Monday, 27 July 2015

पुलिस

बहुत रौला रप्पा है दिल्ली पुलिस के बारे में इन दिनों.

रवि नाम का लड़का  काम करता था मेरे साथ कुछ साल पहले.....अभी आया दो तीन रोज़ पहले....किसी औरत ने छेड़छाड़ का केस दर्ज़ करवा दिया उस पर.....घबराया था.....मैंने केस पढ़ा एक दम बेजान.....बेतुके आरोप. जैसे किसी ने नशे में जो मन में आया लिख दिया हो...कोई सबूत नहीं.....कोई गवाह नहीं....कोई ऑडियो, विडियो रिकॉर्डिंग नहीं.....और साथ में पैसों के ले-दे  का भी ज़िक्र....आरोप कि रवि पैसे वापिस नहीं दे रहा 

रवि ने बताया, “भैया, पैसों वाली बात सच है, मैंने इनके पचास हज़ार देने थे. साल भर से ब्याज दे रहा था..अभी नौकरी छूट गयी है सो दो महीने से ब्याज नहीं दे पाया....मैंने बोला दे दूंगा....कुछ इंतेज़ाम होते ही..पर बेसब्री में मेरे घर आकर गाली गलौच कर दी....इसीलिए ये केस दर्ज़ करवा दिया है”


यह किस्सा सुनाने का एक मन्तव्य है. पुलिस के IO (Inspecting Officer) का रोल क्या होना चाहिए? यही न कि जो भी केस उसके हिस्से आये वो उसकी छानबीन करे. यहाँ मालूम क्या छानबीन होती है? पैसे कहाँ से मिल सकते हैं? पैसे कैसे लिए जा सकते हैं? थाने में IO खुद जज, वकील सब बना बैठा होता है. दोनों पार्टियाँ यदि समझौता करने पर राज़ी हो भी जाएँ  तब तक फैसला होने नहीं देगा जब तक उसकी खुद की धन पूजा न हो जाए...जान बूझ कर समय खराब करेगा......कभी कहीं चला जाएगा, कभी कहीं.....जितना मानसिक दबाव बना पायेगा, बनाएगा........और कई बार तो किसी अमीर से पैसे लेने के लिए किसी गरीब को खामखाह कूट देगा

एक किस्सा याद आया. एक बार मेरे कजन ने किसी को पीट दिया...वो भी पैसों का ही मामला था....रात को फ़ोन आय मुझे...पहुँच गया मैं.......वहां जिस कमरे में कजन था वहीं कोई गरीब से तीन चार लडके भी फर्श पर बिठाल रखे थे.....मैं जब गया तो मुझ से बात करते करते IO उन लडकों पर डंडे, जूते बरसा रहा था. कुछ ही देर में मैं समझ गया. समझ गया कि मुझ से पैसे झाड़ने को IO दबाव बना रहा है. परोक्ष में मुझे  धमकी दे रहा है कि यदि पैसे न मिले तो ऐसे ही मेरे कज़न को भी पीट दिया जाएगा.मैंने कज़न  से बात की, उसे समझाया कि IO का क्या जाएगा? रात भर यदि यहीं रहा तो कभी भी  हाथ चला सकता है. वो मान गया कि पैसे दे देने चाहिए ......खैर, पैसे दिए गये कज़न थाणे से बाहर हो गया

यह करता है IO. होना तो यह चाहिए कि जैसे रवि के केस में बिना किसी गवाह, सबूत के IO ने केस बनाया है तो केस खारिज होने पर IO पर भी कार्रवाही होनी चाहिए. हर इस तरह के केस जिसमें से IO की गलती दिखे उसकी सैलरी में से कुछ रकम कट कर विक्टिम  को मिलनी चाहिए....एक निश्चित समय तक तो मिलनी चाहिए और जो IO बहुत सारे बकवास केस कोर्ट पर थोपता हो उसे निष्कासित कर देना चाहिए. उसे IO बनाया किस लिए गया? झूठे , बेबुनियाद केस थोपने के लिए क्या? नहीं. न. मेरा सुझाव मानेंगे ओ अक्ल आ जायेगी.  

दिल्ली पुलिस की तरफ से एक छपता है “शोरा गोगा”. मुझे ठीक ठीक पता नहीं कि इसका मतलब क्या होता है. न पता होने की भी वजह यह है कि पुलिस आज भी अपने काम काज में मुगलकालीन भाषा प्रयोग करती है. वो भी बदलने  की जरूरत है. भाषा वो होनी चाहिए जो स्थानीय लोग प्रयोग करते हों. तो बात कर रहा था शोरा गोगा की. यह एक तरह का इश्तिहार होता है जो किसी गुमशुदा की तलाश के लिए या किसी अनजान लाश की शिनाख्त के लिए पुलिस छापती है. यकीन जानो इतनी बकवास ब्लैक एंड वाइट फोटो छपती है कि खुद जिसकी फोटो है वो भी न पहचान सके. 

मुझे आज तक समझ नहीं आई कि जब किसी संदिग्ध को पकड़ने का इश्तिहार छापा जाता है तो उमें स्केच के आधार पर आम फोटो कैसे नहीं बनाई जा सकती...स्केच भी दे दें, उससे ही बनी विभिन्न तरह की फोटो भी  

मुझे आज तक समझ नहीं आया कि जब पुलिस वालों की भर्ती होती है तो उनकी शारीरिक फिटनेस देखते हैं, वैसा हर साल क्यूँ नहीं किया जाता? क्या कुछ ही सालों में रिश्वत खाए, तोंद फुलाए पुलिस वालों को बर्खास्त नहीं कर देना चाहिए? क्या फिटनेस की ज़रुरत शुरू में ही होती है?

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