मैं अक्सर देखता हूँ कई लोग कहते हैं कि मुस्लिम बाहर से आये हम पर हमलवार थे...क्या किसी ने यह पूछा कि अशोक ने कलिंग के युद्ध में खून बहाया तो क्या वो कलिंग के लिए बाहर से आया हमलावर नहीं था?
वाल्मीकि रामायण में साफ़ लिखा है कि राम अपने ऐसे पड़ोसी राजाओं पर हमला करता है जिनका कभी कोई झगड़ा ही नहीं था उससे ....वो क्या था.....वो हमलावर नहीं था क्या?
सच बात तो यह है कि यहाँ का हर राजा का अपना देश था......और हर पड़ोसी राज्य उसके लिए विदेश था...बाहरी था
यहाँ आज तक दिल्ली में बिहारी मज़दूर कहता है कि वो अपने मुलुक वापिस जा रहा हूँ और आप कहते हैं कि देश एक था....मुहावरे आपको इतिहास बताते हैं
और एक बात कही जाती है कि चाहे आपस में संघर्ष था लेकिन सांस्कृतिक तौर पर हम एक थे......राम रावण एक ही देवता के पुजारी थे.......महाभारत तो खैर हुआ ही एक ही परिवार में था...सो एक ही तरह की आस्थाएं थी.....सो भारत चाहे राजनीतिक तौर पर एक देश न रहा हो लेकिन सांस्कृतिक तौर पर तो रहा है
आरएसएस का राष्ट्र्वाद तो टिका ही इस बात पर है कि भारत एक ऐसे भू भाग का नाम है जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि शामिल हैं.......संघ में तो ऐसा एक नक्शा भी दिखाया जाता है....अब मज़े की बात यह है कि भारत में कभी अंग्रेज़ों के समय के अलावा यह सब इलाके एक झंडे तले रहे नहीं.....अशोक के समय एक बड़ा राज्य रहा लेकिन अशोक बौद्ध हो गया...और बौद्ध कभी हिन्दू की जो मुख्य धारा थी उसमें शामिल नहीं थे.....उनका विरोध रहा है....रामायण में बुद्ध को चोर कहा गया है.....आरएसएस का राष्ट्रवाद इस बात पर भी टिका है कि यहाँ कि संस्कृति को हिंदुत्व कहा जाए.....अजीब ज़बरदस्ती है.......जो लोग खुद को हिन्दू नहीं मानते......वो भी खुद को हिन्दू ही कहें.....और तो और जो देश आज भारत के नक़्शे में नहीं हैं हम उनको भी भारत का हिस्सा मानें.....राजनीतिक न सही सांस्कृतिक तौर पर तो मानें....अगले चाहे न मानें लेकिन हम तो मानें.......वहाँ यहाँ चाहे कितनी ही विरोधी मान्यताओं के लोग रहे हों, रह रहे हों लेकिन सबको एक संस्कृति से जुड़ा मानें....और वो संस्कृति हिंदुत्व है......और वो संस्कृति दुनिया की महानतम संस्कृति है...अब यह अजीब जबरदस्ती है ...जिसे शब्द जाल से उलझाया गया है ...थोड़ा सुलझाने का प्रयास करता हूँ
किसी एक भू खंड में लोगों की सोच समझ में असमानता होते हुए यदि एक संस्कृति माननी है तो फिर पूरी पृथ्वी को एक संस्कृति मानना चाहिए.....होता रहे आपस में संघर्ष...संघर्ष तो कलिंग के युद्ध में भी हुआ, और महाभारत में भी और राम रावण युद्ध में भी.....यदि ये सब एक ही संस्कृति के लोग है तो फिर पूरी दुनिया क्यों एक संस्कृति नहीं है? सोच के देखिये
और फिर यहाँ भारत में भी लोग रहे हैं जो एक दूसरे के विरोधी विचारधारा वाले थे और हैं...तो फिर मात्र इसलिए कि कोई इस पृथ्वी के किसी और भू भाग से है और किसी और तरह की मान्यताओं से जुड़ा है अलग कैसे हुआ? .....वो भी हमारी ही संस्कृति का हिस्सा कैसे न हुआ?
