Posts

Showing posts from July, 2015

पुलिस

बहुत रौला रप्पा है दिल्ली पुलिस के बारे में इन दिनों. रवि नाम का लड़का  काम करता था मेरे साथ कुछ साल पहले.....अभी आया दो तीन रोज़ पहले....किसी औरत ने छेड़छाड़ का केस दर्ज़ करवा दिया उस पर.....घबराया था.....मैंने केस पढ़ा एक दम बेजान.....बेतुके आरोप. जैसे किसी ने नशे में जो मन में आया लिख दिया हो...कोई सबूत नहीं.....कोई गवाह नहीं....कोई ऑडियो, विडियो रिकॉर्डिंग नहीं.....और साथ में पैसों के ले-दे  का भी ज़िक्र....आरोप कि रवि पैसे वापिस नहीं दे रहा  रवि ने बताया, “भैया, पैसों वाली बात सच है, मैंने इनके पचास हज़ार देने थे. साल भर से ब्याज दे रहा था..अभी नौकरी छूट गयी है सो दो महीने से ब्याज नहीं दे पाया....मैंने बोला दे दूंगा....कुछ इंतेज़ाम होते ही..पर बेसब्री में मेरे घर आकर गाली गलौच कर दी....इसीलिए ये केस दर्ज़ करवा दिया है” यह किस्सा सुनाने का एक मन्तव्य है. पुलिस के IO (Inspecting Officer) का रोल क्या होना चाहिए? यही न कि जो भी केस उसके हिस्से आये वो उसकी छानबीन करे. यहाँ मालूम क्या छानबीन होती है? पैसे कहाँ से मिल सकते हैं? पैसे कैसे लिए जा सकते हैं? थाने में IO खुद जज, ...

मेरी भोजन यात्रा

यात्रा वृतांत पढ़े होंगे, सुने होंगे आपने. आज भोजन वृतांत पढ़िए. यात्रा वृतांत जैसा ही है, बस फोकस भोजन पर है ...भोजन यात्रा ..मेरी भोजन यात्रा .....मन्तव्य मात्र पीना-खाना है और मेरे जीवन में आपको खुद के जीवन की झलकियाँ दिखाना है. चलिए फिर, चलते हैं. कहते हैं आदमी के दिल का रास्ता पेट से हो के गुजरता है... सही है ..... वैसे दिल के दौरे का रास्ता भी पेट से ही हो के गुजरता है और दिल का रास्ता पेट की बजाए पेट के थोड़ा नीचे से शोर्ट कट है. सीक्रेट है थोड़ा, लेकिन है. बचपने में बासी रोटी को पानी की छींट से हल्की गीली करके लाल मिर्च और नमक छिड़क कर दूसरी रोटी से रगड़ कर खाना याद है. और याद है रोटी खाना पानी में नमक और लाल मिर्च घोल के साथ ..हमारे घर में खाने-पीने की कभी कमी तो नहीं रही लेकिन वहां बठिंडा में कभी-कभी ऐसे भी खाते थे....एक बार घर से लड़ कर वहीं एक फैक्ट्री में मजदूरी की दिन भर, मजदूरों के साथ बैठ खाना खाया, अचार, हरी मिर्च और प्याज़ के साथ ...वो भी कभी भूला नहीं. आज भोजन-भट्ट तो नहीं हूँ लेकिन थोड़ा ज़्यादा खा जाता हूँ लेकिन जो खाता हूँ अच्छा खाता हूँ...कहते हैं थोड़ा ख...

कानूनी दाँव पेंच

एक समय था मुझे कानून की ABCD नहीं पता थी.......सुना था कि कचहरी और अस्पताल से भगवान दुश्मन को भी दूर रखे.......लोगों की उम्रें निकल जाती हैं........जवानी से बुढापे और बुढापे से लाश में तब्दील हो जाते हैं और जज सिर्फ तारीखें दे रहे होते हैं लेकिन मेरा जीवन.....मुझे कचहरी के चक्कर में पड़ना था सो पड़ गया .........शुरू में वकील से बात भी नहीं कर पाता था ठीक से.....वकील की बात को समझने की कोशिश करता लेकिन समझ नहीं पाता...जैसे डॉक्टर की लिखत को आप समझना चाहें भी तो नहीं समझ पाते वैसे ही वकील की बात का कोई मुंह सर निकालना चाहते हुए भी नहीं निकाल पाता एक वकील से असंतुष्ट हुआ, अधर में ही उसे छोड़ दूसरा पकड़ा......वो भी समझ नहीं आया ..तीसरा पकड़ा......कुछ पता नहीं था....तारीख का मतलब बस जैसे तैसे कचहरी में हाज़िरी देना ही समझता था तकरीबन तीन साल चला केस.....यह मेरी ज़िन्दगी का पहला केस था...और जायज़ केस था.....किसी से पैसे लेने थे....चेक का केस था और फिर भी मैं हार गया...... जब घर वापिस आया तो औंधा मुंह लेट गया, घंटों पड़ा रहा....गहन ग्लानि खुद को पढ़ा लिखा समझदार समझता था लेकिन एक कम पढ़े लिखे ...

