जब मैं यह कहता हूँ कि खालिस्तान, हिंदुस्तान, पाकिस्तान जैसी धारणाएं खतरनाक हैं, बकवास हैं और दुनिया को धर्मों के आधार पर बांटना गलत है और दुनिया को सेकुलरिज्म के तले ही जीना चाहिए जिसमें सब तरह की मान्यताओं के हिसाब से लोग जी सकें तो मैं यह भी कहना चाहता हूँ कि दुनिया को एक ही तरह के कॉमन सिविल कोड के नीचे जीना चाहिए.
शरियत हो या कोई भी अन्य तरह के धार्मिक आधार वाले कानून किसी के लिए नहीं दिए जा सकते.
आज मुस्लिम इस बात पर तो राज़ी हैं कि उन्हें भारत में रहना है, भारत उनका मुल्क है....सेकुलरिज्म सही है तो क्या वो कॉमन सिविल कोड पर राज़ी हैं?..मुझे तो नहीं लगता.
लेकिन तर्क समझना चाहिए....जब हम मज़हबी मुल्क सही नहीं मानते तो फिर सब तरह के धर्मों के लोग रहेंगे सब जगह तो फिर साझे कानून बनाने ही होंगे और मानने ही होंगे...सिंपल
धार्मिक मर्यादा अक्सर कॉमन सिविल कोड के बीच अडंगा लगाती हैं, लेकिन हल निकाले जा सकते हैं...जैसे सिक्ख हथियार रखते हैं अपने धर्म के हिसाब से.....तो उन्हें कृपाण रखने की अनुमति दी गई लेकिन छोटी ...सिंबॉलिक
हल निकाले जा सकते हैं, लेकिन अंततः सेकुलरिज्म को मानने वाले लोगों को कॉमन सिविल कोड मानना ही होगा
सो मेरा मानना है कि मुस्लिम शरिया चाहे कुछ भी कहती हो लेकिन मुस्लिम को कॉमन सिविल कोड में आना ही चाहिए.
दुनिया हर पल आगे बढ़ती है..नई स्थितियां बनती हैं ...नए कायदे कानून बनाने पड़ते हैं.....जैसे पहले स्कूटर था ही नहीं तो हेलमेट के कानून भी नहीं थे....इसी तरह पहले आबादी की समस्या नहीं थी तो आबादी के कानून नहीं थे लेकिन आज है तो कानून बनाने पड़ सकते हैं आपका धर्म या उसका कायदा कुछ भी कहता हो.
अभी दिल्ली में दस साल पुरानी डीज़ल और पन्द्रह साल पुरानी पेट्रोल की गाड़ियों को विदा करने का कानून बना है....बिलकुल सही है....पोल्यूशन लेवल बहुत बढ़ा है...लोग पोल्यूशन वाले को पचास रुपये फ़ालतू दे सर्टिफिकेट ले लेते थे...सब मामला फेल था.....लोग बीस पचास हज़ार दे कर कार ले आते थे.....यहाँ बन्दों के खड़े होने की जगह नहीं बची....इतना बुरा हाल....पार्किंग के लिए कत्ल होने लगे...सरकार ने सही कदम उठाया...कारों की संख्या कम करो.
यही इंसानों के मामले में भी होना चाहिए.....मैं लगभग तेरह साल का था.....बठिंडा में मोर्निंग शो में अंग्रेज़ी फिल्में लगती थी..एक फिल्म देखी ...कोई चीनी या जापानी लोग.....वो अपने बुजुर्गों को निर्जन पहाडी पर छोड़ आते थे....वहां वो बुज़ुर्ग पत्थर से अपने बचे खुचे दांत तोड़ते हैं...फिर उनको चील कव्वे खा जाते हैं.....यहाँ भारत में भी ...दक्षिण में लोग अपने बुजुर्गों को कत्ल कर देते रहे हैं....मैंने पाया था एक आर्टिकल, कमेंट बॉक्स में दूंगा लिंक.....
