लंगर

लंगरों जैसे प्रयासों से कोई स्थाई हल नहीं होते भाई जी...चाहे वो कोई भी धर्म के लोग चलायें..बेहतर है सामाजिक व्यवस्था के भीतर तक उतरना...यह समझना कि गरीब गरीब क्यों है.....और अमीर अमीर क्यों है.....समाजिक व्यवस्था में तो कोई खराबी नहीं.....और खराबी है तो कहाँ है...और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है........गरीब गरीब समाजिक व्यवस्था से है...और अमीर भी एक स्वीकृत समाजिक व्यवस्था की वजह से है......यह लंगर आदि बचकाने प्रयास हैं.......
हमारा जो तबका बहुत नीचे है...उसे कैसे ऊपर लायें......मुल्क की ज़रुरत उसे है....अमीर तो वैसे ही सब खरीद लेगा......उसे क्या फर्क पड़ता है...उनके तो आधे परिवार वैसे ही भारत छोड़ चुके हैं

दिल्ली में शायद ही कोई अमीर परिवार ऐसा हो जिसके नाते रिश्तेदार इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि में न रहते हों

सत्य यह कि आज तक...आज तक अधिकांश इंसानियत गरीब ही पैदा हुई है, गरीब ही जीती रही है और गरीब ही मरती रही है.......और सारी व्यवस्था इसी तरह के निजाम को समर्थन देती रही है.... हमारी जो अधिकांश जनसंख्या जीती है और मरती है गरीबी में ..वो है नियम.....बन गया इक्का दुक्का आदमी अमीर गरीबी से...यह है अपवाद.....और अपवाद सिर्फ नियम को साबित करते हैं न कि उसके खिलाफ जाते हैं.......इसकी गहराए में जाएँ और उसे बदलने का प्रयास करें...यह गरीब अमीर साथ साथ बैठ लंगर खा सकते हैं......लंगर से कोई भूखों का पेट भर सकता है?......कुछ नहीं होना भाई जी, इन सब से...और न हुआ है

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