प्रॉपर्टी बाज़ार----एक षड्यंत्र आम इन्सान के खिलाफ़

अस्सी के दशक के खतम होते होते हम लोग पंजाब से दिल्ली आ गए थे.......उन दिनों यहाँ प्रोपर्टी का धंधा उछाल पर था.......जैसे हम पंजाब से आये हे और भी बहुत लोग आये थे...........फिर कुछ ही समय बाद कुछ लोग कश्मीर छोड़ दिल्ली आ गए.....वो भी एक फैक्टर रहा प्रॉपर्टी में उछाल का....सो यहाँ प्रॉपर्टी के रेट दिन दूने रात चौगुने होने लगे वैसे असल कारण यह नहीं था इस बढ़ोतरी का....असल कारण यह था कि प्रॉपर्टी दिल्ली का, भारत का स्विस बैंक था......सब अनाप शनाप पैसा प्रॉपर्टी में लगता था .....जिनको प्रॉपर्टी की कोई ज़रूरत नहीं थी वो लोग ब्लैक मार्केटिंग कर रहे थे........ आप घी, चावल, चीनी स्टोर नहीं कर सकते, यह गैर कानूनी है, ब्लैक मार्केटिंग है लेकिन प्रॉपर्टी स्टोर कर सकते हैं, यह इन्वेस्टमेंट कहलाता है....बस इन्वेस्टमेंट के नाम पर काला बाज़ारी होने लगी काला बाज़ारी ज्यों चली तो दो हज़ार ग्यारह के मध्य तक चली. उतार चड़ाव रहा और लेकिन कुल मिला जो उतार भी रहा वो फिर से चड़ाव में बदल गया. दो हज़ार ग्यारह में महीनों में प्रॉपर्टी डबल हो गयी, ढाई गुणा हो गयी. दिल्ली का एक आम एल ई जी फ्लैट जो चालीस ल...

संस्कृति और राष्ट्रवाद

मैं अक्सर देखता हूँ कई लोग कहते हैं कि मुस्लिम बाहर से आये हम पर हमलवार थे...क्या किसी ने यह पूछा कि अशोक ने कलिंग के युद्ध में खून बहाया तो क्या वो कलिंग के लिए बाहर से आया हमलावर नहीं था? वाल्मीकि रामायण में साफ़ लिखा है कि राम अपने ऐसे पड़ोसी राजाओं पर हमला करता है जिनका कभी कोई झगड़ा ही नहीं था उससे ....वो क्या था.....वो हमलावर नहीं था क्या? सच बात तो यह है कि यहाँ का हर राजा का अपना देश था......और हर पड़ोसी राज्य उसके लिए  विदेश था...बाहरी था यहाँ आज तक दिल्ली में बिहारी मज़दूर कहता है कि वो अपने मुलुक वापिस जा रहा हूँ और आप कहते हैं कि देश एक था....मुहावरे आपको इतिहास बताते हैं और एक बात कही जाती है कि चाहे आपस में संघर्ष था लेकिन सांस्कृतिक तौर पर हम एक थे......राम रावण एक ही देवता के पुजारी थे.......महाभारत तो खैर हुआ ही एक ही परिवार में था...सो एक  ही तरह की आस्थाएं थी.....सो भारत चाहे राजनीतिक तौर पर एक देश न रहा हो लेकिन सांस्कृतिक तौर पर तो रहा है  आरएसएस का राष्ट्र्वाद तो टिका ही इस बात पर है कि भारत एक ऐसे भू भाग का नाम है जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान...

