बलात्कार, समस्या और इलाज---

बलात्कार, समस्या और इलाज---

बलात्कारी को सजा देना ऐसे है जैसे किसी को भूखा रखो और वो बेचारा खाना चोरी करे तो उसे सज़ा दो

बलात्कारी को सजा देना ऐसे ही है जैसे अपनी गलती की सजा किसी और को दे कर अपने सही होने की खुद को तस्सली देना 

आप किसी को बे-इन्तेहा भूखा रखोगे .....तो वो खाना देख कर .......खाने का और अपना, दोनों का खाना ख़राब कर लेगा

चोर चोरी करते हैं और जाते जाते घर जला जाते हैं
लगता है कितना अमानवीय कृत्य है
लेकिन ऐसा वो करते हैं सजा के डर से
आप सज़ा मत दो....वो घर न जलाएंगे
आप भूखा मत रखो ...वो चोरी न करेंगे

थोडा सोच कर देखो न.....यदि समाज ऐसा हो कि स्त्री पुरुष को इस तरह से न रखा गया हो जैसे दो अलग ग्रह के वासी हों ..तो शायद पागल ही ऐसा करें ......और पागलपन का इलाज़ होना चाहिए...सज़ा नहीं

बलात्कार न घटेगा जब तक सेक्स पिंजरे में रहेगा.... न बलात्कार, न वेश्यालय, न भौंडे आइटम गाने, न अश्लील चित्र, न चलचित्र ......कुछ भी नहीं

बीमारियाँ हैं, इलाज होना चाहिए, लेकिन न तो डायग्नोज़ सही कर रहा है समाज, न इलाज़........

इलाज ये नहीं कि कानून बनायो....

मित्रवर, बार बार होते अपराध तो निशानी हैं कि बीमारी है कहीं समाजिक व्यवस्था में, समाज में, लेकिन समाज क्यों मानेगा, वो कैसे माने कि वो गलत है,

बलात्कार में जो लड़की पर बलात्कार होता है वो तो शिकार है ही, जो करता है वो भी शिकार है सामाजिक अव्यवस्था का, वरना कौन बेवकूफ थोड़ी देर के मज़े के लिए अपनी सारी ज़िन्दगी दांव पे लगाएगा.....

आप कह सकते हैं, यदि सेक्स की अवहेलना ही बलात्कार की वजह है तो स्त्रियाँ क्यों नहीं करती, हर कोई क्यों नहीं करता, कुछेक लोग ही क्यों करते हैं बलात्कार ......

पुरुष का बलात्कार नहीं हो सकता.....कुदरती तौर पर संभव नहीं है ज़बरदस्ती सेक्स करना पुरुष से........स्त्री से किया जा सकता है

और बलात्कार जो पुरुष नहीं करते , ऐसा न माने वो नहीं करते हैं.....असल में मौके की कमी है, या हिम्मत की, या डर समाज का, परिवार का, कानून का, या कोई और वजह.......

ज़रा सा दंगे भड़कते हैं.....शिकार औरत बनती है.....सन सैंतालिस के बटवारे में या फिर दुनिया के किसी भी युद्ध में, स्त्री पर सब से पहले बलात्कार होता है......

कौन हैं ये लोग जो ऐसा करते हैं?

ये शरीफ लोग हैं ....समाज के ठेकेदार.....

जब स्थिती यह है तो फिर इलाज क्या है, इलाज़ पहले संभव न था....

वो याद है फ़िल्मी डायलाग.....मैं तेरे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ........या फिर कलमुहीं किस का पाप पाल रही है पेट में, तू मर क्यों नहीं गयी ऐसा करने से पहले ......तूने मेरी इज्ज़त लुटी है, मैं किसी को मुहं दिखने के काबिल नहीं रही....वगैहरा .......

अब बेमानी हैं ये डायलाग....बस समाज को समझने की ज़रुरत है.....नजरिया बदलने की ज़रुरत ......सेक्स के साथ बच्चा आये न आये, ये इंसान पर निर्भर है अब ......तो फिर क्यों न सेक्स पे लगी लगामें ढीली छोड़ दें....क्यों न समाज को सेक्स के प्रति जागरूक करें......आप देखेंगे ......बलात्कार घटेंगे.....अपराध घटेंगे और रोग भी, सब तरह के मानसिक भी और शारीरिक भी

कहें क्या कहते हैं ?

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