लंगरों जैसे प्रयासों से कोई स्थाई हल नहीं होते भाई जी...चाहे वो कोई भी धर्म के लोग चलायें..बेहतर है सामाजिक व्यवस्था के भीतर तक उतरना...यह समझना कि गरीब गरीब क्यों है.....और अमीर अमीर क्यों है.....समाजिक व्यवस्था में तो कोई खराबी नहीं.....और खराबी है तो कहाँ है...और उसे कैसे ठीक किया जा सकता है........गरीब गरीब समाजिक व्यवस्था से है...और अमीर भी एक स्वीकृत समाजिक व्यवस्था की वजह से है......यह लंगर आदि बचकाने प्रयास हैं.......
हमारा जो तबका बहुत नीचे है...उसे कैसे ऊपर लायें......मुल्क की ज़रुरत उसे है....अमीर तो वैसे ही सब खरीद लेगा......उसे क्या फर्क पड़ता है...उनके तो आधे परिवार वैसे ही भारत छोड़ चुके हैं
दिल्ली में शायद ही कोई अमीर परिवार ऐसा हो जिसके नाते रिश्तेदार इंग्लैंड, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया आदि में न रहते हों
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