????? यह सभ्यता है या जंगल राज ?????
जो भी कमज़ोर रहा, वो समाज का शिकार हो गया...स्त्री को कोठे पर बिठाल दिया गया......
मित्रवर अक्सर शुद्र को मंदिर न घुसने देने की बात कहते हैं...........स्त्री मंदिर में घुस कर भी पुरुष की गुलाम ही रही है......मंदिर में भी बिठाया गया तो देवदासी बना दिया गया
और वो चाहे किसी भी वर्ण की हो तुलसी बाबा ने उसे शुद्र के साथ ही खड़ा किया है, पसु के साथ ...ढोर गवार सूद्र पसु नारी......ताडन के अधिकारी
सूद्र के साथ अन्याय हुआ, कोई दो राय नहीं है.......लेकिन थोड़ा और देखें क्या सूद्र के साथ ही ऐसा हुआ, क्या किसी और के साथ नहीं हुआ....समाज कहने को सभ्य है, यहाँ जंगल राज रहा है...जो कमज़ोर पड़ गया , वो कुचला गया......
सूद्र का जीवन सूद्र कर दिया गया मानता हूँ, समाज की साज़िश, लेकिन जो भी व्यक्ति शिक्षा में छूट गया, पूंजी में पीछे छूट गया, उसने फिर समाज की गुलामी ही झेली है
यह नहीं कह रहा कि सूद्र के साथ शुद्र्ता नहीं की गयी....यह नहीं कह रहा कि शुद्र के साथ साज़िश नहीं की गयी....बस यही कहना चाहता हूँ कि साज़िश और गहरी है....साज़िश आर्थिक भी है........जो पीछे छूटा वो गुलाम, वो शूद्र
और जब हम यह समझते हैं तो हम इलाज भी गहरा सोच सकते हैं.......इलाज भी ऐसा कि हर गरीब बेहतर जीवन जी सके, शुद्र कहा जाने वाला भी और शुद्र न कहा जाने वाला भी
शुद्र तो गरीब रहा ही है ज्यादतर.......बिलकुल.....लेकिन जो भी गरीब हो गया, नॉन-शुद्र भी वो भी शुद्र ही हो गया...बस इतना ही कहना है........जो भी कमज़ोर हो गया, नॉन-शुद्र भी, वो भी शुद्र ही हो गया...बस इतना ही कहना है....
आज भी मान लीजिये किसी भी व्यक्ति के पास , चाहे वो शुद्र न भी हो.......मान लीजिये उसके पास शिक्षा नहीं है, उसके पास पूंजी नहीं है तो वो क्या करेगा सिवा समाज की गुलामी के......
समाज उसका जीवन शुद्र कर देगा चाहे वो किसी भी जात का हो
साज़िश सिर्फ एक नहीं है
साज़िश पूंजीवाद, अंध-पूंजीवाद का होना भी है
साज़िश शारीरक तौर पर कमज़ोर के प्रति अन्याय भी है, इसे भी समझना ज़रूरी है
स्त्री शिकार है, शुद्र शिकार है, गरीब शिकार है.........कई तरह की साज़िश हैं
इलाज दिया है मैंने सबका, आप बस IPP का एजेंडा पढ़ लीजिये, पहली पोस्ट है वहां पर.......
आज कल गीता, सीता, राधा घरों में झाड़ू पोचा, बर्तन मांजती हैं
और मोना, सोना, मोनिका, सोनिका टेलीमार्केटिंग करती हैं
अक्सर
ताजमहल में कुछ दम नहीं है ....बस ऐसे ही मशहूर कर दिया गया है…है क्या सीधे सीधे संगमरमर के पत्थर लगे हैं …… कभी माउंट आबू में दिलवाड़ा के जैन मंदिर देखें हों … संगमरमर के हैं.... क्या कलाकारी है.……संगमरमर की ये बड़ी चट्टानों को तराश कर, बहुत महीन नक़्क़ाशी की है.... क्या कला है, वाह
लानत !!
