Wednesday 6 April 2022

विस्तारवादी धर्मों का मुकाबला कैसे करें?

ईसाई पहले नम्बर पर है और इस्लाम दूजे नम्बर पर. मैं हैरान  होता हूँ, इतने बचकाने धर्म फिर भी इतना पसारा. वजह क्या है?

वजह है, इन का विस्तार वाद. 
इब्रह्मिक धर्म जो भी हैं, वो विस्तारवादी हैं. 

तुम्हें कोई सिक्ख यह कहता नहीं मिलेगा कि तुम ईसाई हो तो सिक्ख बन जाओ. बनना है बनो, न बनना हो तो भी कोई दिक्कत नहीं. गुरूद्वारे जाओ,  तुम्हारी जात-औकात नहीं देखी जाएगी. तुम्हारे जूते साफ़ किये जायेंगे, तुम्हे प्रेम से लंगर खाने को दिया जायेगा. हर इन्सान के साथ एक जैसा व्यवहार.

हिन्दू तो अपने आप में कोई धर्म है ही नहीं. यह विभिन्न मान्यताओं का एक जमावड़ा है. एक दूसरे की विरोधी मान्यताओं का भी. यहाँ कुछ भी पक्का नहीं. इसे ज़बरन एक धर्म का जामा पहनाया जा रहा है. इसे क्या मतलब आप क्या मानते हो?


जैन तो बस मुफ्त इलाज करेंगे, कोई आये, इन को क्या मतलब? आप जैन बनो न बनो.

बौद्ध को तो भारत में वैसे ही कोई नहीं पूछता. जो बने, वो अम्बेडकर की वजह से. बौद्ध विहार खाली पड़े रहते हैं. कोई नहीं आता आप कि गली में कि आप बौद्ध बनो. 


यह जो हिन्दुओं द्वारा "घर वापसी" के आयोजन हो रहे हैं, वो सिर्फ मुस्लिम के विरोध में. कुछ ईसाई के विरोध में भी.

तो क्या है मेरा सुझाव?

वैसे तो मैं सभी लगे-बंधे धर्मों के खिलाफ हूँ. लेकिन मैं इब्रह्मिक धर्मों के ज़्यादा खिलाफ हूँ. ख़ास कर के इस्लाम के. सब खराब  हैं, लेकिन सब एक जैसे खराब नहीं हैं.Bad, Worse, Worst होता है या नहीं. सब धर्मों को मैं ज़हर मानता हूँ, लेकिन इस्लाम को Potassium Cyanide

इन विस्तार-वादी धर्मों का मुकाबला करने के लिए एक तो तरीका यह है कि मेरे जैसे लोग जो भी लिख रहे हैं, बोल रहे हैं, या जो भी लिख चुके, बोल चुके, उसे विस्तार दिया जाये. ताकि लोग धर्मों की गुफाओं से बाहर आ सकें और यह काम इब्रह्मिक दुनिया में सब से ज़्यादा करने की ज़रूरत है. चूँकि बाकी धर्मों को न तो विस्तार से कोई मतलब है और न ही मार-काट से.    

ये बाकी धर्म यदि हिंसक होते भी हैं तो या तो मुस्लिम का मुकाबला करने को, जैसे बर्मा में बौद्ध हुए या मुस्लिम की साज़िश के शिकार हो कर, जैसे पंजाब में सिक्ख उग्रवादी हिन्दुओं के खिलाफ हो गए थे. अपने आप में बाकी दुनिया के धर्मों में अंतर-निहीत कुरीतियाँ हैं, कमियां हैं, जैसे हिन्दुओं में जाति-प्रथा लेकिन फिर भी ये धर्म उस  तरह से हिंसक नहीं हैं जैसे इस्लाम. न किसी को अपने खेमे में लाने को कोई लालच देते हैं जैसे ईसाई.

हालाँकि सारे धर्म जो भी एक लगे-बंधे ढांचे में इन्सान को डालते हों, वो विदा होने ही चाहिए, चूँकि ये सब इंसानी सोच को बाधित करते हैं, इन्सान की बुद्धि को हर लेते हैं, हैक कर लेते हैं, उसे एक मशीन बना देते हैं. रोबोट बना देते हैं, जो एक निश्चित प्रोग्राम के तहत जीवन जीता चला जाता है.

लेकिन फिर भी चूँकि इस्लाम सब से ज़्यादा हिंसक है, सो सब से ज़्यादा काम इस्लामिक दुनिया में करने की ज़रूरत है ताकि लोग इस दुनिया से बाहर आ सकें.

इस के लिए अलग टापू खरीदे जा सकते हैं, जहाँ एक्स-मुस्लिम को बसाया जा सके. चूँकि बहुत से मुस्लिम जो इस्लाम छोड़ना चाहते हैं या छोड़ चुके हैं वो इस्लामिक मुल्कों में मज़बूरी में रह रहे हैं और 
मज़बूरी में ही इस्लामिक रवायतों को मान रहे हैं चूँकि यदि वो इस्लाम छोड़ने की घोषणा करेंगे तो भी मार दिए जा सकते हैं. सो ऐसे लोगों का पॉलीग्राफ टेस्ट कर के, बॉडी लैंग्वेज टेस्ट कर के, हैण्ड राइटिंग टेस्ट कर के या जो भी और कोई टेस्ट सम्भव हों, वो सब करने बाद,  इन को अलग टापूओं पर, अलग मुल्कों में शिफ्ट  कर देना चाहिए. अमेरिका भी तो ऐसे ही बसा था. वहां अलग-अलग मुल्कों से गोरे पहुँच गए थे. इस से इस्लामिक आबादी को बड़ा झटका लगेगा जो कि इंसानियत के लिए बहुत ज़रूरी है.

इस के साथ ही पूर्वी धर्म भी अपना प्रचार बढ़ा सकते हैं. वो इस लिए चूँकि बहुत से लोग अपने आप को धर्मों के बिना बिलकुल ही अनाथ समझने लगते हैं तो उन को फिलहाल पूर्वी धर्मों में लाये जाने का प्रयास किया जान चाहिए. सो हिन्दू, सिक्ख, बौद्ध, जैन भी यदि विस्तारवाद अपनाएं तो यह अंततः शुभ ही साबित होगा.,...


नमन
तुषार कॉस्मिक

No comments:

Post a Comment