दिया. रिश्वत क्या नोट-छोटे बड़े होने से घटेगी-बढ़ेगी? रिश्वत इस लिए ली-दी जाती है चूँकि आप के सिस्टम में छेद होते हैं, चूँकि अफसर जनता का नौकर नहीं जनता का मालिक बन बैठता है, चूँकि उसे नौकरी से निकालना आसान काम नहीं होता, चूँकि उस के काम की जवाब-देयी न के बराबर होती है. अब उस ने रिश्वत लेनी है तो वो ज़रूरी नहीं खुद  लेगा. वो पान वाला फिक्स कर देगा. वहां जाओ और पैसे दो. वो मोची फिक्स कर लेगा. वो नाई, कसाई, हलवाई किसी को भी फिक्स कर लेगा. वो ज़रूरी नहीं कैश पैसे ले. वो कार, देशी-विदेशी ट्रिप, महंगी दारू, मंहगी लड़कियां......कुछ भी रिश्वत में ले सकता है. लेकिन बाबा को इतनी डिटेल में कहाँ जाना था? बड़े नोट बंद कर दो. यह था बाबा का सामाजिक ज्ञान! बकवास!! 

मैं और मेरे जैसे अनेक लोग मानते हैं कि को.रो.ना. नकली बीमारी है. बाबा को भी अहसास है. बाबा बोले, "यह बहुत बड़ा षड्यन्त्र है, बहुत बड़े-बड़े लोग इस में शामिल है, लेकिन मैं अभी कुछ ज़्यादा नहीं बोलूँगा. बोलूँगा तो सब मेरे पीछे पड़ जायेंगे. 5 साल बाद मैं इस का पर्दा-फ़ाश करूंगा." वैरी गुड! 5 साल बाद क्या पूच्छल पाड़ लोगे बाबा? क्या घंटा उखाड़ लोगे बाबा? ज़रूरत आज है बोलने की और आप बोलोगे 5 साल बाद. मतलब सांप निकल जायेगा, फिर लकीर पीटोगे. क्या हम नहीं बोल रहे? क्या डॉक्टर Tarun Kothari, डॉक्टर विलास जगदले, डॉक्टर NK Sharma और कई-कई लोग नहीं बोल रहे कि को.वि.ड. नकली महामारी है? आप इसलिए नहीं बोलेंगे चूँकि आप को अपने साम्राज्य को खतरे में नहीं डालना. फिर आप को जो लोग लाला राम देव कह रहे हैं, क्या गलत कह रहे हैं?


तो कुल मिला कर मेरा नतीजा यह है कि बाबा का जितना बड़ा नाम है, जितना बड़ा ब्रांड बाबा बन चुके हैं, बाबा उस के लायक बिलकुल भी नहीं हैं. उन को सिवा आसन और प्राणायाम के कुछ नहीं आता-जाता. आसान आप को 'नताशा नोएल' YouTube पर उन से बेहतर सिखा देंगी. प्राणायाम सिखाने वाले भी भरे पड़े हैं वेब पर. सामाजिक समझ पर आप को वेब पर उन से बेहतर बहुत लिखने बोलने वाले मिल जायेंगे. मेरे 900 के करीब लेख हैं, उन के बोल-बचन से तो कहीं बेहतर. 

फिर भी उन के सामाजिक योगदान को मैं शून्य नहीं मानता हूँ. उन का आसानों और प्राणायाम और आयुर्वेद को समाज तक पहुँचाने का योगदान तो है ही. टीवी के ज़रिये भी और साक्षात भी. लेकिन भारत में किसी के नाम के आगे 'बाबा' लग जाये, कोई भगवा कपड़े पहने हो तो लोग बहुत ज़्यादा प्रभावित होने लगते हैं, अंधे होने लगते हैं, अक्ल के अंधे. बस वही मत होईये. बाबा को इज्ज़त दीजिये लेकिन उतनी जितने के वो लायक हैं. उन को अर्थ-शास्त्री, समाज-शास्त्री, राजनीति-वैज्ञानिक न समझें. वो आसन और प्राणायाम जानते हैं तो बस उतनी ही इज्ज़त उन को बख्शिए.

तुषार कॉस्मिक
   

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