नौकरियां, कुछ पहलु

1) बैंकों में कार्य करने वालों को क्या ज़रुरत है कि वो कॉमर्स समझते हों?.......वो मात्र लेबर हैं......मतलब एक आदमी को कैश बॉक्स में बिठाया गया है....इसे सारा दिन नोट गिन कर देने और लेने हैं....और वो काम भी मशीन से ही करना है........कितनी अक्ल चाहिए इस काम के लिए? शायद एक दिन की ट्रेनिंग से कोई भी आम व्यक्ति इस काम को अंजाम दे देगा.......चलो एक दिन न सही एक हफ्ता....चलो एक हफ्ता नहीं एक महीना. कुछ साल पहले की बात है मैंने एक चेक दिया कोई आठ हज़ार आठ सौ का किसी को...बैंक ने अस्सी हज़ार आठ सौ मेरे खाते से कम कर दिए.....मैंने पकड़ लिया...केशियर रोने लगा.......कहे कि मैंने तो अस्सी हज़ार आठ सौ  ही दिए हैं........जिसको चेक दिया था उसे बुलाया गया, वो कहे मैंने आठ हज़ार आठ सौ  ही लिए हैं.......खैर, केशियर को भुगतने पड़े वो पैसे अभी एक बैंक  में  मैंने  फ़ोन  नंबर   बदलने   की अर्ज़ी  दी.......पट्ठों   ने  हफ्तों लगा दिए  उसी काम में.....खैर,  मैंने    किसी   दूसरे  बैंक   से अपना काम  निकाल लिया.....कोई...

हमारी अशिक्षा प्रणाली

मैं इसे शिक्षा प्रणाली मानता ही नहीं.......मैं इसे साज़िश मानता हूँ......हमारे बच्चों को मंद बुद्धि रखने की....उनकी प्राकृतिक सोच समझ को कुंद करने की साज़िश. वैसे तो इसमें  आमूल-चूल बदलाव होना चाहिए लेकिन अभी  बस दो पहलू छू रहा हूँ दसवीं कक्षा पास की मैंने ....स्कूल में टॉप किया.......और शायद अंग्रेज़ी में स्टेट में भी, लेकिन इसका पक्का ख्याल नहीं है.......फिर चयन करना था कि मेडिकल लिया जाए या नॉन मेडिकल या कॉमर्स....मैंने नॉन-मेडिकल लिया..........अब यहाँ तक आते आते मेरी रूचि इस तरह की पढ़ाई में बिलकुल न रही....खैर, मैंने फर्स्ट डिविज़न से पास किया लेकिन कोई तीर न मारा......अब आगे मैं यह सब बिलकुल नहीं पढ़ना चाहता था. लड़के लड़कियों के पीछे थे और मैं लाइब्रेरीज़ में किताबों के पीछे.....मेरी महबूबा क़िताबें बन चुकी थीं. जान बूझ कर आर्ट्स लिया.......बहुत समझाया लोगों ने आर्ट्स में तो वो लोग जाते हैं जिनके बस का कुछ और पढ़ना ही नहीं होता.....आर्ट्स के विद्यार्थी का कोई भविष्य ही नहीं .....चूँकि न तो आर्ट्स को कोई विद्या समझा जाता है और न ही उसके विद्यार्थी को विद्या का अर्थी.....आर...

हमारा खोखला रहन सहन

जब पीछे मुड़ देखता हूँ कि जीवन कितना बदल गया........बदल गया......आगे बढ़  गया या बिगड़ गया?  गड्ड मड्डा जाता हूँ डार्विन के मुताबिक मनुष्य विकास है....... सर्वश्रेष्ठ है ......मानव को देख ऐसा लगता तो नहीं  मैं पंजाब से हूँ, बठिंडा मझौला शहर .....अब दिल्ली में हूँ कहते हैं कि पिछले बीस बरस में दुनिया ने लम्बी छलांग मारी है..........मुझे लगता है कि छलांग मारी तो है लेकिन कहीं बीच में रह गई यह कूद, छपाक   कीचड़ में जो काम हल्दी और बेसन और मुलतानी मिटटी को चेहरे पर लगाने से हो जाता था उसके लिए पता नहीं कितनी ही देसी विदेशी कम्पनी खड़ी कर दी गयी गर्मियों में माँ मुल्तानी मिट्टी से सारा बदन पोत देती थीं...फिर नहला देती कोई घंटे दो घंटे बाद.....घमौरियां खतम......यहाँ ठंडा ठंडा डर्मी-कूल पाउडर न डालो शरीर पे तो मुक्ति न हो लगभग सत्रह साल की उम्र तक बठिंडा में रहा हूँ....न तो वहां एक्वागार्ड थे और न ही आर. ओं......नल का पानी  पी कर बड़े हुए...माँ के हाथ की सब्ज़ी रोटी खा कर बड़े हुए.......न वहां पिज़्ज़ा बर्गर थे और न ही डोसा वडा......बाज़ार अभी घर पर हावी नहीं हुआ थ...