इस देश में द्रोण जैसे व्यक्ति के नाम पर द्रोण अवार्ड रखा गया है शायद गुरु दक्षिणा में बिन सिखाये ही शिष्यों के अंग भंग करना भारतीय सभ्यता के लिए आदर्श है
संस्कृति का अर्थ होता है ऐसी कृति जिसमें कोई समता हो....संतुलन हो.......बैलेंस हो
अंधे हो के अभिमान करते रहो..देते रहो खुद को तस्स्लियाँ कि हम महान, हमारे पूर्वज महान, हमारी संस्कृति महान...इस मुल्क में सिर्फ संस्कृत पैदा हुई है...संस्कृति नही
यहाँ जुए में बीवी और अपने भाई और अपना राज्य हार जाने वाले को धर्मराज कहा जाता है..यह है हमारी संस्कृति
यहाँ पति के मरने पर बीवी को जिन्दा जलाया जाता रहा है ...यह है हमारी संस्कृति
यहाँ विधवा विवाह पर एतराज़ होता रहा है , यह है हमारी संस्कृति
यहाँ समाज के बड़े हिस्से को शूद्र कर दिया गया, यह है हमारी संस्कृति
यहाँ विज्ञानं के नाम पर आर्यभट के जीरो आदि का गुणगान किया जाता है, यह है हमारी संस्कृति
यहाँ हर, लगभग हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे से पराजय मिलती रही , यह है हमारी संस्कृति
ठीक है, हमारा गायन, हमारी पाककला, हमारी नृत्यकला, हमारा वात्स्यान काम सूत्र, हमारी योग विद्या, हमारा आयुर्वेद, हमारे अध्यात्मिक गुरु...बहुत कुछ हमारे पास था/है जो काबिले तारीफ़ है ........बिलकुल...लेकिन बावजूद इस सबके हमारे पतीले में बड़े बड़े छेद हैं ...जो हमें संस्कृति तो कतई साबित नही करते...वजह संस्कृति का अर्थ होता है ऐसी कृति जिसमें कोई समता हो....संतुलन हो.......बैलेंस हो
और बैलेंस न था, न है ....संस्कृति एक कल्पना है अभी.......कभी लाई जा सकती है...लेकिन तभी जब आप समझें कि अभी आयी नहीं है, कभी आई नहीं है और फिर कोशिश करें सुधार लाने की, या फिर नवनिर्माण की
एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी भारत की महान सभ्यता संस्कृति में यकीन है.
एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी भारत के विश्व गुरु बनने की क्षमता में यकीन है.
एक सीक्रेट वोटिंग करवा लो कि यदि मौका दिया जाए तो कितने लोग अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया के नागरिक बनना चाहेंगे......आपको पता लग जाएगा कितने लोगों को आज भी मोदी जी के "अच्छे दिन" वाले नारे में यकीन है.
There is no culture...it is only an un-civilization, which we call civilization...
A junglee society, just living under the garb of culture,
Vulture people living under the garb of culture...
Just scratch little a bit and all culture is gone and underneath there is a junglee person.
जो भी कमज़ोर रहा, वो समाज का शिकार हो गया...स्त्री को कोठे पर बिठाल दिया गया......
मित्रवर अक्सर शुद्र को मंदिर न घुसने देने की बात कहते हैं...........स्त्री मंदिर में घुस कर भी पुरुष की गुलाम ही रही है......मंदिर में भी बिठाया गया तो देवदासी बना दिया गया
और वो चाहे किसी भी वर्ण की हो तुलसी बाबा ने उसे शुद्र के साथ ही खड़ा किया है, पसु के साथ ...ढोर गवार सूद्र पसु नारी......ताडन के अधिकारी
सूद्र के साथ अन्याय हुआ, कोई दो राय नहीं है.......लेकिन थोड़ा और देखें क्या सूद्र के साथ ही ऐसा हुआ, क्या किसी और के साथ नहीं हुआ....समाज कहने को सभ्य है, यहाँ जंगल राज रहा है...जो कमज़ोर पड़ गया , वो कुचला गया......
सूद्र का जीवन सूद्र कर दिया गया मानता हूँ, समाज की साज़िश, लेकिन जो भी व्यक्ति शिक्षा में छूट गया, पूंजी में पीछे छूट गया, उसने फिर समाज की गुलामी ही झेली है
यह नहीं कह रहा कि सूद्र के साथ शुद्र्ता नहीं की गयी....यह नहीं कह रहा कि शुद्र के साथ साज़िश नहीं की गयी....बस यही कहना चाहता हूँ कि साज़िश और गहरी है....साज़िश आर्थिक भी है........जो पीछे छूटा वो गुलाम, वो शूद्र
और जब हम यह समझते हैं तो हम इलाज भी गहरा सोच सकते हैं.......इलाज भी ऐसा कि हर गरीब बेहतर जीवन जी सके, शुद्र कहा जाने वाला भी और शुद्र न कहा जाने वाला भी
शुद्र तो गरीब रहा ही है ज्यादतर.......बिलकुल.....लेकिन जो भी गरीब हो गया, नॉन-शुद्र भी वो भी शुद्र ही हो गया...बस इतना ही कहना है........जो भी कमज़ोर हो गया, नॉन-शुद्र भी, वो भी शुद्र ही हो गया...बस इतना ही कहना है....