अब जो दिल्ली की कारों के साथ किया जा रहा है, जो मेरी बताई फिल्म में किया जा रहा था या जो दक्षिण में किया जाता रहा है अपने बुजुर्गों के साथ, वो तो हम नहीं कर सकते..मैं तो अपनी वृद्ध, बीमार माँ को गर्म हवा न लगने दूं.....आज हम अपने बुजुर्गों के साथ गलत करेंगे तो कल हमारे बच्चे जिनको आज हम हृदय से लगाये घूमते हैं, वो हमारे साथ उससे भी ज़्यादा गलत करेंगे....और वो जो भी करें बुजुर्गों की सेवा हर हाल में हमें ही करनी चाहिए, हमारे जीवन का हिस्सा हैं वो, हमारा जीवन है वो
अस्तु, जनसंख्या के मामले में दूसरा रस्ता अख्तियार किया जा सकता है, बच्चे के आने पर रोक लगाई जा सकती है....हत्या वहां भी हो सकती है लेकिन वो अविकसित जीवन है, बुज़ुर्ग कत्ल करने से वो ही बेहतर है .... अब किसी का धर्म-धार्मिक कानून चाहे कुछ भी कहता रहे, जनसंख्या नियंत्रण के नियम मानने ही चाहियें
कल शायद दुनिया इस बात पर भी सहमत होने लगे कि निजी बच्चा नहीं होगा.....माँ बाप की निजी सम्पति जैसा नहीं होगा...वो सार्वजनिक होगा.....जब आपको स्कूल सार्वजानिक चाहिए, अस्पताल सार्वजानिक चाहिए तो फिर बच्चा ही सार्वजानिक क्यों न हो....आगे धर्म जो मर्ज़ी कहता रहे, मानना होगा.....सेकुलरिज्म के साथ कॉमन सिविल कोड को मानना होगा.....यह मात्र इतना मामला नहीं कि आज आरएसएस से धमक कर कोई कहे, हमें तो सेकुलरिज्म सही लगता है.....नहीं, सेकुलरिस्म को थोड़ा गहराई में समझ लीजिये....उसके साथ कॉमन सिविल कोड भी खड़ा है.....जैसे हक़ के साथ फर्ज़
और कॉमन सिविल कोड मतलब.....कॉमन मतलब कॉमन.........वो मात्र मुस्लिम की बात नही है...
सिक्ख स्त्रियों ने हेलमेट पहनने से मना किया, धर्म की वजह से....और यह मान भी लिया गया....लेकिन यह गलत है.....आज अगर गुरु साहेब होते तो शायद खुद अपने हाथ स्त्रियों को हेलमेट पहना देते...इसमें क्या बुरा है....सर की हिफाज़त होगी, ज़िंदगी बचेगी......लेकिन यही जड़ता नुक्सान करती है....अब कोई कहे कि हमारी मर्ज़ी किसी का क्या नुक्सान...लेकिन आप भी तो मुल्क की सम्पत्ति हो.....खामख्वाह बर्बादी होगी.....और कोई और बेचारा कानून के लपेटे में आ जायेगा चूँकि आपने हेलमेट नहीं पहना सो नुक्सान आपका हुआ लेकिन पचड़े में वो भी पड़ गया...सो यह तो कोई मानने वाला तर्क नहीं था लेकिन मान लिया गया.....illogical बात को legal बना दिया गया.....
और यही बात अंतिम संस्कार पर भी लागू की जा सकती है.... वृक्ष बहुत कीमती हैं और एक इंसान के साथ कितने ही वृक्ष मरें यह कहाँ की समझ है? प्रदूषण किया जाए , यह कहाँ की समझ है?
सीधे तर्क हैं.....किसी का धर्म चाहे जो मर्ज़ी कहता हो......जो समय की ज़रुरत हो उसके हिसाब से कायदे कानून बनाए जाने चाहिए और माने जाने चाहिए...बस यही कहना है मुझे
नमन.....कॉपी राईट......चुराएं न.......शेयर करें
शरियत हो या कोई भी अन्य तरह के धार्मिक आधार वाले कानून किसी के लिए नहीं दिए जा सकते.
आज मुस्लिम इस बात पर तो राज़ी हैं कि उन्हें भारत में रहना है, भारत उनका मुल्क है....सेकुलरिज्म सही है तो क्या वो कॉमन सिविल कोड पर राज़ी हैं?..मुझे तो नहीं लगता.
लेकिन तर्क समझना चाहिए....जब हम मज़हबी मुल्क सही नहीं मानते तो फिर सब तरह के धर्मों के लोग रहेंगे सब जगह तो फिर साझे कानून बनाने ही होंगे और मानने ही होंगे...सिंपल
धार्मिक मर्यादा अक्सर कॉमन सिविल कोड के बीच अडंगा लगाती हैं, लेकिन हल निकाले जा सकते हैं...जैसे सिक्ख हथियार रखते हैं अपने धर्म के हिसाब से.....तो उन्हें कृपाण रखने की अनुमति दी गई लेकिन छोटी ...सिंबॉलिक
हल निकाले जा सकते हैं, लेकिन अंततः सेकुलरिज्म को मानने वाले लोगों को कॉमन सिविल कोड मानना ही होगा
सो मेरा मानना है कि मुस्लिम शरिया चाहे कुछ भी कहती हो लेकिन मुस्लिम को कॉमन सिविल कोड में आना ही चाहिए.
दुनिया हर पल आगे बढ़ती है..नई स्थितियां बनती हैं ...नए कायदे कानून बनाने पड़ते हैं.....जैसे पहले स्कूटर था ही नहीं तो हेलमेट के कानून भी नहीं थे....इसी तरह पहले आबादी की समस्या नहीं थी तो आबादी के कानून नहीं थे लेकिन आज है तो कानून बनाने पड़ सकते हैं आपका धर्म या उसका कायदा कुछ भी कहता हो.