हम अपनी सांस्कृतिक सोच को सार्वभौमिक क्यूँ नहीं रख सकते?
काहे किसी एक भू भाग तक सीमित करें?
और संस्कृति क्या मात्र इतनी ही है कि कोई लोग किस तरह की धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हैं?
संस्कृति शब्द को देखें.......तीन शब्द है....प्रकति.....विकृति और संस्कृति.....जब आप प्रकृति से नीचे गिर जाएँ तो विकृति है ऊपर उठ जाएँ तो संस्कृति है....
अब हमारे यहाँ जिस तरह का जीवन रहा है वो कुछ मामलों में संस्कृत था तो कुछ में विकृत......यहाँ कि चातुरवर्ण व्यवस्था ......वो विकृति थी.....यहाँ की पाक कला, नृत्य कला, गायन कला संस्कृति थी
और संस्कृति कोई तालाब का खड़ा पानी थोड़ा होता है....वो तो बहाव है.....कलकल करती नदी
और संस्कृति कोई किसी भू भाग तक सीमित थोड़ा होती है....वो असीम होती है
संस्कृति मतलब समय के हिसाब से सर्वोतम रहनसहन......और वो सर्वोतम कहीं से भी आता हो सकता है पूर्व, पश्चिम, उत्तर दक्षिण कहीं से भी .....कल दूसरे ग्रहों से भी .....यह है संस्कृति, जो संस्था संस्कृति को किसी भू भाग तक सीमित समझे वो खुद विकृत है.
वैसे जिस समाज के अधिकांश लोग गरीब हों, जीवन की साधारण ज़रूरतों से ऊपर न उठ पाएं वो समाज संस्कृत नहीं विकृत है..इस लिहाज़ से अभी दुनिया में कहीं कोई संस्कृति है ही नहीं
हम सिर्फ पुरानी परम्पराओं के जोड़ को....संस्कृतियाँ समझ रहे हैं.
मानव इतिहास उठा कर देखो......मार काट से भरा है....खून से भरा है...यह कोई संस्कृतियों का इतिहास है.?...या विकृतियों का इतिहास है?
दुनिया के अधिकांश लोग गरीबी में पैदा हुए है और गरीबी में मरे हैं...यह कोई संस्कृतियाँ हैं?
और आज भी दुनिया के अधिकांश लोग गरीब पैदा होते है , गरीब मरते हैं......यह कोई संस्कृति है?
चंद लोग चांदी काटें, बाकी बस दिन काटें, यदि यह संस्कृति है तो फिर विकृति क्या होती है?
प्रकृति तो कोई बच्चा गरीब पैदा नहीं करती, फिर आप की महान संस्कृति ठप्पा लगाती है कि कौन अमीर कौन गरीब. इसे संस्कृति कहते हैं? फिर विकृति क्या होती है?
लानत है!
संस्कृति अभी तक इस धरती पर ठीक से पैदा हुई ही नहीं है, हो सकती है, लेकिन हुई नहीं है
और क्या मात्र धार्मिक मान्यताओं से ही कोई संस्कृति निर्धारित होती है?
ये धार्मिक मान्यताएं सिवा अंध विश्वास के हैं क्या?
इसे संस्कृति तो कदापि नहीं कहा जा सकता, हाँ विकृति जरूर कह सकते हैं
जीवन कुछ मामलों में समृद्ध ज़रूर हुआ है, संस्कृत ज़रूर हुआ है लेकिन अधिकांश मामलों में विकृत है
उम्मीद है हम सब इस भ्रम से बाहर आ पाएं कि हमारे पूर्वजों की कोई संस्कृति थी या हम किसी संस्कृति में जी रहे हैं
नमन.....कॉपीराईट मैटर...शेयर कीजिये स्वागत है
तुषार कॉस्मिक
वाल्मीकि रामायण में साफ़ लिखा है कि राम अपने ऐसे पड़ोसी राजाओं पर हमला करता है जिनका कभी कोई झगड़ा ही नहीं था उससे ....वो क्या था.....वो हमलावर नहीं था क्या?