भविष्य एक नज़र

भविष्य एक नज़र--- संचार क्रांति ही वाहन बनेगी विचार क्रांति की अभी अधिकांशतः चबा चबाया माल सरकाया जा रहा है या फिर आशिकी की जाती है लेकिन जल्द ही दुनिया बदलेगी इन्टरनेट की वजह से कोई नहीं रोक पायेगा विचारों के प्रवाह को अब कोई नहीं रोक पायेगा जल्द ही दुनिया में वो होगा जो आज तक न हुआ है सब ढाँचे टूट जायेंगें सब सभ्यताएं ढह ढेरी हो जायेंगी वो जो फिल्मों में दिखाते हैं न...कि सब बर्बाद हो गया...वो सब होने वाला है..लेकिन शुभ के लिए बहुत कूड़ा है इकट्ठा सब बहने वाला है शुभ के लिए "मानवीय  भविष्य"  काटजू जैसे लोग  मूर्ख हैं  जो सर्व धर्म सामंजस्य जैसे प्रयास कर रहे हैं......रोज़ा इफ्तार  में  अन्य धर्मों के लोगों को सम्मिलित कर रहे हैं....इनको वहम है कि अलग अलग धर्मों  को मानने वाले लोग आपस में शांति से रह सकते हैं.....पंजाब  के मलेर  कोटला   की मिसाल    देते  हैं,   किसी  मुस्लिम   ने  हिन्दू   बच्चे  गोद  ले लिए  उसकी  मिसाल  देते  हैं......अरे, सब अपवाद हैं और अपवाद ...

Shraadh

Hindus donate clothes,eatables and other things of daily uses to the Brahmins in the Days of Shraadhs,believing that all these things are reaching to their dead forefathers and fore-mothers. They believe that this way, they are showing respect to their dead ancestors.This is all foolish. their is no scientific and logical ground for this belief.These are just superstitions.We should love and respe ct our parents during their lifetime, knowing all their shortcomings and if we want to do something for them after their death,in their memory,we should do some social work and dedicate this work to our ancestors. I AM NOT TALKING OF THE FATHERS WHO RAPE THEIR KIDS, I AM NOT TALKING OF THE PARENTS WHO PUSH THEIR GIRLS INTO PROSTITUTION, I AM NOT TALKING OF THE PARENTS WHO JUST GIVE BIRTH TO THE KIDS FOR THE SAKE OF GIVING BIRTH TO THE KIDS, I AM NOT TALKING OF THE PARENTS WHO DO NOTHING FOR THE WELL BEING AND BETTERMENT OF THEIR KIDS. I dedicate this post to my late father, who migrated Paki...

FEMEN INTERNATIONAL--- टॉपलेस सेक्सट्रीमिस्ट

मुझे इस संस्था का फेसबुक के ज़रिये ही पता लगा, स्त्रियों का जत्था है, उपरी शरीर के वस्त्र उतार देती हैं और सर पर फूलों का गुच्छा......इन्हें पता है कि पुरुष पागल है स्त्री शरीर देखने को...सो इसी बहाने ये स्त्रियाँ वो मुद्दे उठा रही हैं जो सारी दुनिया के लिए फायदेमंद हैं......मैं पूरी तरह से समर्थन करता हूँ इनका...... अफ़सोस तो यह कि भारत जैसे मुल्क में पूनम पाण्डेय मात्र इस ल िए मशहूर हो जाती है क्योंकि वो टॉपलेस होने की घोषणा कर देती है यहाँ रोज़ यह लड़कियां टॉपलेस खड़ी होती है, और वो भी जायज़ मुद्दों के साथ, दुनिया की बेहतरी के लिए और ऐसा नहीं कि इन्हें आसानी से सस्वीकार किया जा रहा है, न, इनके साथ धक्का मुक्की की जा रही है और गिरफ़्तार किया जा रहा है यदि कोई भी लड़कियां FEMEN INTERNATIONAL की तरह हमारे साथ आना चाहें, IPP में आना चाहें तो हम उनका स्वागत करेंगे और practically उनकी जो मदद हो पायेगी, करेंगे

COW AS MOTHER OF HINDUS, MY VIEWS

The only fact is, cow was being eaten in ancient India, later on when agriculture developed, seeing the utility of cow, Hindus started it calling mother. The whole idea was of calling cow mother is utility based, selfish, one sided, without any consent of the other side i.e. cow. Had Hindus asked cow, whether she accepts them as their kids, whether she accepts the thieves of her milk , which is meant for her biological kids as as her own kids? The thing is, till now majority of people were not trained to use logic, hence even the simplest things were just given as orders, without any explanation, hence till now many Hindus follow that order of accepting cow as mother without free thinking. Of course cow is mother and bull is our father, but in another context. The whole cosmos is ONE, universe, one verse, one poem, we are all creator and creation at once, we are all joined, we are all kids of this cosmos, universe, each other. And we should love and respect each other, hence it is not...