आज भी मान लीजिये किसी भी व्यक्ति के पास , चाहे वो शुद्र न भी हो.......मान लीजिये उसके पास शिक्षा नहीं है, उसके पास पूंजी नहीं है तो वो क्या करेगा सिवा समाज की गुलामी के......
समाज उसका जीवन शुद्र कर देगा चाहे वो किसी भी जात का हो
साज़िश सिर्फ एक नहीं है
साज़िश पूंजीवाद, अंध-पूंजीवाद का होना भी है
साज़िश शारीरक तौर पर कमज़ोर के प्रति अन्याय भी है, इसे भी समझना ज़रूरी है
स्त्री शिकार है, शुद्र शिकार है, गरीब शिकार है.........कई तरह की साज़िश हैं
इलाज दिया है मैंने सबका, आप बस IPP का एजेंडा पढ़ लीजिये, पहली पोस्ट है वहां पर.......
आज कल गीता, सीता, राधा घरों में झाड़ू पोचा, बर्तन मांजती हैं
और मोना, सोना, मोनिका, सोनिका टेलीमार्केटिंग करती हैं
अक्सर
ताजमहल में कुछ दम नहीं है ....बस ऐसे ही मशहूर कर दिया गया है…है क्या सीधे सीधे संगमरमर के पत्थर लगे हैं …… कभी माउंट आबू में दिलवाड़ा के जैन मंदिर देखें हों … संगमरमर के हैं.... क्या कलाकारी है.……संगमरमर की ये बड़ी चट्टानों को तराश कर, बहुत महीन नक़्क़ाशी की है.... क्या कला है, वाह
लानत !!
इस देश में द्रोण जैसे व्यक्ति के नाम पर द्रोण अवार्ड रखा गया है शायद गुरु दक्षिणा में बिन सिखाये ही शिष्यों के अंग भंग करना भारतीय सभ्यता के लिए आदर्श है
संस्कृति का अर्थ होता है ऐसी कृति जिसमें कोई समता हो....संतुलन हो.......बैलेंस हो
अंधे हो के अभिमान करते रहो..देते रहो खुद को तस्स्लियाँ कि हम महान, हमारे पूर्वज महान, हमारी संस्कृति महान...इस मुल्क में सिर्फ संस्कृत पैदा हुई है...संस्कृति नही
यहाँ जुए में बीवी और अपने भाई और अपना राज्य हार जाने वाले को धर्मराज कहा जाता है..यह है हमारी संस्कृति
यहाँ पति के मरने पर बीवी को जिन्दा जलाया जाता रहा है ...यह है हमारी संस्कृति
यहाँ विधवा विवाह पर एतराज़ होता रहा है , यह है हमारी संस्कृति
यहाँ समाज के बड़े हिस्से को शूद्र कर दिया गया, यह है हमारी संस्कृति
यहाँ विज्ञानं के नाम पर आर्यभट के जीरो आदि का गुणगान किया जाता है, यह है हमारी संस्कृति
यहाँ हर, लगभग हर ऐरे गैरे नत्थू खैरे से पराजय मिलती रही , यह है हमारी संस्कृति
ठीक है, हमारा गायन, हमारी पाककला, हमारी नृत्यकला, हमारा वात्स्यान काम सूत्र, हमारी योग विद्या, हमारा आयुर्वेद, हमारे अध्यात्मिक गुरु...बहुत कुछ हमारे पास था/है जो काबिले तारीफ़ है ........बिलकुल...लेकिन बावजूद इस सबके हमारे पतीले में बड़े बड़े छेद हैं ...जो हमें संस्कृति तो कतई साबित नही करते...वजह संस्कृति का अर्थ होता है ऐसी कृति जिसमें कोई समता हो....संतुलन हो.......बैलेंस हो
और बैलेंस न था, न है ....संस्कृति एक कल्पना है अभी.......कभी लाई जा सकती है...लेकिन तभी जब आप समझें कि अभी आयी नहीं है, कभी आई नहीं है और फिर कोशिश करें सुधार लाने की, या फिर नवनिर्माण की
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There is no culture...it is only an un-civilization, which we call civilization...
A junglee society, just living under the garb of culture,
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Nothing is perfect, you have to make it. USA, CANADA, AUSTRALIA ke logo ne bnaya hai apne desh ko perfect.
ReplyDeleteKisi ki bhi burai kar dena aasan hai, par mushkil hai thik karna.
Ek bar google search kar, please search jarur karna, rape statistics of world.
Please statistics padhne ke baad comment karna.
Nothing is perfect, you have to make it. USA, CANADA, AUSTRALIA ke logo ne bnaya hai apne desh ko perfect.
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