भाजपा बनाम केजरीवाल

विज्ञान का सिद्धान्त है, Vaccum को तुरत कोई न कोई चीज़ भर देती है. 

जनता ने भाजपा को दो बार बहुमत दिया. लेकिन भाजपा ज़मीन से जुड़े मुद्दे हल न कर पाई. बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दों पर भाजपा का काम नज़र ही नहीं आया. 

इस शून्य को भरा केजरीवाल की पार्टी ने. नतीजा दो राज्यों में "आप" सरकार. 

अभी भी भाजपा में घमण्ड है. नहीं समझी तो "आप" बड़ी पार्टी बन उभरेगी.

दिल्ली में MCD में भाजपा 15 साल से है और काम के नाम पे शून्य. भाजपा ने काम किया होता तो चुनाव से भागती नहीं.  

भाजपा को केजरीवाल से सीखना चाहिए कि जनता के रोज़मर्रा के मुद्दों पर काम करना होगा. 

यदि बिजली पानी केजरीवाल मुफ्त कर सकता है, इलाज सस्ता दे सकता है, अच्छे सरकारी स्कूल दे सकता है तो भाजपा क्यों नहीं? 

भाजपा सीखेगी तो जीतेगी..

आम आदमी पार्टी ने रोज़मर्रा के बेसिक मुद्दों पर काम किया. बिजली-पानी सस्ता किया. मोहल्ला क्लीनिक बनाये, स्कूलों पर काम किया. इसी का नतीजा है कि 2 राज्यों में इस की सरकार है. 

लेकिन क्या यह पार्टी भाजपा का मुकाबला कर पायेगी? नहीं. 

नहीं कर पायेगी चूँकि "ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम" वाला फ़लसफ़ा हिन्दू जनता लगभग नकार चुकी है, जिसे केजरीवाल पकड़े है.

हिन्दू जन-मानस इस्लाम के खतरे को समझने लगा है. सो केजरीवाल विपक्ष का हिस्सा तो बन सकता है लेकिन केंद्र इस से बहुत-बहुत दूर रहेगा.

तुषार कॉस्मिक

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