10 COMMANDMENTS FROM MOSES--A REVIEW

“And God spoke all these words, saying, “I am the LORD your God, who brought you out of the land of Egypt, out of the house of slavery.” Me---And me, says, “I am Tushar, your friendly neighborhood, lovely Dog from the land of Delhi, saying all these words unto you to take you out of the slavery, slavery of such foolish 10 commandments” 10 Commandments: - -----1) Thou shalt have no other gods before me. Me----There is no need to have any god before or after except yourself because you yourself are god or dog. Both ways lovely. 2) You shall not make for yourself a carved image, or any likeness of anything that is in heaven above, or that is in the earth beneath, or that is in the water under the earth. You shall not bow down to them or serve them, for I the LORD your God am a jealous God, visiting the iniquity of the fathers on the children to the third and the fourth generation of those who hate m...e, but showing steadfast love to thousands of those who love me and keep my commandment...

तुम्हें इंसान तो कहा नहीं जा सकता

तुम्हें इंसान तो कहा नहीं जा सकता चूँकि इंसानियत तुम में है नहीं गधा या उल्लू कहना गधे और उल्लू की बेईज्ज़ती है तुम्हारे स्वर्ग नरक सब झूठे हैं तुम्हारे देवी देवता मात्र कल्पनाएँ हैं तुम्हारा भगवान झूठ है तुम्हारी तीर्थ यात्रा एक सौदेबाज़ी है तुम्हारा दान बड़े फायदे के लालच का नतीजा है तुम ऊपर से नीचे तक नंगे हो और इस नग्नता को ढकने के लिए तुमने कपड़े इजाद किये हैं सुन्दर, शानदार धोखे जो तुम न सिर्फ दूसरों को देते हो बल्कि खुद को भी तुम्हें इंसान तो कहा नहीं जा सकता चूँकि इंसानियत तुम में है नहीं गधा या उल्लू कहना गधे और उल्लू की बेईज्ज़ती है तुम्हें वहम है कि तुम सब से ज़्यादा सयाने हो अपना घर, यह पृथ्वी तुम ने लगभग बर्बाद कर दी और तुम सयाने हो सभ्यता संस्कृति के नाम पर तुमने एक सर्कस इजाद कर ली और तुम सयाने हो पृथ्वी टुकड़ा टुकड़ा बाँट ली और तुम सयाने हो तुम्हारी आधी आबादी को आज भी ठीक से खाना नहीं मिलता और तुम सयाने हो तुम्हें इंसान तो कहा नहीं जा सकता चूँकि इंसानियत तुम में है नहीं गधा या उल्लू कहना गधे और उल्लू की बेईज्ज़ती है

आदिवासी और हम

मुझे लगता है कि आदिवासी  जीवन ही असल  जीवन है,  जीवन   से  भरपूर  जीवन  है मानव तन मन बना ही नहीं इस तरह के जीवन के लिए जैसा हम शहरों में हम  जीते हैं न  तन काम करता है, न मन   शांत होता है  तन मन सब ज़हरीला है उसमें कोई सौम्यता नहीं है गुरबाणी में कहते है ''नचणा टपणा मन का चाव"  हमारे जीवन में नाचना टापना बस  सिंबॉलिक रह गया, हम  सिनेमा टीवी पर दूसरों को नाचते गाते हँसते देख जी रहे हैं मैं पश्चिम विहार दिल्ली में रहता हूँ..यहाँ पहले बहुत झुग्गियां थी......हमारे  घरों  के पास भी   थी......वो लोग सर्द रातों में अलाव जला उसके इर्द गाते नाचते थे...मैं अक्सर सोचता.....ये कोठियों  में रहने वाले लोग......अमीर लोग....ये बस टीवी पर दूसरों को नाचते देख  खुश हो लेंगे...इन्हें कभी पता ही नहीं लगेगा कि  खुले  आसमान के तले   कैसे नाचा जाता है...ये एक मरे मराये जीवन   को बस जीए जायेंगे   ऐसी  ही  एक कहानी  पढ़ी  थी, बर्नार्ड शॉ  के  बारे में....