वेशभूषा के अंध-विश्वास

रवीश कुमार को मैं काफी संजीदा टीवी एंकर मानता हूँ...पर जनाब तपती गर्मी में कोट पहने टाई लगाये समाचारों पर समीक्षा प्रस्तुत कर रहे थे............कहीं तो सोच में गड़बड़ है

कपड़े तक पहनने में लोग अंध-विश्वासी हैं...न सिर्फ अनपढ़, कम पढ़े लिखे बल्कि ठीक ठाक पढ़े लिखे लोग भी.

अब कोट, टाई पहना व्यक्ति ही संजीदा लगेगा, सभ्य लगेगा, यह अंध विश्वास नहीं तो क्या है

मेरा धंधा है कपड़े का, कौन सा कपड़ा Casual है, कौन सा Formal, सब अंध विश्वास है

आदमी मरे मरे रंग पहने, औरत चटकीले रंग, यह अंध विश्वास है

बुजुर्ग हैं तो मरे मरे रंग पहने, यह अंध विश्वास है

ऊँची एड़ी वाली स्त्री अच्छी दिखती हैं, यह अन्धविश्वास है....चीन में तो स्त्री के छोटे पैर सुन्दर दीखते हैं, इसका इतना जबरदस्त अंध विश्वास था कि बच्चियों को इतनी छोटे लोहे के जूते पहनाये जाते थे कि उनका बाकी शरीर तो बढ़ जाता था लेकिन पैर छोटे रह जाते थे, इतने छोटे कि वो अपाहिज हो जातीं थी.....हमेशा के लिए....अभी भी शायद एक आध औरत उन बदकिस्मत औरतों में से जीवित हो

कभी आपने भारतीय वकीलों की वेश भूषा देखी है.....काला कोट, टाई, गर्मी हो तो भी...यह तर्क करने वाले लोग अपनी पोशाक के विरुद्ध तर्क न पेश कर पाए अब तक

मैं  बरसों  से लम्बे बाल रखता हूँ,  और यकीन  जानिये   मेरी बीवी तक  को यह पसंद नहीं.....अक्सर लोग बेतुके  सवाल करते हैं,"बाल लम्बे क्यों हैं? मैं  कोई कलाकार हूँ? गायक हूँ?"

बोलता  हूँ , " मैं कुछ नहीं  हूँ भाई"

"कुछ  नहीं  तो फिर बाल क्यों लम्बे हैं?"

तौबा! बाल क्यों लम्बे हैं? बाल क्यों लम्बे हैं?

अबे तुम्हारे  बाल क्यों छोटे हैं, मैंने पूछा क्या तुम्हें? या टीमने खुद से पूछा क्या कभी?  मूर्खों, तुम्हारे बाल छोटे इसलिए हैं चूँकि तुम्हारे पिता  के छोटे थे और उनके पिता जी के भी ....और इसलिए हैं कि तुम्हारे इर्दगिर्द सभी के बाल छोटे हैं...बस

और मेरे लम्बे इसलिए हैं कि मैंने अपने समझ, अपनी मर्ज़ी का प्रयोग किया है

इडियट

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