अभी दिल्ली में दस साल पुरानी डीज़ल और पन्द्रह साल पुरानी पेट्रोल की गाड़ियों को विदा करने का कानून बना है....बिलकुल सही है....पोल्यूशन लेवल बहुत बढ़ा है...लोग पोल्यूशन वाले को पचास रुपये फ़ालतू दे सर्टिफिकेट ले लेते थे...सब मामला फेल था.....लोग बीस पचास हज़ार दे कर कार ले आते थे.....यहाँ बन्दों के खड़े होने की जगह नहीं बची....इतना बुरा हाल....पार्किंग के लिए कत्ल होने लगे...सरकार ने सही कदम उठाया...कारों की संख्या कम करो.
यही इंसानों के मामले में भी होना चाहिए.....मैं लगभग तेरह साल का था.....बठिंडा में मोर्निंग शो में अंग्रेज़ी फिल्में लगती थी..एक फिल्म देखी ...कोई चीनी या जापानी लोग.....वो अपने बुजुर्गों को निर्जन पहाडी पर छोड़ आते थे....वहां वो बुज़ुर्ग पत्थर से अपने बचे खुचे दांत तोड़ते हैं...फिर उनको चील कव्वे खा जाते हैं.....यहाँ भारत में भी ...दक्षिण में लोग अपने बुजुर्गों को कत्ल कर देते रहे हैं....मैंने पाया था एक आर्टिकल, कमेंट बॉक्स में दूंगा लिंक.....
अब जो दिल्ली की कारों के साथ किया जा रहा है, जो मेरी बताई फिल्म में किया जा रहा था या जो दक्षिण में किया जाता रहा है अपने बुजुर्गों के साथ, वो तो हम नहीं कर सकते..मैं तो अपनी वृद्ध, बीमार माँ को गर्म हवा न लगने दूं.....आज हम अपने बुजुर्गों के साथ गलत करेंगे तो कल हमारे बच्चे जिनको आज हम हृदय से लगाये घूमते हैं, वो हमारे साथ उससे भी ज़्यादा गलत करेंगे....और वो जो भी करें बुजुर्गों की सेवा हर हाल में हमें ही करनी चाहिए, हमारे जीवन का हिस्सा हैं वो, हमारा जीवन है वो
अस्तु, जनसंख्या के मामले में दूसरा रस्ता अख्तियार किया जा सकता है, बच्चे के आने पर रोक लगाई जा सकती है....हत्या वहां भी हो सकती है लेकिन वो अविकसित जीवन है, बुज़ुर्ग कत्ल करने से वो ही बेहतर है .... अब किसी का धर्म-धार्मिक कानून चाहे कुछ भी कहता रहे, जनसंख्या नियंत्रण के नियम मानने ही चाहियें
कल शायद दुनिया इस बात पर भी सहमत होने लगे कि निजी बच्चा नहीं होगा.....माँ बाप की निजी सम्पति जैसा नहीं होगा...वो सार्वजनिक होगा.....जब आपको स्कूल सार्वजानिक चाहिए, अस्पताल सार्वजानिक चाहिए तो फिर बच्चा ही सार्वजानिक क्यों न हो....आगे धर्म जो मर्ज़ी कहता रहे, मानना होगा.....सेकुलरिज्म के साथ कॉमन सिविल कोड को मानना होगा.....यह मात्र इतना मामला नहीं कि आज आरएसएस से धमक कर कोई कहे, हमें तो सेकुलरिज्म सही लगता है.....नहीं, सेकुलरिस्म को थोड़ा गहराई में समझ लीजिये....उसके साथ कॉमन सिविल कोड भी खड़ा है.....जैसे हक़ के साथ फर्ज़
और कॉमन सिविल कोड मतलब.....कॉमन मतलब कॉमन.........वो मात्र मुस्लिम की बात नही है...
सिक्ख स्त्रियों ने हेलमेट पहनने से मना किया, धर्म की वजह से....और यह मान भी लिया गया....लेकिन यह गलत है.....आज अगर गुरु साहेब होते तो शायद खुद अपने हाथ स्त्रियों को हेलमेट पहना देते...इसमें क्या बुरा है....सर की हिफाज़त होगी, ज़िंदगी बचेगी......लेकिन यही जड़ता नुक्सान करती है....अब कोई कहे कि हमारी मर्ज़ी किसी का क्या नुक्सान...लेकिन आप भी तो मुल्क की सम्पत्ति हो.....खामख्वाह बर्बादी होगी.....और कोई और बेचारा कानून के लपेटे में आ जायेगा चूँकि आपने हेलमेट नहीं पहना सो नुक्सान आपका हुआ लेकिन पचड़े में वो भी पड़ गया...सो यह तो कोई मानने वाला तर्क नहीं था लेकिन मान लिया गया.....illogical बात को legal बना दिया गया.....
और यही बात अंतिम संस्कार पर भी लागू की जा सकती है.... वृक्ष बहुत कीमती हैं और एक इंसान के साथ कितने ही वृक्ष मरें यह कहाँ की समझ है? प्रदूषण किया जाए , यह कहाँ की समझ है?
सीधे तर्क हैं.....किसी का धर्म चाहे जो मर्ज़ी कहता हो......जो समय की ज़रुरत हो उसके हिसाब से कायदे कानून बनाए जाने चाहिए और माने जाने चाहिए...बस यही कहना है मुझे
नमन.....कॉपी राईट......चुराएं न.......शेयर करें
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