Sunday, 17 April 2022

पूरी दुनिया में जनता अपने नेताओं को जो अन्धी पॉवर दे देती है. ऐसा नहीं होना चाहिए

मैं इस बात में नहीं जाता हूँ कि किसान कानून  सही थे या गलत या फिर कितने सही थे और कितने गलत. लेकिन एक बात तय है कि सरकारों को कानून बिना जनता को विश्वास में लिए पास नहीं करने चाहियें.

क्या रूस और यूक्रेन युद्ध से पहले वहाँ की जनता से युद्ध के लिए सहमति ली गयी थी? क्या कोई वोटिंग कराई गयी थी? या फिर इन दोनों मुल्कों के नेताओं ने अपनी सनक जनता पर थोप दी? मैंने तो सुना है रूस की जनता युद्ध का विरोध कर रही थी और यूक्रेन की जनता युद्ध के दौरान धूप सेक रही थी. 

अभी पूरी दुनिया कोरोना से दहला दी गयी, अभी भी दहलाई जा रही है. क्या जनता की राय ली गयी, पूरे आंकड़े दे कर? क्या उन को उन आंकड़ों का विश्लेषण करने का अवसर दिया गया? क्या जो लोग कोरोना को फर्जी बता रहे थे, उन की आवाज़ जनता तक पहुँचने दी गयी? नहीं दी गयी. सब लीडरान ने मिल कर घोषित कर दिया कि कोरोना महामारी है और इस के लिए lockdown, मास्क, वैक्सीन ज़रूरी है और जनता ने मान लिया, मान इस लिए लिया चूँकि जनता तक इस Narrative के विरोध में इनफार्मेशन, तर्क पहुँचने ही नहीं दिए गए. 

तो साहेबान, मेरा कहना यह है कि पूरी दुनिया में जनता अपने नेताओं को अन्धी पॉवर दे देती है. ऐसा नहीं होना चाहिए. जनता की राय के बिना बहुत कम फैसले लिए जाने चाहियें, या कोई भी फैसले लिए ही नहीं जाने चाहिए और आज यह बहुत आसान है, मोबाइल फ़ोन सब के पास हैं, इन फ़ोनों से वोटिंग ली जा सकती है लेकिन उस से पहले जनता तक सामने खड़े मुद्दे से जुड़ी हर तरह इम्कीपोर्टेन्ट इनफार्मेंमेशन भी पहुंचनी चाहिए. यह जैसा कोरोना मामले में हुआ कि विरोधी विचारों को Disaster Act तले दबा दिया गया, वैसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. जहां तक हो सके, जनता को सोचने का, बहस करने का मौका दिया जाना चाहिए. 

तुषार कॉस्मिक

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