सच बात तो यह है कि यहाँ का हर राजा का अपना देश था......और हर पड़ोसी राज्य उसके लिए विदेश था...बाहरी था
यहाँ आज तक दिल्ली में बिहारी मज़दूर कहता है कि वो अपने मुलुक वापिस जा रहा हूँ और आप कहते हैं कि देश एक था....मुहावरे आपको इतिहास बताते हैं
और एक बात कही जाती है कि चाहे आपस में संघर्ष था लेकिन सांस्कृतिक तौर पर हम एक थे......राम रावण एक ही देवता के पुजारी थे.......महाभारत तो खैर हुआ ही एक ही परिवार में था...सो एक ही तरह की आस्थाएं थी.....सो भारत चाहे राजनीतिक तौर पर एक देश न रहा हो लेकिन सांस्कृतिक तौर पर तो रहा है
आरएसएस का राष्ट्र्वाद तो टिका ही इस बात पर है कि भारत एक ऐसे भू भाग का नाम है जिसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बर्मा, बांग्लादेश, श्रीलंका आदि शामिल हैं.......संघ में तो ऐसा एक नक्शा भी दिखाया जाता है....अब मज़े की बात यह है कि भारत में कभी अंग्रेज़ों के समय के अलावा यह सब इलाके एक झंडे तले रहे नहीं.....अशोक के समय एक बड़ा राज्य रहा लेकिन अशोक बौद्ध हो गया...और बौद्ध कभी हिन्दू की जो मुख्य धारा थी उसमें शामिल नहीं थे.....उनका विरोध रहा है....रामायण में बुद्ध को चोर कहा गया है.....आरएसएस का राष्ट्रवाद इस बात पर भी टिका है कि यहाँ कि संस्कृति को हिंदुत्व कहा जाए.....अजीब ज़बरदस्ती है.......जो लोग खुद को हिन्दू नहीं मानते......वो भी खुद को हिन्दू ही कहें.....और तो और जो देश आज भारत के नक़्शे में नहीं हैं हम उनको भी भारत का हिस्सा मानें.....राजनीतिक न सही सांस्कृतिक तौर पर तो मानें....अगले चाहे न मानें लेकिन हम तो मानें.......वहाँ यहाँ चाहे कितनी ही विरोधी मान्यताओं के लोग रहे हों, रह रहे हों लेकिन सबको एक संस्कृति से जुड़ा मानें....और वो संस्कृति हिंदुत्व है......और वो संस्कृति दुनिया की महानतम संस्कृति है...अब यह अजीब जबरदस्ती है ...जिसे शब्द जाल से उलझाया गया है ...थोड़ा सुलझाने का प्रयास करता हूँ
किसी एक भू खंड में लोगों की सोच समझ में असमानता होते हुए यदि एक संस्कृति माननी है तो फिर पूरी पृथ्वी को एक संस्कृति मानना चाहिए.....होता रहे आपस में संघर्ष...संघर्ष तो कलिंग के युद्ध में भी हुआ, और महाभारत में भी और राम रावण युद्ध में भी.....यदि ये सब एक ही संस्कृति के लोग है तो फिर पूरी दुनिया क्यों एक संस्कृति नहीं है? सोच के देखिये
और फिर यहाँ भारत में भी लोग रहे हैं जो एक दूसरे के विरोधी विचारधारा वाले थे और हैं...तो फिर मात्र इसलिए कि कोई इस पृथ्वी के किसी और भू भाग से है और किसी और तरह की मान्यताओं से जुड़ा है अलग कैसे हुआ? .....वो भी हमारी ही संस्कृति का हिस्सा कैसे न हुआ?
