एक मित्र ने लिखा था,"जो हिंदुत्व के मुद्दे राष्ट्रीय स्तर पर उठाना चाहते हैं, वो मुझसे संपर्क करें"
मेरा जवाब था," और जो इस तरह की मूर्खताओं का विरोध करना चाहते हैं मुझे से सम्पर्क करें...."
एक और मित्र ने लिखा था," क्या आपको हिन्दू होने का गर्व हैं? ":
मेरा जवाब था,"Idiotic question..only an idiot can be proud of being Hindu, Muslim or Christian....being human...being Label-less is enough."
तथा कथित धर्म पीढी दर पीढ़ी चलती गुलामी है.
हर पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी पर खुद को थोपती है.
हर तथा कथित धर्म जबरन थोपा जाता है ... बच्चों पर .........सबसे बड़ा अधर्म.
माँ बाप से ज्यादा नुक्सान बच्चों का कोई भी नहीं करता....सारी दुनिया में जितने फसाद हैं, जितने भेद भाव हैं, वो माँ बाप के अपने बच्चों के प्रति किये गए कुकर्मों का नतीज़ा हैं.....इसलिए आने वाले समाज में न तो बच्चे इस तरह से पैदा होने चाहिए, न ही इस तरह से पाले जाने चाहिए.......सारे समाज को दुबारा से व्यवस्थित करने की ज़रुरत है....
बच्चे के तर्क को विकसित ही नहीं होने दिया जाता, उसके तर्क को मजहबी, धार्मिक किस्से कहानियों, मान्यताओं के तले दबा दिया जाता है....फिर वो हर तरह से माँ बाप और समाज पर निर्भर होता है.....सो उसका तर्क जल्दी ही सरेंडर कर देता है और वो यदि हिन्दू समाज में पैदा हुआ तो हिन्दू बन जाता है, यदि मुस्लिम समाज में तो मुस्लिम.
आप दो जुड़वाँ भाईओं को अलग अलग समाज में पाल लीजिये...सम्भावना यह है कि जो जिस समाज में पला होगा उसी धर्म का हो जाएगा............यह है ज़बरदस्ती, बच्चे के प्रति किया गया गुनाह, जो हर समाज करता है
बजाये कि बच्चा अपनी बुद्धि से सवाल उठाये और जवाब भी ढूंढें, बच्चे से उसके सवाल छीन लिए जाते और फिर सीधे जवाब थोप दिए जाते हैं
मिसाल के लिए जब बच्चे को कोई लेना देना नहीं कि परमात्मा कौन है, क्या है, उसे परमात्मा की प्रार्थना में खड़ा कर दिया जाता है...यह गुनाह माँ बाप, स्कूल समाज सब करते हैं.
बच्चे के ज़ेहन में जब सवाल आता, जब वो खुद-ब-खुद सोचता कि यार, यह दुनिया का गड़बड़ झाला है क्या..किसने बनाया, क्यों बनाया......तब ये सब सवाल असली होते, तब उसका कोई मतलब होता....उसने अभी पूछा ही नहीं कि परमात्मा है नहीं है, है तो कैसा है, नहीं है तो क्यों नहीं है....लेकिन जवाब थमा दिया, प्रार्थना करो, एक परिकल्पना थमा दी, एक किताब थमा दी...यह है ज़हर जो लगभग सारी इंसानियत पीढी दर पीढी अपने बच्चों के ज़ेहन में उड़ेलती है....... जिज्ञासा, प्यास ही हर ली..........यह है गुनाह
फिर उसके बाद के भी इंतेज़ाम हैं कि कहीं तर्क न उठाने लगे कोई.
सब तथा कथित धर्म "ईश निंदा" में यकीन रखते हैं...यह कोई सिर्फ इस्लामी दुनिया तक ही सीमित नहीं है........
आप पीछे जाओ, गैलिलियो को चर्च में जबरन माफी मंगवा दी गयी....क्यों ...क्योंकि उसकी खोज बाइबिल में लिखे के खिलाफ जाती थी......"ईश निंदा"
जॉन ऑफ़ आर्क को जिंदा जला दिया, उसके समय की राजनीति और ईसाइयत ने, सहारा लिया कोई ईसाई कानूनों का......"ईश निंदा"
वो बात जुदा है कि बाद में उसी लडकी को सदियों बाद संत की उपाधि दे दी, पढ़ा तो मैंने यह भी है कि चर्च ने गैलिलियो से भी माफी माँगी है, सदियों बाद
अभी यहाँ भारत में पुणे में नरेंदर दाभोलकर को क्यों क़त्ल किया गया, वो अंध-विश्वास के खिलाफ लड़ रहे थे, भाई लोगों को लगा "ईश निंदा"
और आप सिक्खी पर, ग्रन्थ साब पर खुली चर्चा करने की बात तक कर देखो, चर्चा मतलब अगर कुछ ठीक न लगे तो उसे गलत कहने का हक़ .........करके देखो, पता लग जाएगा कितना उदार है सिक्ख धर्म? मारने को दौड़ेंगे...."ईश निंदा"
सब धर्म, तथाकथित धर्म जाल हैं, जंजाल हैं.........इंसानियत के खिलाफ हैं.
हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई होना अपने आप में कैंसर है, शरीर के कैंसर से ज्यादा खतरनाक......पूरी इंसानियत को खा चुका है....इतिहास लाल कर चुका है...वर्तमान की खाल उतार रहा है
दीन/ मज़हब/ धरम सबकी छुट्टी होनी चाहिए...बहुत हो गया....इन्सान को अपना रास्ता खुद अख्तियार करना चाहिए न कि किसी की सदियों पुरानी हिदायतों/हुक्मनामों/ कमांडमेंट के हिसाब से
ये धर्म ऐसी सामाजिक व्यवस्था हैं, सड़ी गली सामाजिक व्यवस्था जो ज्ञान, विज्ञान और बुद्धि से तालमेल नहीं रख पातीं, जो समय के साथ पीछे छूट जातीं हैं लेकिन फिर भी इंसानियत की छाती पर चढी रहतीं है
इन्सनियात लम्बी अंधेरी गुफा से निकल रही है.........यह जो फेसबुक और whatsapp हैं न.....इसकी अहमियत भविष्य ही आंकेगा....यही है जो दुनिया बदलेगा
अंत में तो जो भी तर्कयुक्त है, मानवता को उसे अपनाना ही होगा, अब मानवता के पास कोई चारा नहीं, या तो वैज्ञानिकता अपनायेगी, या मर जायेगी.
ये धर्म और राजनीति तो आज तक तरक्की की राह में रोड़े ही अटकाती रहे हैं.....फिर भी दुनिया यहाँ तक आयी है......अब चूँकि संचार माध्यम बेहतर हैं तो सम्भावनाएं भी बेहतर हैं....आमीन!
सादर नमन
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