!!!बड़े नामों की गुलामी ढोती मनुष्यता!!!

अक्सर लोग एक तरह की नामों की गुलामी में ही जी रहे होते हैं...बड़े नामों की गुलामी...चाहे वो नाम किसी किताब का हो या किसी व्यक्ति का......

मेरे जैसे हकीर आदमी की हिमाकत ही कैसे हो गयी?
किसी महान किताब / शख्सियत पर कोई ऐसी टिप्पणी करने की, ऐसी टिप्पणी जो जमी जमाई जन-अवधारणा को ललकारती हो...

मानसिक गुलामी

मुझसे अक्सर कहा जाता है, मैं कौन हूँ जो फलां विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में या उसके किसी कथन के बारे में टिप्पणी करूं, मेरी औकात क्या है, मुझे क्या हक़ है

मैं बताना चाहता हूँ कि ऐसा करने का सर्टिफिकेट मुझे जनम से ही कुदरत ने दे दिया था, सारी कायनात मेरी है और मैं इस कायनात का...

और मेरा हक़ है, कुदरती हक़, दुनिया के हर विषय के पर, हर व्यक्ति पर बोलने का, लिखने का

और यह हक़ आपको भी है, सिर्फ इस भारी भरकम नामों की गुलामी से बाहर आने की ज़रुरत है

और एक बात और जोड़ना चाहता हूँ, कोई भी व्यक्ति चाहे कितना ही महान हो, कितना ही बड़ा नाम हो उसका....कहीं भी गलत हो सकता है

और कोई भी मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति कहीं भी सही हो सकता है

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