हम अपनी सांस्कृतिक सोच को सार्वभौमिक क्यूँ नहीं रख सकते?
काहे किसी एक भू भाग तक सीमित करें?
और संस्कृति क्या मात्र इतनी ही है कि कोई लोग किस तरह की धार्मिक मान्यताओं से जुड़े हैं?
संस्कृति शब्द को देखें.......तीन शब्द है....प्रकति.....विकृति और संस्कृति.....जब आप प्रकृति से नीचे गिर जाएँ तो विकृति है ऊपर उठ जाएँ तो संस्कृति है....
अब हमारे यहाँ जिस तरह का जीवन रहा है वो कुछ मामलों में संस्कृत था तो कुछ में विकृत......यहाँ कि चातुरवर्ण व्यवस्था ......वो विकृति थी.....यहाँ की पाक कला, नृत्य कला, गायन कला संस्कृति थी
और संस्कृति कोई तालाब का खड़ा पानी थोड़ा होता है....वो तो बहाव है.....कलकल करती नदी
और संस्कृति कोई किसी भू भाग तक सीमित थोड़ा होती है....वो असीम होती है
संस्कृति मतलब समय के हिसाब से सर्वोतम रहनसहन......और वो सर्वोतम कहीं से भी आता हो सकता है पूर्व, पश्चिम, उत्तर दक्षिण कहीं से भी .....कल दूसरे ग्रहों से भी .....यह है संस्कृति, जो संस्था संस्कृति को किसी भू भाग तक सीमित समझे वो खुद विकृत है.
वैसे जिस समाज के अधिकांश लोग गरीब हों, जीवन की साधारण ज़रूरतों से ऊपर न उठ पाएं वो समाज संस्कृत नहीं विकृत है..इस लिहाज़ से अभी दुनिया में कहीं कोई संस्कृति है ही नहीं
हम सिर्फ पुरानी परम्पराओं के जोड़ को....संस्कृतियाँ समझ रहे हैं.
मानव इतिहास उठा कर देखो......मार काट से भरा है....खून से भरा है...यह कोई संस्कृतियों का इतिहास है.?...या विकृतियों का इतिहास है?
दुनिया के अधिकांश लोग गरीबी में पैदा हुए है और गरीबी में मरे हैं...यह कोई संस्कृतियाँ हैं?
और आज भी दुनिया के अधिकांश लोग गरीब पैदा होते है , गरीब मरते हैं......यह कोई संस्कृति है?
चंद लोग चांदी काटें, बाकी बस दिन काटें, यदि यह संस्कृति है तो फिर विकृति क्या होती है?
प्रकृति तो कोई बच्चा गरीब पैदा नहीं करती, फिर आप की महान संस्कृति ठप्पा लगाती है कि कौन अमीर कौन गरीब. इसे संस्कृति कहते हैं? फिर विकृति क्या होती है?
लानत है!
संस्कृति अभी तक इस धरती पर ठीक से पैदा हुई ही नहीं है, हो सकती है, लेकिन हुई नहीं है
और क्या मात्र धार्मिक मान्यताओं से ही कोई संस्कृति निर्धारित होती है?
ये धार्मिक मान्यताएं सिवा अंध विश्वास के हैं क्या?
इसे संस्कृति तो कदापि नहीं कहा जा सकता, हाँ विकृति जरूर कह सकते हैं
जीवन कुछ मामलों में समृद्ध ज़रूर हुआ है, संस्कृत ज़रूर हुआ है लेकिन अधिकांश मामलों में विकृत है
उम्मीद है हम सब इस भ्रम से बाहर आ पाएं कि हमारे पूर्वजों की कोई संस्कृति थी या हम किसी संस्कृति में जी रहे हैं
नमन.....कॉपीराईट मैटर...शेयर कीजिये स्वागत है
तुषार कॉस्मिक
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